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22-02-2018 Dhubalpara, Balangir, Odisha
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्त
सद्गुण रूपी आभूषण धारण करने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
-हरड़ाताल से लगभग 14 किमी का विहार कर शांतिदूत पहुंचे धुबालपारा स्थित यू.जी.एम.ई. स्कूल
22.02.2018 धुबालपारा, बलांगीर (ओड़िशा)ः जन-जन का कल्याण करने वाली अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व ने पश्चिम ओड़िशा के बलांगीर जिले में गतिमान अहिंसा यात्रा गुरुवार को धुबालपारा में पहुंची। लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देती अहिंसा यात्रा ने मानों पश्चिम ओड़िशा में एक शांतिमय वातावरण का निर्माण कर दिया है। लोग सहर्ष अहिंसा यात्रा के संकल्पों से जुड़ रहे हैं और अपने जीवन को सद्गुणों से परिपूर्ण बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को अपनी धवल सेना व अहिंसा यात्रा के साथ हरड़ाताल से प्रस्थान किया। अधिकांश मार्ग के दोनों ओर वृक्ष ही वृक्ष नजर आ रहे थे। उनकी सघनता इस क्षेत्र को जंगल का रूप दे रही थी। ऐसे मार्ग से होते हुए और रास्ते में आने वाले गांवों के ग्रामीणों को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर धुबालपारा स्थित यू.जी.एम.ई. स्कूल में पधारे।
आचार्यश्री ने विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दो दृष्टिकोण चलते हैं। पहला है भौतिक दृष्टिकोण तो दूसरा है आध्यात्मिक दृष्टिकोण। भौतिक दृष्टिकोण रखने वाला आदमी जहां अश्लील, या अन्य तरह के गानों में रस लेता है तो वहीं आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले के लिए ऐसे संगीत किसी प्रलाप की भांति लगते हैं। भौतिक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति के लिए नाटक आदि बहुत अच्छा होता है और वह उसमें अपना बहुत समय नियोजित भी कर देता है तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति के लिए नाटक मानों किसी विडंबना से कम नहीं लगते। आदमी को अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए भौतिकवादी नहीं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने का प्रयास करना चाहिए।
वैराग्य भाव वाले व्यक्ति के लिए आभूषण भार होते हैं, जबकि भौतिकवादी व्यक्ति के लिए आभूषण उसके श्रृंगार के लिए होते हैं। काम-भोग भौतिक विचार वाले व्यक्ति को सुख प्रदान करने वाले लगते हैं तो वैराग्य भाव वाले व्यक्ति के लिए काम-भोग दुःख देने वाले होते हैं। आदमी को कोशिश करना चाहिए कि बाहरी आभूषणों को छोड़ने व आंतरिक व आध्यात्मिक आभूषणों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए।
बाहर के आभूषण मानों भार और सद्गुण रूपी आभूषण उपहार व श्रृंगार के समान होते हैं। जिन लोगों की प्रकृति अच्छी होती है उनकी हाथों की शोभा कंगन नहीं, सुपात्र दान से शोभित होते हैं। उनके सिर का आभूषण गुरु की चरणवंदना से होता है। मुख सत्यवाणी बोलना भी वाणी का आभूषण है। कान के आभूषण कुंडल नहीं अच्छा ज्ञान सुनना, प्रवचन सुनना आदि कान के आभूषण होते हैं। हृदय का आभूषण स्वच्छ वृत्ति है। इस प्रकार आदमी को अपने विचारों को निर्मल बनाने के लिए सद्गुण रूपी आभूषणों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। सद्गुण रूपी आभूषण धारण करने से आदमी का जीवन सुन्दर और सुफल हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की सन्निधि मंे उपस्थित विद्यालय की शिक्षिकाओं सहित अनेक ग्रामीण भी उपस्थित थे। आचार्यश्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान की और अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित लोगों ने अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की। आचार्यश्री ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया।
अपने विद्यालय में आचार्यश्री के आगमन से हर्षित प्रधानाध्यापिका श्रीमती तेजकांति पटेल ने भी अपनी हर्षाभिव्यक्ति पूज्यचरणों में अर्पित की तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। वहीं आचार्यश्री के स्वागत में एक वयोवृद्ध पूर्व शिक्षक ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें भी अपने आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान किया।