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|| रात्रि-भोजन का भगवान महावीर ने निषेध क्यों किया ||
सूर्योदय के साथ ही जीवन फैलता है। सुबह होती है, सोये हुए पक्षी जग जाते है, सोये हुए पौधे जग जाते है, फूल खिलने लगते है, पक्षी गीत गाने लगते हैं, आकाश में उड़ान शुरू हो जाती है। सारा जीवन फैलने लगता है। सूर्योदय का अर्थ है, सिर्फ सूरज का निकलना नहीं, जीवन का जागना जीवन का फैलना। सूर्यास्त का अर्थ है, जीवन का सिमटना, विश्राम में लीन हो जाना। दिन जागरण है, रात्रि निद्रा है। दिन फैलाव है, रात्रि विश्राम है। दिन श्रम है, रात्रि श्रम से वापस लौट आना है। सूर्योदय की इस घटना को समझ लें तो खयाल में आयेगा कि रात्रि—भोजन के लिए महावीर का निषेध क्यों है? क्योंकि भोजन है जीवन का फैलाव। तो सूर्योदय के साथ तो भोजन की सार्थकता है। शक्ति की जरूरत है। लेकिन सूर्यास्त के बाद भोजन की जरा भी आवश्यकता नहीं है। सूर्यास्त के बाद किया गया भोजन बाधा बनेगा, सिकुड़ाव में, विश्राम में। क्योंकि भोजन भी एक श्रम है।
आप भोजन ले लेते है तो आप सोचते हैं, काम समाप्त हो गया। गले के नीचे भोजन गया तो आप समझे कि काम समाप्त हो गया। गले तक तो काम शुरू ही नहीं होता, गले के नीचे ही काम शुरू होता है। शरीर श्रम में लीन होता है। भोजन देने का अर्थ है शरीर को भीतरी श्रम में लगा देना। भोजन देने का अर्थ है कि अब शरीर का रोया—रोया इसको पचाने में लग जायेगा।
तो अगर आपकी निद्रा क्षीण हो गयी है, अगर रात विश्राम नहीं मिलता, नींद नहीं मालूम पड़ती, स्वप्न ही स्वप्न मालूम पड़ते है, करवट ही करवट बदलनी पड़ती है, उसमें से अस्सी प्रतिशत कारण तो शरीर को दिया गया काम है जो रात में नहीं दिया जाना चाहिए। तो एक तो भोजन देने का अर्थ है, शरीर को श्रम देना। लेकिन जब सूरज उगता है तो आक्सीजन की, प्राणवायु की मात्रा बढ़ती है। प्राण वायु जरूरी है श्रम को करने के लिए। जब रात्रि आती है, सूर्य डूब जाता है तो प्राण वायु का औसत गिर जाता है हवा में। जीवन को अब कोई जरूरत नहीं है। कार्बन डाइआक्साइड़ का, कार्बन डायाक्साईड की मात्रा बढ़ जाती है जो कि विश्राम के लिए जरूरी है। जानकर आप हैरान होंगे कि आक्सिजन जरूरी है भोजन को पचाने के लिए। कार्बन डायक्साईड के साथ भोजन मुश्किल से पचेगा।
मनोवैज्ञानिक अब कहते है कि हमारे अधिकतर दुख स्वप्नों का कारण हमारे पेट में पड़ा हुआ भोजन है। हमारी निद्रा की जो अस्त—व्यस्तता है, अराजकता है, उसका कारण पेट में पड़ा हुआ भोजन है। आपके सपने अधिक मात्रा में आपके भोजन से पैदा हुए है। आपका पेट परेशान है। काम में लीन है। दिन भर चुक गया। काम का समय बीत गया और अब भी आपका पेट काम में लीन है। बाकी हम तो अदभुत लोग हैं। हमारा असली भोजन रात में होता है, बाकी तो दिन भर हम काम चला लेते है। जो असली भोजन है, बडा भोजन डिनर, वह हम रात में लेते हैं। उससे ज्यादा दुष्टता शरीर के साथ दूसरी नहीं हो सकती।
इसलिए अगर महावीर ने रात्रि भोजन को हिंसा कहां है तो मै कहता हूं कीड़े—मकोड़ों के मरने के कारण नहीं, अपने साथ हिंसा करने के कारण आत्म—हिंसा है। आप अपने शरीर के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं। स्व—अवैज्ञानिक है। भोजन की जरूरत है सुबह, सूर्य के उगने के साथ। जीवन की आवश्यकता है, शक्ति की आवश्यकता है। श्रम होगा, शक्ति चाहिए। विश्राम होगा, शक्ति नहीं चाहिए। पेट सांझ होते—होते, होते—होते मुक्त हो जाये भोजन से, तो रात्रि शांत होगी, मौन होगी, गहरी होगी। निद्रा एक सुख होगी और सुबह आप ताजे उठेंगे, रात्रि भर भी आपके पेट को श्रम करना पड़े तो सुबह आप थके मांदे उठेंगे।
इसके और भी गहरे कारण हैं। आपने खयाल किया होगा, जैसे ही पेट में भोजन पड़ जाता है वैसे ही आपका मस्तिष्क ढीला हो जाता है। इसलिए भोजन के बाद नींद सताने लगती है। लगता है लेट जाओ। लेट जाने का मतलब यह है कि कुछ मत करो अब। क्यों? क्योंकि सारी ऊर्जा शरीर की पेट को पचाने के लिए दौड़ जाती है। मस्तिष्क बहुत दूर है पेट से। जैसे ही पेट में भोजन पड़ता है, मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पेट में पचाने को आ जाती है। ये वैज्ञानिक तथ्य है। इसलिए आंख झपकने लगती है और नींद मालूम होने लगती है। इसलिए उपवासे आदमी को रात में नींद नहीं आती। दिन भर उपवास किया हो तो रात में नींद नहीं आती। क्योंकि सारी ऊर्जा मस्तिष्क की तरफ दौड़ती रहती है तो नींद नहीं आ पाती। इसलिए, जैसे ही आप पेट भर लेते हैं तत्काल नींद मालूम होने लगती है। यह भरे पेट में नींद इसलिए मालूम होती है कि मस्तिष्क को जो ऊर्जा दी गयी थी, वह पेट ने वापस ले ली।
पेट जड़ है। पेट पहली जरूरत है। मस्तिष्क विलास है, लक्ज़री है। जब पेट के पास ज्यादा ऊर्जा होती है तब वह मस्तिष्क को दे देता है। नहीं तो पेट में ही मस्तिष्क की ऊर्जा घूमती रहती है।
महावीर ने कहां है, दिन है श्रम, रात्रि है विश्राम, ध्यान भी है विश्राम। इसलिए पूरी रात्रि ध्यान बन सकती है, अगर थोड़ा—सा शरीर के साथ समझ का उपयोग किया जाये। अगर रात्रि पेट में भोजन पड़ा है तो रात्रि ध्यान नहीं बन सकती, निद्रा ही रह जायेगी।
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#प्रेरणा
*🥗शाकाहारी होने का एक उदाहरण🥗*
🥗सुप्रसिद्ध *आर के मार्बल चेयर पर्सन श्री अशोक पाटनी* एक बार चाइना गए थे । शुद्ध शाकाहारी व सात्विक भोजन करने वाले पाटनी जी सदा विदेश मे भी अपना भोजन साथ लेकर जाते है।
🥗चाइना मे उनके मित्र ने एक शुद्ध शाकाहारी नाश्ते की स्टॉल पर गरम पकोड़े खिलाना चाहा।
🥗जैन संस्कारों व आचार्यों के संग रहे श्री पाटनी ने पकोड़े लेने से पहले पूछा, कि पकौडे किस सामग्री से बनाए जा रहे हैं ❓
मित्र ने स्टाल वाले से पूछ कर बताया कि शुद्ध बेसन,शुद्ध मसालों व शुद्ध पानी से यह पकौड़ी बनाई है।
🥗श्री अशोक पाटनी ने पूरी गहनता से निरीक्षण किया फिर पूछा- किस तेल में पकौड़ी बनाई है❓ *स्टाल वाले ने बताया कि पिग ऑयल (सूअर की चर्बी का तेल)* में बनाया जा रहा है ।
पाटनी जी के मित्र ने शर्मिंदा होकर माफी मांगी ।
*सारांश* --
*अनजान खाद्य पदार्थ का सेवन भी मांसाहार की पुष्टि करता है।*
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1. श्री सातबीस देवरी के जैन मंदिर और लक्खि बंजारा
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के सभी मंदिरों में श्री सातबीस देवरी के नाम से प्रसिद्ध ये मंदिर अपने भव्य आकर्षक रूप में अपनी आभा आज भी बिखेर रहे है एवं जैन धर्म के गौरव एवं समृद्धि की गाथा कह रहे है।
इतिहास
सीमंदर शाह नाम के एक ब्राह्मण हलवाई ने वि. सं. 1004 तद्नुसार सन् 947 में केरापुरपट्टन में (आज का भुपाल सागर या करेडा पाश्र्वनाथ) आकर व्यापक शुरू किया। केरापुरपट्टन तब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। लक्खी नाम का एक करोड़पति बंजाय वहाँ ठहरा हुआ था। एक दिन सीमंदर लक्खी बंजारा के ठिकाने के सामने से निकल रहा था तो उसने बणजारे को मिठाई का नजराना किया। बणजारा तब अपनी पत्नी से बड़े क्रोध में झगड़ रहा था, क्योंकि उसकी पत्नी ने उसे उलाहना दे दिया था कि तेरी लक्ष्मी मेरी वजह से है। मेरे आने के पहले तो तेरे पास एक हजार बैल भी नहीं थे। आज तू मेरे कारण ही एक लाख बैलों से व्यापार कर रहा है और लक्खी बणजारा कहला रहा है। बणजारे ने झगड़ा बढ़ने पर अपनी पत्नी को सीमंदर को सौप कर घर से निकाल दिया। सीमंदर ने रजामंदी से उसकी पत्नी को अपने यहाँ रख लिया। पत्नी बहुत भाग्यशाली थी, उसके आते ही सीमंदर के भाग्य पलट गये, वह बहुत अमीर बन गया। अब उसे धन की सुरक्षा की चिंता सताने लगी, इसलिए वह चित्तौड़ के रावल किरण दत्त के पास गया। उन्होंने उसका धन अपनी सुरक्षा में रखने से इंकार कर दिया। तब किसी ने उसे राजगुरू श्री शांतिसूरि भट्टारक के शिष्य भी यशोभद्र सूरि से इस हेतु मिलने को कहा। यशोभद्र सूरि बड़े प्रभावशाली एवं चमत्कारी आचार्य थे। उन्होंने सीमंदर से कहा कि तुझे भाग्य से लक्ष्मी मिली है तो इसका सदुपयोग कर व इस धन से जैन पंचतीर्थ बनवा, इससे तेरा इहलोक व परलोक सुधर जावेगा, साथ में मै तुझे जैन धर्म भी अंगीकार करवा दूंगा।
सीमंदर ने गुरु महाराज के आशीर्वाद एवं निर्देशानुसार सन् 957 में चित्रकूट, करेडा (भूपाल सागर), पलाना (खेमली के पास), बागौर (नाथद्वारा से 3 किमी दूर) और खाखड़ (उदयपुर-फलासिया के मार्ग में) पांचों स्थानों पर सन् 957 में निर्माण कार्य प्रारंभ करवा कर 15 वर्षों में सन् 972 में पूर्ण करवा दिया। प. पू. आचार्य यशोभद्रविजय बड़े प्रसन्न हुए और पांवों जिनालयों की प्रतिष्ठा एक ही दिन वैशाख सुदी एकम् सम्वत् 1029 (सन् 972) को करने की स्वीकृति प्रदान की। तय तिथि पर बड़े भव्य समारोहों में पांचों जिनालयों की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई और सिमंदरशाह को जैन धर्म में प्रवेश देकर उसे तलेसरा गौत्र प्रदान की, क्योंकि उसने सात बीस देवरी मंदिर की नीव में मजबूती के लिए चार हजार मण तेल डाला था।
सातबीस देवरी के इस तीन मण्डप वाले पश्चिमोभिमुख मंदिर के चारों ओर गलियारों में 26 देवरियाँ होने से इसे सातबीस देवरी मंदिर कहा जाने लगा। मुख्य मंदिर में गर्भगृह, अन्तराल, सभा मण्डप, मण्डप, त्रिक मंउप एवं मुख मंडप युक्त मंदिर का जंघा भाग देवी देवताओं एवं अप्सराओं की मूर्तियों से अलंकृत है। मूल मंदिर में तथा गलियारों की देवरियों में 47 पाषाण मूर्तियाँ है।
मूलनायक आदिनाथ भगवान के दाएँ बाएँ भगवान शान्तिनाथ एवं अजीतनाथ की प्रतिमाएँ है। मुख्य मंदिर के बाहर सेवा के दृश्य है। नीचे के माण्डप के वितान में कई सुन्दर दृश्य है इसमें 16 नर्तकियों को अंकित किया हुआ है। यहाँ भगवान आदिनाथ की जीवन-लीला के कई दृश्य उत्कीर्ण है। मंडोवर पर कई प्रतिमाएँ बनी है। नीचे के मुख्य भाग में चकेश्वरी, लक्ष्मी, क्षेमकरी, ब्राह्मणी, महासरस्वती आदि की प्रतिमाएँ है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर विविध प्रकार के कोरणी, तोरणद्वार, मण्डप आदि सभी पर की गई शिल्पकारी स्तब्धकारी है जो असाधारण कला कौषल का भव्य प्रदर्शन करती है। गुंबज में जड़ी हुई देवियों की सजीव पुतलियाँ शिल्पियों की मुलायम छेनियों से सजीव लगती है। सम्पूर्ण मंदिर में 163 पत्थर के कलात्मक स्तंभ है जो मेवाड़-देलवाड़ा, रणकपुर, कुंभारिया आदि मंदिरों की शिल्प कला के समान है। मंदिर के जैन स्थापत्य समकालीन वास्तुशैली से भिन्न नहीं है किन्तु इसकी पवित्र सादगी, कामुक दृश्यों का अभाव, विपुल अलंकरण एवं स्थान के सात्विक वातावरण में अनोखा आकर्षण है।
इस सात बीस देवरी मंदिर समूह के पूर्व में विशाल प्रांगण के पश्चात् दो पूर्वाभिमुख मंदिर है जिनकी बाहरी दीवारों का शिल्प चमत्कृत करने वाला है। उत्तर दिशा के पाश्र्वनाथ प्रभु के मंदिर का निर्माण 1448 सन् में भंडारी श्रेष्ठी (सभवतः वेला) जिन्होंने श्रृंगार चंवरी का भी जीर्णोद्धार कराया था, द्वारा निर्मित है। इसके गंभारे में 3 मूर्तियाँ है।
गंभारे के बारह के बड़े आलियों मंे उत्तर में चित्तौड़ उद्धारक आचार्य विजय नीतिसूरिश्वरजी की एवं दक्षिण में युगान्तरकारी आचार्य हरिभद्र सूरिजी की सुन्दर एवं भव्य पाषाण मूर्तियाँ विराजित है जिनकी प्रतिष्ठा आचार्य विजयहर्षसूरि द्वाा सन् 1955 में की गई थी। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लेख है जिसमें सन् 198 में अहमदाबाद के श्री मगनलाल खुशालदास सुतरिया द्वारा प्रतिष्ठा का उल्लेख है, जिन्होंने 1941 में मूल मंदिर में भी जीर्णोद्धार/प्रतिष्ठा करवाई थी।
दक्षिण दिशा के पूर्वाभिमुख पाश्र्वनाथ मंदिर का निर्माण तोलाशाह दोशी व उनके पुत्र कर्माशाह दोशी द्वारा सन् 1530 में करवाया गया था। इसके गंभारे में तीन पाषाण मूर्तियाँ है। देवरी में पद्मावती मां की सुन्दर मूर्ति है। बाहर देवरी में दो एवं प्रभु की एक पाषाण प्रतिमा कुल 7 प्रतिमाएँ है।
सातबीस देवरी मंदिर के जीर्णोद्धार
श्री सातबीसदेवरी जैन मंदिर के मूल मंदिर का निर्माण कार्य होने पर वैशाख सुदी एकम संवत् 1029 तद्नुसार सन् 972 को आचार्य यशोभद्र सूरिजी द्वारा भव्य प्रतिष्ठा करवाई गई थी। तत्पश्चात् इसके भव्य परिसर में पिछले एक हजार से अधिक वर्षों में समय पर निर्माण/जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठाएँ होती रही। पहले 26 देवरियाँ, फिर अलग-अलग समय पर देवरी नं. 1 एवँ 26 से लगती बड़ी देवरियों का अलग-अलग समय पर निर्माण, फिर पीछे के पूर्वाभिमुख दोनों मंदिरों का अलग समय पर निर्माण एवं जीर्णोद्धार होते रहे। बड़ा जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा का कार्य संवत् 1998 से संवत् 2005 तक (सन् 1941 से 1948) तक चलता रहा। इन सात वर्षों के जीर्णोद्धार का आर्थिक व्यय अहमदाबाद के सेठ भगुभाई चुन्नीलाल सुतरिया तथा भोगीलाल, मगनलाल सुतरिया द्वारा चित्तौड़ उद्धारक श्री विजयनीतिसूरि के सदुपदेश से किया गया। जीर्णोद्धार के पश्चात् मुख्य मंदिर की भव्य प्रतिष्ठा प. पूज्य आचार्य विजयनीति सूरिश्वर जी द्वारा ही सम्पन्न होनी थी पर दुर्भाग्य से आचार्यश्री का रणकपुर से चित्तौड़गढ़ प्रतिष्ठा प्रसंग हेतु पधारने के बीच माघ वदी तीज सं. 1998 (सन् 1941) को एकलिंग जी में अचानक काल धर्म हो गया। इस हृदय विदारक दुर्घटना के उपरान्त आचार्यश्री की इच्छानुसार प्रतिष्ठा समारोह उन्ही के द्वारा प्रदत्त मुहूर्त माघ सुदी द्वितीया सं. 1998 (सन् 1941) को ही सम्पन्न किया गया, जिसे भव्य समारोह में पूज्य आचार्य विजयहर्षसूरि ने पूरा किया।
इस भव्यातिभव्य समारोह में आचार्य विजयहर्ष सूरिजी के 18 ठाणा के अलावा पूज्य उपाध्याय दयाविजय (आचार्य श्री के गुरूभाई) मुनि चरणविजय, मुनि मलयविजय, पन्यास मनोहर विजय जी, पन्यास सम्पतविजय आदि ब्यावर से पधारे। मुनि भदं्रकार विजय, मुनि उम्मेद विजय, मुनि चंपकविजय आदि संत उपस्थित थे। विधिकारक श्री चंदूलाल मोतीलाल थे। संवत् 1998 की पौष वदी ग्यारस को सिरोही निवासी सेठ हीरालाल एवं तेरस को अहमदाबाद निवासी गोकुलचंद तेजपाल की ओर से स्वामीवात्सल्य का आयोजन हुआ। माघ सुदी एकम को जामनगर निवासी चुन्नीलाल लक्ष्मीचन्द संघवी द्वारा रथ यात्रा एवं स्वामीवात्सल्य व माघ सुदी द्वितीया को प्रतिष्ठा एवं समस्त कार्यक्रमों का लाभ सेठ भगुभाई चुन्नीलाल सुतरिया अहमदाबाद वालों के द्वारा लिया गया। गुजरात, मुंबई, अहदामबाद, मारवाड़, मेवाड़ मालवा आदि क्षेत्रों से हजारों श्रावक-श्राविकाएँ भी इस अनूठे आयोजन में सम्मिलित हुए थे। ऐसा भव्यातिभव्य समारोह दुर्ग पर पूर्व में संभवतः आचार्य जिनदत्तसूरि के आचार्य पद ग्रहण करने के समय सं. 1169 वैशाख कृष्णा छठ (सन् 1112) को उपस्थित हुआ था जब धोलका नरेश स्वयं अपनी पूरी राज्य परिषद् के साथ समारोह में पधारे थे।
रामपोल से उत्तर की ओर जाने पर रतनसिंह राजमहल एवं रत्नेश्वर तालाब के पास छोटा सा कलात्मक भगवान शांतिनाथ जी का मंदिर है जिसे सन् 1175 में बनाये जाने का लेख है। भगवान श्री शांतिनाथ की 31 इंच सुन्दर प्रतिमा की प्रतिष्ठा सन् 1444 में सोमसुन्दरसूरि द्वारा किये जाने का उल्लेख प्रतिमाजी पर है।
इसी परिसर से जुड़े देरासर में भगवान महावीर मूलनायकजी है जिनकी श्याम प्रतिमा पर सन् 1498 में जिनदत्तसूरिजी (द्वितीय) द्वारा प्रतिष्ठा करवाए जाने का उल्लेख है। इसी प्रतिमा के दांये अजितनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा 1053 सन् में गुणचन्दसूरिजी का लेख है। मूलनायक के बांये सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा सन् 1141 में कनकचन्द्र द्वारा कराये जाने का लेख है। आचार्य श्री जिनवल्लभसूरि के समय उनके सदुपदेश से सन् 1110 तद्नुसार संवत 1167 में कई संदर्भ लेखों में भगवान महावीर स्वामी जी के मंदिर बनाये जाने का उल्लेख मिलता है। संभवत्ः यह वही मंदिर है।
उपरोक्त दोनों मंदिरांे का जीर्णोद्धार सन् 1914 में फतहसिंहजी दरबार के समय शाह मोतीलाल चमनलाल चपलोत द्वारा करवाया गया था।
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जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन होंगे मप्र मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष
भोपाल 1/5/2018। राज्य मानव अधिकार आयोग में आठ साल से खाली पूर्णकालिक अध्यक्ष पद पर जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन नियुक्त होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली चयन समिति की बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा के कक्ष में हुई बैठक में इस पर सहमति बनी।
सूत्रों के मुताबिक बुधवार को हुई बैठक में पैनल में शामिल सभी 6-7 नामों पर विचार करने के बाद सिक्किम हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र कुमार जैन के नाम पर सहमति बन गई। बताया जा रहा है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने नियुक्ति आदेश का मसौदा बनाकर भी मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दिया है।
राजस्थान में जन्मे, वहीं वकालात की और बने न्यायाधीश
पुष्करवाणी ग्रूप ने बताया कि जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन का जन्म राजस्थान के टोंक जिले में हुआ। स्कूल और कॉलेज की शिक्षा राजस्थान में लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। 1978 में वे बार कौंसिल ऑफ राजस्थान से जुड़े और राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर बेंच में वकालात की।
2004 में राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बने। 2012 में प्रशासनिक न्यायाधीश बनाया गया और वे उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी रहे। सितंबर 2013 में उन्हें सिक्किम उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। कुछ ही दिनों बाद वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और फिर नियमित न्यायाधीश नियुक्त किए गए। इसके बाद जस्टिस जैन को सिक्किम राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
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#भाजपा केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने राहुल गांधी पर मारा ऐसा तंज कि भड़क गया जैन समुदाय,
जमकर प्रदर्शन
कर्नाटक में राहुल गांधी के मंदिर जाने पर तंज कसना केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े को तब भारी पड़ा, जब जैन समुदाय ने उनके बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।कर्नाटक में राहुल गांधी के मंदिर जाने पर तंज कसना केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े को तब भारी पड़ा, जब जैन समुदाय ने उनके बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। जैन समुदाय उनका पुतला दहन करना चाहता था मगर आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने जैन समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है।दरअसल केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने रविवार को टिगडोली गांव में एक चुनावी रैली संबोधित की। इस दौरान उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था किजब मंदिर जाते हैं रुद्राक्ष माला पहनते हैं, चर्च जाने पर क्रास लटकाते हैं, ऐसे में राहुल गांधी को श्रवणबेलगोला भी जाना चाहिए। इसके आगे उन्होंने कहा-मुझे लगता है कि आप लोग समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूं। अनंत हेगड़े के इस बयान के बाद जैन समुदाय के लोगों ने सोमवार को विरोध प्रदर्शन किया।
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मानवता की मिसाल...
अच्छाई की मार्केटिंग
श्री विमल पाटनी जो कि #वंडर_सीमेंट के मालिक है आज चूरू आये, स्व.श्री ओम प्रकाश जी शर्मा (गांव मोती का बास) (डीलर वंडर सीमेंट) का लगभग 15 दिन पहले बीकानेर जाते वक्त सड़क हादसे में मृत्यु हो गई थी के घर आज संवेदना प्रकट करने किशनगढ़ से हेलीकाप्टर से चूरू आये। वंही श्री पाटनी जी ने राजेन्द्र जी राठौड़ से फ़ोन पर बात की ओर न केवल संवेदना प्रकट की बल्कि उनके तीनो बच्चों को उनके परिवार वाले या वो बच्चे जैसी चाहे वैसी शिक्षा जंहा दुनिया मे चाहे वैसी शिक्षा ले पूरा खर्च वंडर सीमेंट उठाएगी, ओर साथ ही स्व. ओम जी शर्मा की पत्नी के नाम से पांच लाख की एफडीआर ओर पांच लाख की उनकी बेटी के नाम से दी, उसके बाद घायल बुधराम शर्मा के घर खासोली गए उनकी कुशल क्षेम पूछी ओर पहले से उनके पूरा इलाज वंडर सीमेंट करवा रही है और करवाएगी दो लाख रुपये की एफडीआर,ओर साथ ही ओम जी शर्मा के ड्राइवर जिसकी भी इस दुर्घटना में निधन हुआ है उनकी धर्मपत्नी के नाम से दो लाख रुपये की एफडीआर
ओम जी शर्मा का परिवार ही पहले की तरह वण्डर सीमेंट का काम देखेगा, कंपनी के प्रतिनिधियों को कहा इन्हें व्यापार में या परिवार के किसी भी काम मे कोई भी प्रकार की दिकत नही आनी चाहिए, घर वालो को अपने व्यक्तिगत मोबाइल नंबर दिए और कहा किसी भी प्रकार की समस्या आये मुझे तुरन्त काल करना,
अच्छा लगा कि जिस कम्पनी के कितने ही डीलर होंगे देखा जाए तो कोई आये कोई जाए कम्पनी को फर्क नही पड़ता पर विमल पाटनी जैसे भी व्यापारी है इस दुनिया मे जो अपने से जुड़े हर इंसान को अपना परिवार समझते है
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🌇 🚩 *प्रश्न: णमोकार मंत्र के पर्यायवाची नाम बताईये?*
उत्तर - *अनादिनिधन मंत्र -* यह मंत्र शाश्वत है, न इसका आदि है और न ही अंत है ।
*अपराजित मंत्र -* यह मंत्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है ।
*महामंत्र -* सभी मंत्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है ।
*मूलमंत्र -* सभी मंत्रों का मूल मंत्र अर्थात् जड़ है, जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है, इसी प्रकार इस मंत्र के अभाव में कोई भी मंत्र टिक नहीं सकता है ।
*मृत्युंजयी मंत्र -* इस मंत्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मंत्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं ।
*सर्वसिद्धिदायक मंत्र -* इस मंत्र के जपने से सभी ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।
*तरणतारण मंत्र -* इस मंत्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं ।
*आदि मंत्र -* सर्व मंत्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मंत्र है ।
*पंच नमस्कार मंत्र -* इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है ।
*मंगल मंत्र -* यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है ।
*केवलज्ञान मंत्र -* इस मंत्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं ।
🌇 🚩 *प्रश्न: णमोकार मंत्र कहाँ कहाँ पढ़ना चाहिए?*
उत्तर - दुःख में, सुख में, डर के स्थान, मार्ग में, भयानक स्थान में, युद्ध के मैदान में एवं कदम कदम पर णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए । यथा -
*दुःखे - सुखे भयस्थाने, पथि दुर्गे - रणेSपि वा ।*
*श्री पंचगुरु मंत्रस्य, पाठ: कार्य: पदे पदे ॥*
🌇 🚩 *प्रश्न: क्या अपवित्र स्थान में णमोकार मंत्र का जाप कर सकते हैं?*
उत्तर - यह मंत्र हमेशा सभी जगह स्मरण कर सकते हैं, पवित्र व अपवित्र स्थान में भी, किंतु जोर से उच्चारण पवित्र स्थानों में ही करना चाहिए । अपवित्र स्थानों में मात्र मन से ही पढ़ना चाहिए ।
🌇 🚩 *प्रश्न: णमोकार मंत्र ९ या १०८ बार क्यों जपते हैं?*
उत्तर - ९ का अंक शाश्वत है उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने पर ९ ही रहता है ।
जैसे ९*३ =२७, २ + ७ = ९
कर्मों का आस्रव १०८ द्वारों से होता है, उसको रोकने हेतु १०८ बार णमोकार मंत्र जपते हैं । प्रायश्चित में २७ या १०८, श्वासोच्छवास के विकल्प में ९ या २७ बार णमोकार मंत्र पढ़ सकते हैं ।
🌇 🚩 *प्रश्न: आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मंत्र जाप कितने प्रकार से कहा है?*
उत्तर - *वैखरी -* जोर जोर से बोलकर मंत्र का जाप करना चाहिए जिसे दूसरे लोग भी सुन सकें ।
*मध्यमा -* इसमें होंठ नहीं हिलते किंतु अंदर जीभ हिलती रहती है ।
*पश्यन्ति -* इसमें न होंठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है इसमें मात्र मन में ही चिंतन करते हैं ।
*सूक्ष्म -* मन में जो णमोकार मंत्र का चिंतन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है । जहाँ उपास्य उपासक का भेद समाप्त हो जाता है । अर्थात् जहाँ मंत्र का अवलंबन छूट जाये वो ही सूक्ष्म जाप है ।
🌇 🚩 *प्रश्न: इस मंत्र का क्या प्रभाव है?*
उत्तर - यह पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है । तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है । यथा -
*एसो पंच णमोयारो सव्वपावप्पणासणो ।*
*मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मंगलं । ।*
मंगल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है ।
मंङ्ग = सुख । ल = ददाति, जो सुख को देता है, उसे मंगल कहते हैं ।
मंगल - मम् = पापं । गल = गालयतीति = जो पापों को गलाता है, नाश करता है उसे मंगल कहते हैं ।
मंत्र के प्रभाव से -
🕌पद्मरुचि सेठ ने बैल को मंत्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ ।
🕌रामचंद्र जी ने जटायु पक्षी को सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ ।
🕌जीवंधर कुमार ने कुत्ते को सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ ।
🕌अंजन चोर ने मंत्र पर श्रद्धा रखकर आकाश गामिनी विद्या को प्राप्त किया ।
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#जैन_समाज के गर्व की बात..
_महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव बने श्री ड़ी.के. जैन
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