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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 6 जून 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 इंदौर - श्री बैद का संथारा परिसम्पन्न
प्रस्तुति - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 344* 📝
*स्वस्थ परम्परा-संपोषक आचार्य सोमदेव*
*साहित्य*
आचार्य सोमदेव विविध विषयों के विशेषज्ञ थे। वे संस्कृत भाषा के अधिकारी विद्वान् एवं गद्य-पद्य दोनों प्रकार की विद्या के अपूर्व रचनाकार थे। वर्तमान में सोमदेव के तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं। यशस्तिलक, नीतिवाक्यामृत, अध्यात्म-तरङ्गिणी।
*यशस्तिलक चम्पू* यह आचार्य सोमदेव की गंभीर कृति है। छह सहस्र श्लोक परिमाण यह ग्रंथ धार्मिक आख्यान है। इसमें यशोधर का संपूर्ण कथाचित्र अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत हुआ है। आचार्य सोमदेव के प्रखर पांडित्य एवं सूक्ष्म अन्वेषणात्मक दृष्टि का दर्शन इस कृति में है। यह कृति जैन जैनेतर ग्रंथों का सारभूत ग्रंथ है। इसका शब्द सौष्ठव कवि माघ के काव्यों की स्मृति कराता है।
यशस्तिलक कृति में इंद्र, चंद्र, जैनेंद्र, आपिशाल और पाणिनीय व्याकरण की चर्चा एवं महाकवि कालिदास, भवभूति, गुणाढ्य, बाण, मयूर, व्यास आदि अपने पूर्वज विद्वानों का उल्लेख आचार्य सोमदेव के चतुर्मुखी ज्ञान का प्रतिबिंब है।
विषयवस्तु एवं रचना शैली की दृष्टि से यशस्तिलक काव्य उच्च कोटि का है। इसका परायण करते समय कवि कालिदास, भवभूति, भारवि तीनों महाकवियों को एक साथ पढ़ा जा सकता है।
यशस्तिलक के आठ आश्वास हैं। अंतिम तीन आश्वास उपासकाध्ययन नाम से विश्रुत हैं। अंग साहित्य में सुप्रसिद्ध आगम 'उपासक दशा' से प्रभावित होकर अपनी कृति का नाम उपासकाध्ययन देना आचार्य सोमदेव की मौलिक सूझबूझ है। यशस्तिलक का एक भाग होते हुए भी उपासकाध्ययन स्वतंत्र ग्रंथ सा प्रतीत होता है। यह ग्रंथ 46 कल्पों में विभाजित है एवं प्रत्येक कल्प सारभूत है। इसमें वैशेषिक, जैमनीय, कणाद, ब्रह्माद्वैत आदि अनेक दर्शनों की समीक्षा के साथ जैन दर्शन का विस्तार से प्रतिपादन है।
आचार्य सोमदेव आध्यात्मिक तथा व्यवहारिक थे। उन्होंने अपने साहित्य में धर्म के व्यवहारिक पक्ष को बहुत स्पष्ट किया है। उपासकाध्ययन के चौथे कल्प का नाम मूढ़तोन्मथन है। इसमें लोक प्रचलित मूढ़ताएं एवं धर्म के नाम पर प्रवृत्त रूढ़ परंपराओं (धर्म भावना से नदी में स्नान, यक्षादि का पूजन आदि) को मिथ्यात्व का परिपोषक बताकर उन पर आचार्य सोमदेव ने करारा प्रहार किया है। इस कृति के 32वें कल्प से लेकर आगे के कल्पों में श्रावकचर्या का विशद वर्णन है।
आचार्य सोमदेव के इस उपासकाध्ययन पर आचार्य समन्तभद्र के रत्नकरण्ड श्रावकाचार का, आचार्य जिनसेन के महापुराण का, आचार्य गुणभद्र आत्मानुशासन का व आचार्य देवसेन के भाव-संग्रह का प्रभाव परिलक्षित होता है।
उत्तरवर्ती आचार्य विद्वान् अमितगति, पद्मनन्दी, वीरनन्दी, आशाधर, यशःकीर्ति आदि ने ग्रंथ रचना में उपासकाध्ययन से पर्याप्त सामग्री ग्रहण की है।
आचार्य जिनसेन के धर्मरत्नाकर ग्रंथ में उपासकाध्ययन ग्रंथ के अनेक श्लोकों का उद्धरण है। धर्मरत्नाकर की रचना विक्रम संवत् 1055 में हुई थी।
विद्वान इन्द्रनन्दी के नीतिसार में अन्य प्रभावी जैनाचार्यों के साथ आचार्य सोमदेव का भी उल्लेख है एवं उपासकाध्ययन ग्रंथ को प्रमाणभूत माना है।
आचार्य सोमदेव से पूर्व ग्रंथों मे श्रावकाचार संबंधी सामग्री उपलब्ध होते हुए भी इस ग्रंथ को विद्वानों ने अधिक आदर के साथ ग्रहण किया है। इसका कारण आचार्य सोमदेव द्वारा प्रस्तुत मौलिक सामग्री है। उपासकाध्ययन सहित आठ आश्वासों में परिसमाप्त यह ग्रंथ काव्य साहित्य का श्रेष्ठ रत्न है।
*आचार्य सोमदेव द्वारा रचित अन्य ग्रन्थों* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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