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#ईशा_मसीह_और_जैन_धर्म
इतिहासवेत्ता पं. सुंदरलाल ने 'हजरत ईसा और इसाई धर्म' नामक पुस्तक में लिखा है "भारत में आकर हजरत ईसा बहुत समय तक जैन साधुओ के बीच रहे। तीन बातें ईसा ने कहीं- आत्म- श्रद्धा या आत्मविश्वास यानी तुम अपनी आत्मा को समझो, विश्व प्रेम और तीसरा जीव दया, य सम्यक दर्शन ज्ञान और चरित्र का ही रुपांतर या प्रकारांतर महात्मा यीशु का सिद्धांत है।"
आचार्य विद्यानंद मुनिराज (अमर उजाला, 25/12/2007)
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मृत्यु महोत्सव भारी रे... ओम् शांति #समाधि
आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य मुनि श्री भव्य सागर जी महाराज की कल 22 फरवरी की रात्रि 12:24 मिनट पर मुनि श्री विश्वास सागर जी महाराज जी के सानिध्य में अपने मुखारविंद से संबोधित करते हुए समाधि हो गई । गृहस्थ अवस्था मे उनका नाम श्री जयचंद जैन था । मुनि दीक्षा शिखरजी झारखंड में 1996 में हुई थी। उनकी आयु 92 वर्ष थी
मुनिश्री के चरणों मे त्रय बार नमोस्तु ।।।।।
#ऋषभ_जिन
रेण नदी के किनारे महेशपुर, छत्तीसगढ में स्थित तीर्थंकर ऋषभ जिन की प्रतिमा(अद्भुत शिल्प दो हस्ती सूंड उठाए खड़े है दो देव परिकर सहित आकाश मार्ग से जिन की वन्दना को उद्यत है चवरधारी यक्षो को खंडित कर दिया गया, प्रभु के शीर्ष पर जटा होना ऋषभदेव का सूचक है,वीतरागता झलक रही है, नीचे छोटा सा वृषभ खुदा है और गोमुख यक्ष बने है मध्य में यक्षी का चिह्न है)
कलचुरी काल में इस क्षेत्र में जैन धर्म का प्रचार प्रसार जोरो पर था यहा यक्षी संस्कृति भी बहुतायत में प्रचलित थी जिससे शैव,वैष्णव आदि मतो की उत्पति हुई हजारो की संख्या में तीर्थंकर यक्ष यक्षी की मूर्तियाँ शिलालेख यहा मिले है छत्तीसगढ एक समय अहिंसा की राजधानी थी अधिकतर मूर्तियाँ आज काल्पनिक कथाओ से जुड़कर आदिवासियो द्वारा पूजी जा रही है
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Live Abhishek @ Shravanbelgola Gomteshwar.. bahubali!!
आज से 15 वर्ष पूर्व के राजस्थान में लगातार वर्षो में बारिश का दौर कमजोर अर्थात औसत से बहुत कम था।ऐसे में गाँव के कुए तालाब सब गहराई तक पहुच चुके है बोरवेल भी खाली पड़े थे ।लोगो को दूर दूर तक पानी के लिए जाना पड़ता था ।सरकारी टेंकरो पर लाइन लग जाती थी।मन्दिर के कुए में भी मुश्किल से पानी आ पाता था ।ऐसे में गाँव के एक श्रावक जी दक्षिण भारत की यात्रा में गए तब कर्नाटक का विश्व प्रसिद्ध श्रवनबोलगोल जैन तीर्थ आया वहाँ भगवानबाहुबली की भक्ति पूर्वक वन्दना के पश्चात स्वामी श्री चारुकीर्ति जी भट्टारक जी के वन्दनार्थ पहुचे जहा उन श्रावक ने स्वामी जी को वन्दन करते हुए कहा कि स्वामी जी हमारे क्षेत्र में पानी की बहुत किल्लत है,लगातार वर्षो में बारिश कम ही रही है,कृषकों की खेती भी नही हो पा रही है,जिन मन्दिरो में सेवा में भी दिक्कत आ रही है तब स्वामी जी ने भगवान गोम्म्टेश्वर बाहुबली स्वामी के अभिषेक शुद्धि में उपयोग किये गए दो धवल वस्त्र (उलछने) दिए और कहा कि अपने नगर के मूलनायक भगवान का भी अभिषेक होने के बाद इस वस्त्रो से प्रतिमा जी की शुद्धि करके उन दो गीले वस्त्रों में एक को मन्दिर के कुए में तथा दूसरे को गाँव के मुख्य तालाब में नीचौड़ देना जिससे भगवान गोम्म्टेश्वर बाहुबली व नगर मूलनायक भगवान के गनदोधक के प्रभाव से आपके क्षेत्र में बारिश दौर अच्छे आएंगे ।वह श्रावक स्वामी जी को वन्दन करके जब गाँव लौटे तो पूरी निष्ठा के साथ ऐसा ही किया जैसा स्वामी जी ने बताया था
भगवान गोम्म्टेश्वर बाहुबली और स्वामी श्री चारुकीर्ति के आशीष से उस वर्ष भरपूर बारिश हुई औसत से भी अच्छी वर्षा हुई,कुए,तालाब नदिया सब लबालब हुए कृषकों में हर्षाता हुई ओर तो ओर उसके बाद लगातार वर्षो तक कभी अनावृष्टि का दौर भी नही आया ।मन्दिर का कुआं भी तब से लेकर आज तक जल से परिपूर्ण रहता है
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