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21-03-2018 Depur, Kalahandi, Odisha
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
मंगल ज्योतिचरण से पावन हुआ देपुर का श्री धवलेश्वर उच्च विद्यापीठ
- भवानीपटना से लगभग 13 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे देपुर
21.03.2018 देपुर, कालाहांडी (ओड़िशा)ः
जन-जन के मन को पावन बनाते हुए, लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की पावन प्रेरणा प्रदान करते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना व अहिंसा यात्रा संग भवानीपटना से लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर देपुर गांव स्थित श्री धवलेश्वर उच्च विद्यापीठ में पधारे।
आचार्यश्री बुधवार को प्रातः सूर्योदय के पश्चात् भवानीपटना स्थित ब्रजविहार के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर से मंगल प्रस्थान किया तो कल ही भांति श्रद्धालुओं का हुजूम श्रीचरणों मंे उमड़ पड़ा। देखकर ऐसा महसूस हो रहा था कि कल आने वाले लोग कहीं गए ही नहीं जो आचार्यश्री के प्रस्थित होते ही उमड़ पड़े। इन श्रद्धालुओं में जैन-अजैन का भेद करना मुश्किल था। सभी आचार्यश्री के दर्शन से नयनों को तृप्ति प्रदान करने का प्रयास कर रहे थे। बार-बार दर्शन करने के बाद भी उनके मन की प्यास मानों बुझ ही नहीं रही थी। सैंकड़ों श्रद्धालु आचार्यश्री के साथ चल पड़े। रास्ते में आने वाले श्रद्धालुओं को अपने दोनों करकमलों से आशीष प्रदान करते आचार्यश्री गतिमान हो चले। भवानीपटना से लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री देपुर गांव में स्थित श्री धवलेश्वर उच्च विद्यापीठ में पधारे। विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों व अन्य ग्रामीणों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा शाश्वत है, नित्य है, अमूर्त है। जबकि शरीर अजीव, अशाश्वत, मूर्त और अस्थाई है। फिर भी शरीर का आत्मा से जुड़ाव रहता है। यह जुड़ाव पाप-पुण्य रूपी कर्मों के बंध से होता है। इसके कारण से ही यह शरीर आत्मा के साथ अनादि काल से जुड़ा हुआ है। आदमी की शुभ प्रवृति पुण्य का बंध कराने वाली तो अशुभ प्रवृति पाप कर्म का बंध कराने वाली होती है और इन्हीं दोनों बंधों के माध्यम से आत्मा शरीर से जुड़ जाती है। इन कर्मों को आत्मा से जोड़ने में आश्रव सहायक बनता है। आदमी यदि आश्रव को रोक दे और संवर तथा निर्जरा की साधना कर ले तो शरीर से छुटकारा प्राप्त कर सकता है और आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है।
संवर की साधना के साधना आश्रव के द्वार को बंद किया जाता है ताकि नए कर्मों के बंध न हो तथा निर्जरा के लिए आदमी को तपस्या करनी पड़ती है। तपस्या के द्वारा पूर्वकृत कर्मों का क्षय कर सकता है। तपस्या से निर्जरा होती है। जब निर्जरा होती है तो आत्मा निर्मलता को प्राप्त करती है तथा निर्मल आत्मा मोक्ष पथ की ओर अग्रसर हो सकती है। आदमी को देव, गुरु और धर्म पर श्रद्धा रखने से सम्यक्त्व की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की तथा उनसे अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों ने सहर्ष अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
अपने विद्यालय में आचार्यश्री का स्वागत करते हुए विद्यालय के शिक्षक श्री सरोज नंदा ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। साथ ही अनिरुद्ध प्रधान ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी हृदयोद्गार व्यक्त कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।