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16-02-2018 Hardakhol, Suwarnpur, Odisha
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्त
संयम और तपस्या से देवगति की प्राप्ति संभव: आचार्यश्री महाश्रमण
-लगभग साढ़े चैदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे हरड़ाखोल 16.02.2018 हरड़ाखोल, सुवर्णपुर (ओड़िशा)ः
भौगोलिक कारणों से दो भागों में विभक्त उत्कल धरा के पूर्वी भाग को पावन कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें महासूर्य अपनी अहिंसा यात्रा की आध्यात्मिक रश्मियों का आलोक बांटने वर्तमान में पश्चिमी ओड़िशा में यात्रायित हो चुके हैं। पश्चिम की इस यात्रा के शुभारम्भ से वन्य क्षेत्रों का जो सहचर्य बना है वह अभी भी अनवरत जारी है। इन वन्य क्षेत्रों से गुजरती अहिंसा यात्रा स्थानीय लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देते हुए अपने प्रणेता के साथ निरंतर प्रवर्धमान है। लोगों को सन्मार्ग दिखाते और महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को अपनी धवल सेना के साथ धर्मशाला से प्रस्थित हुए। अहिंसा यात्रा के मार्ग मंे आने वाले आसपास के ग्रामीणों ने महासंत को पदयात्रा कर देख वंदन कर रहे थे तो महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी उन्हें अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे। लगभग साढ़े चैदह किलोमीटर का विहार कर सुवर्णपुर जिले के हरड़ाखोल स्थित एमई स्कूल में पधारे। विद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाओं सहित विद्यार्थियों और उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री का अपने गांव के विद्यालय में भाव भरा स्वागत-अभिनन्दन किया।विद्यालय प्रांगण में आचार्यश्री के दर्शन और उनके प्रवचन श्रवण को विद्यार्थी, शिक्षक-शिक्षिकाएं, ग्राम्यजन तथा अन्य श्रद्धालु भी सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित थे। आचार्यश्री ने सभी को अपनी मंगलवाणी से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में जैसे मनुष्य जगत है, वैसे देव जगत भी बताया गया है। मनुष्यों से ज्यादा देवताओं की संख्या होती है।
आदमी मरकर देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक गति में पैदा हो सकता है। प्राणी चार कारणों से देवगति को प्राप्त हो सकता है। पहला कारण होता है-सराग संयम। जिस साधना में राग समाप्त हो जाए तो वहां साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, किन्तु जहां संयम और साधना में राग से मुक्तता न हो वहां संयम से कुछ कर्मों का बंध होता है, और आदमी को देवगति को प्राप्त कर सकता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो रागयुक्त संयम से देवगति की प्राप्ति हो सकती है। आदमी को जीवन में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा संयमा-संयम, बालतप और कर्म निर्जरा के द्वारा भी आदमी देवगति को प्राप्त सकता है। इसके बावजूद साधु को देवगति की कामना नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपनी साधना को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। साधना अच्छी हो तो उसका परिणाम भी अच्छा हो सकता है। आदमी को अपमान को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। अपमान को सहन करने वाला कभी सम्मान को भी प्राप्त कर सकता है। आदमी सामान्य स्थिति में हर्षित हो तो कोई बात नहीं, किन्तु संघर्ष में हर्ष हो, वह खास बात होती है। इस प्रकार आदमी संयम और तपस्या के माध्यम से देवगति को प्राप्त कर सकता है।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं, ग्रामीणों व अन्य श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित समस्त जन समूह ने सहर्ष संकल्पत्रयी स्वीकार की और अपने आपको अहिंसा यात्रा के साथ जोड़ा। आचार्यश्री ने सभी पर आशीष वृष्टि की।
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती आरती सत्पथी ने आचार्यश्री का स्वागत करते हुए कहा कि आप जैसे महासंत के दर्शन कर मैं नहीं मेरा पूरा विद्यालय धन्य हो गया। आज इस गांव का कल्याण हो गया। आपके संकल्पों को हम अपने जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे ताकि हमारा भी कल्याण हो जाए। मैं आपकी इस महान यात्रा के सफलता की मंगलकामना करती हूं और आपके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं।