10.05.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 10.05.2018
Updated: 14.05.2018

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विद्यासागर जी गुण आगर की हम मंगल दीप सजाये की आज उतारे आरतिया.. @ यमुना विहार.. मुनि वीरसागर जी.. विशालसागर जी.. धवलसागर जी..

आज वीर सागर जी का अंतराय हो गया और धवल सागर जी ने अंतराय कर अपने आप से ही कर लिया। कियोंकि श्री जी के दांतों में अखरोट की गिरी फस गयी थी किर्प्या करके सभी से निवेदन है कि धवल सागर जी को कोई सख़्त आहार ना दें।मुनी श्री के दांतों में बहुत pain है।🙏🏻

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ना इनसा योगी, न इनका ज्ञानी.. निर्दोष पालन करे चर्या का जागते सोते.. संत विद्यासागर जैसे, भक्तो बार बार नहीं होते!

पंचम युग में यु तो असंभव हैं भगवान् को पाना.. हो.. पुण्य उदय से होता हैं ऐसे संत का धरती पे आना..

Spiritual bhajan Sung by Swasti Mehul Jain

गर्भपात जैसे घिनौने कृत्य से दूर रहे, अरे! जो भी जीव आता है वह अपना भाग्य लाता है, वह पेट लाया है तो रोटी भी लाएगा। -आचार्य श्री ज्ञानसागर जी #AcharyaGyansagar • #NoAbortion

श्री दिगंबर जैन क्षेत्रपाल मंदिर, ललितपुर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज ने अपनी पीयूषवाणी द्वारा कहा कि आजकल एक बहुत ही घिनौना कृत्य चल रहा है, वह कृत्य है गर्भपात। आजकल मां-बाप कितने कठोर हो गए हैं। मां जो मक्खन जैसी मुलायम होती है वह आजकल वज्र जैसी कठोर होती जा रही है। फल स्वरुप माँ-पिता कली को खिलने से पहले ही उसे मसल देते है। अपने ही लाल को काल के गाल में ला रही है। *अरे! जो भी जीव आता है वह अपना भाग्य लाता है, वह पेट लाया है तो रोटी भी लाएगा। अतः जो भी जीव गर्भ में आया है उसका स्वागत करो।* अगर आप संतान के नहीं होंगे तो संतान भी आपकी नहीं होगी। आपकी भावनाओं का भी संतान के ऊपर प्रभाव पड़ता है। अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएंगे तो संतान आपकी कैसे हो सकती है?

जो भी परिवार इस पाप को करते हैं वास्तव में देखा जाए तो उन्हें प्रभु की पूजन करने का अधिकार नहीं है।* जिन हाथों में भी यह कुकृत्य किया है वह हाथ प्रभु की पूजन करने के आहार देने के अधिकारी नहीं हैं। जो इस तरह का पाप करते हैं वह पाप के फलस्वरुप कई भवों तक संतान विहीन हो जाते हैं। आज देखा जा रहा है कि जिस बेटे को आप अपना समझते हो वही बेटा आज मां-पिता की बात नहीं मानता। वही बेटे आज अपने मां पिता को दो रोटी के लिए तरसा रहे हैं। बेटी को यह पता लग जाए तो वह आधी रात को भी मात पिता के पास आने को तैयार हो जाती है पर बेटा पास रहकर भी पूछता नहीं है। आज मां पिता को भार स्वरुप समझा जा रहा है। जिन माँ-पिता ने अपनी संतान के लिए सब कुछ सहन किया, कितनी-कितनी परेशानियां सहन की वही संतान आज मां पिता को वृद्धाश्रम भेज रही हैं। यह भारतीय संस्कृति नहीं है, भारतीय संस्कृति तो वृद्धों को आश्रय देने की संस्कृति है। अतः *सभी बेटों से मेरा यही कहना है कि जिन माँ-पिता ने आपके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन किया है उन माँ-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें।

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#पंथवाद • #आचार्यश्री_ज्ञानसागर_महाराज• #आचार्यश्री_विद्यासागर_महाराज आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज पंथवाद (13/20) के विरोधी थे ये बात स्वयं आचार्यश्रीविद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनो में कही..

पंथवाद के विरोधी - आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज तेरहपंथ और बीसपंथ की धारणाओं पर तटस्थ रहते थे। इसी तरह पन्थवाद पर जब कभी समझाने की स्थिति आती थी, तो वे स्पष्ट कह देते थे कि पंथवाद दिगम्बर जैन रूपी वस्त्र पर निकल आये छिद्रों से अधिक कुछ नहीं है। जितने अधिक छिद्र होते जावेंगे, वस्त्र उतना ही जर्जर होता जावेगा। एक समय ऐसा भी आ सकता है जबकि वस्त्र कई हिस्सों में फटकर बँट जावेगा। अतः समझदार श्रावक छिद्र मात्र को सुधारने / सिलने का कार्य नहीं करते, परन्तु पूरे वस्त्र को फटने से बचाने का प्रयास करते हैं। एक बार आचार्य महाराज ने कहा था, “आरती करने से सब आरत टलते हैं, ऐसा बोलते हैं, तो किसके आरत टलते हैं? आरती करने वाले के। लेकिन जिसकी आरती की जा रही है वह मान लो राग करता है (कर रहा है) तो आरत नहीं टलता।

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Lord Rishabha is regarded as the first and Lord Vardhamana (Mahavira)is regarded the last Tirthankar to attain enlightenment (599-527 BCE) of the present six-cycle period of Jain chronology. Before Mahavira, Jain tradition was known by many names such as Sraman Nirgganthas/nirgranthas Arhat Vatarshana Muni Vratya.

The VRATYA TRADITION - In Atharva Veda 15th chapter there is a description of Vratyas who are said to be unversed in Vedic tradition and ritual and belonging to Licchavi, Natha and Malla clans. Dr. Guseva, the Russian scholar in her ethnological monograph Jainism states " Ancient Indian literature contains indications of the deep antiquity of the sources of Jainism and it also indicates that the Ksatriyas and ascetics from Vratyas i.e. non-Aryans played noticeable role in establishing non-Vedic teachings.

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Jainism enthoutsic in deep meditation @Girnar: भगवान् नेमिनाथ को जहा केवलज्ञान प्राप्त हुआ तथा वही से मोक्ष प्राप्त किया ऐसी परम पवित्र भूमि 72 करोड़ 700 निर्ग्रन्थ मुनिराजों कि मोक्ष भूमि गिरनार में अभी हाल में ली गयी तस्वीर जिसमे कुछ युवक चौथी तथा पांचवी टोंक के बिच में सुबह लगभग 6 बजे ध्यान करते हुए और शायद यही सोच रहे है यहाँ से प्रभु ने अध्यात्मिक ध्यान और आनंद में डुबकी लगाई थी... मेरे जीवन में वो क्षण कब आये जब मैं भी नेमिनाथ भगवान् के सामान बनू! The photograph captured by: Nipun Jain

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bhagwan Neminath Ji @ Girnar -कर्मो की धुल अपनी आत्मा पर से उड़ाने वाले, सम्यत्व का शंख फुकने वाले, धर्म की धूरा भगवान् नेमिनाथ के चरणों में त्रिवर नमोस्तु! उस पवित्र गिरनार भूमि को त्रिकाल वंदन और आलोक -पंचम टोंक की रज रज को प्रणाम और वंदन! मन में लागी लगन, आया तेरी शरण नेमी प्यारे... मेटो मेटो जी संकट हमारे! गिरनार जी पहाड़ पर पहले टोंक में विराजित तीनो लोक और तीनो काल को जानने वाले जगत पूज्य भगवान् नेमिनाथ! आज नेमिनाथ भगवान् सहित गिरनार की ध्यान करे बहुत ऊर्जा मिलेगी आपको और गिरनार संरक्षण की भावना करे!

बोले राजुल ये भव् वन है सपना, जिसमे कोई नहीं है अपना!
निज से निज को भजो, राज माया तजो, मोक्ष पधारे... तेरे चरणों में हम जाए गिरनार वाले!

*Article drafting & photograph taken by Nipun Jain

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