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13-02-2018 Tebhapadar, Suwarnpur, Odisha
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
संबलपुर से सुवर्णपुर जिले में शांतिदूत का मंगल प्रवेश
-लगभग 17 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर आचार्यश्री पहुंचे टेभापदर गांव
13.02.2018 टेभापदर, सुवर्णपुर (ओड़िशा)ः मंगलवार को अपनी धवल सेना के साथ अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी संबलपुर जिले की सीमा को अतिक्रांत कर सुवर्णपुर जिले में मंगल प्रवेश किया। लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देते आचार्यश्री महाश्रमणजी अब तक ओड़िशा राज्य के आठ जिलों को अपने चरणरज से पावन बनाने के उपरान्त मंगलवार को एक और प्रलंब विहार कर संबलपुर जिले की सीमा को सीमा को पार कर सुवर्णपुर जिले में मंगल प्रवेश किया तो मानों सुवर्णपुर जिले में सोने जैसा सूर्योदय हुआ।
मंगलवार की सुबह आचार्यश्री संबलुपर जिले के कदलीगढ़ से पावन प्रस्थान किया। आज आचार्यश्री प्रलंब विहार की ओर अग्रसर से आज का संभावित विहार लगभग 17 किलोमीटर का था, किन्तु समताभावी आचार्यश्री नित्य की भांति मानवता का कल्याण करने के लिए निकल पड़े। आचार्यश्री दर्शन करने वाले ग्रामीणों पर आशीष वृष्टि कर आगे बढ़ते जा रहे थे और ग्राम्यजन ऐसे महापुरुष के दर्शन कर स्वयं को कृतार्थ महसूस कर रहे थे। कुछ किलोमीटर के विहार के उपरान्त संबलपुर जिले की सीमा ने आचार्यश्री का चरणरज लेकर विदाई ली और सुवर्णपुर जिले की सीमा ने महातपस्वी व उनकी धवल सेना का हार्दिक अभिनन्दन किया। आचार्यश्री कुल लगभग 17 किलोमीटर का विहार कर टेभापदर स्थित टेभापदर उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे। आचार्यश्री का ग्रामीणों, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय में स्थानाभाव के कारण विद्यालय परिसर के समीप स्थित गांव की ओर जाने वाले मार्ग से सटे आचार्यश्री का मंगल प्रवचन कार्यक्रम आयोजित हुआ। आज आचार्यश्री के पावन प्रवचन के श्रवण को काफी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे। जिन्हें जगह मिली वे बैठ और तथा मार्ग के चारों ओर ग्रामीण भी खड़े होकर महातपस्वी के पावन प्ररेणा का लाभ लेते नजर आ रहे थे।
आचार्यश्री ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में सभी जीव जीना चाहते हैं। कोई भी प्राणी मरना नहीं चाहता। इसलिए आदमी को प्राणियों का वध करने से भी आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। हिंसा अंधकार के समान है तो अहिंसा प्रकाश के समान है। आदमी को प्रकाशवान बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी हिंसा का त्याग कर अहिंसा की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने लोगों को जैन धर्म, साधुचर्या के विषय में विशेष अवगति प्रदान करते हुए कहा कि साधुओं को सूक्ष्म दृष्टि से भी अहिंसा का पालन करने का विधान है। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने विस्तारपूर्वक साधु के पदयात्रा करने, मुखवस्त्रिका रखने, रात्रि भोजन का त्याग करने के पीछे अहिंसा की साधना का वर्णन किया। आदमी को जितना संभव हो सके हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। इनमें यथासंभव पंचेन्द्रिय वध से आदमी को बचे तो नरक गति में जाने से बच सकता है। आदमी धन के लिए भी हिंसा कर देता है। आदमी को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने सत्संगति का महत्त्व बताते हुए कहा कि साधु तीर्थ के समान होते हैं। ऐसे साधुओं के दर्शन मात्र से भी पुण्य का अर्जन होता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त ग्राम्यजनों को संकल्पत्रयी स्वीकार कराई। उपस्थित ग्रामीण महिलाओं ने ‘हुलाहुली’ नाद (मुख से निकाली जाने वाली विशेष ध्वनि) के द्वारा आचार्यश्री की अभ्यर्थना की। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री संतोष कुमार साहू ने आचार्यश्री के आगमन से हर्षित थे। उन्होंने अपनी हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि आप जैसे महासंत के दर्शन से पूरा गांव, विद्यालय, ग्रामीण व विद्यार्थी भी धन्य हो गए।