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17-02-2018 Khari, Suwarnpur, Odisha
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्त
महातपस्वी के चरणरज पाकर कुन्दन-सा निखर रहा सुवर्णपुरा जिला
-लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे खारी हाइस्कूल
17.02.2018 खारी, सुवर्णपुर (ओड़िशा)ः ऋतुराज बसंत का भारत में शुभागमन हो चुका है। प्रकृति बदलाव पर है। लगभग सभी वृक्ष अपने पुराने पत्तों को छोड़ नए पत्ते धारण करने में लगे हुए हैं। आम्रवृक्षों पर लगी मंजरियां अपनी मोहक सुगंध से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम बनी हुई हैं। धरती को प्रकाशमान बनाने वाला सूर्य भी दक्षिणायन हो चुका है तो उसके साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग दक्षिणाचंल की प्रस्थित हो चुके हैं।
अपनी दक्षिण की यात्रा के दौरान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी श्वेत रश्मियों के साथ पश्चिम ओड़िशा राज्य के सुवर्णपुर जिले में यात्रायित हैं। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की चरणरज पाकर मानों यह सुवर्णपुर जिला कुन्दन-सा निखरने लगा है। आध्यात्मिकता के रश्मियों के आलोक से सुवर्णपुर का मानों गांव-गांव जगमगाने लगा है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की गूंज घने जंगलों में बसे हुए ग्राम्यजनों तक पहुंच रही है और लोगों को सन्मार्ग दिखा रही है।
शनिवार को महातपस्वी, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी हरड़ाखोल से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया और लगभग बारह किलोमीटर का विहार सम्पन्न कर खारी गांव स्थित हाइस्कूल में पधारे। जहां उपस्थित श्रद्धालुओं व विद्यालय के शिक्षकों ने आचार्यश्री का अभिनन्दन-स्वागत किया।
विद्यालय प्रांगण में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित ग्रामीणों व श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जिस तरह चंद्रमा तारों से घिरा हुआ शोभायमान होता है, उसी प्रकार आचार्य भी अपने शिष्यों से घिरे हुए शोभायमान होते हैं। जैन शासन में आचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में उनका महत्त्व और अधिक हो जाता है, क्योंकि वे वर्तमान में तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं। आज फाल्गुन शुक्ला द्वितीया है। आज के दिन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टम आचार्य कालूगणी का जन्मदिवस भी है। राजस्थान के चुरू जिले के छापर गांव में उनका जन्म हुआ था। लगभग सोलह वर्षों बाद अपनी मां को स्वप्न द्वारा आगाह करने के उपरान्त जन्मे कालू जी बड़े हुए तो उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और वे आचार्य मघवागणी से दीक्षित हुए। कालूजी उनके कृपापात्र शिष्यों में से एक थे। आचार्यश्री डालगणी के बाद वे लगभग तैंतीस वर्ष की अवस्था में आचार्य बने। उनके शासनकाल में संघ का बहुत विकास हुआ। कितने-कितने साधु-साध्वियों को दीक्षित हुए। ऐसे आचार्य के जीवनवृत्त से सभी को कुछ प्रेरणा प्राप्त हो सके। आचार्यश्री ने उनको वंदन करने के उपरान्त आज के दिन से पारमार्थिक शिक्षण संस्था, अणुव्रत और आदर्श साहित्य संघ के भी जुड़े होने की बात आचार्यश्री ने बताई।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थि लोगों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित शिक्षकों व अन्य ग्रामीणों ने संकल्पत्रयी स्वीकार की और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुनाधर होता ने अपनी भावाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि आपके आगमन से हमारा विद्यालय पावन हो गया। आपके संकल्प से हम सभी के जीवन में बदलाव आएगा। आप हमारे विद्यालय में पधारे हम आपके आभारी हैं। विद्यालय के फाउण्डर श्री राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमारा विद्यालय आपके आगमन से पावन हो गया है।