12.02.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 12.02.2018

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12-02-2018 Kadaligarh, Sambalpur, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
सर्पाकार जंगली मार्ग पर गतिमान ज्योतिचरण, पहुंचे कदलीगढ़  
-आचार्यश्री ने चार संज्ञाओं को किया व्याख्यायित, उनके संयम की दी पावन प्रेरणा  


12.02.2018 कदलीगढ़, संबलपुर (ओड़िशा)ः भारत के छोटा नागपुर के पठारी भाग में अवस्थित ओड़िशा की धरा की को अपने पावन ज्योतिचरण से ज्योतित करते, मानव-मानव को मानवता का संदेश देते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग वर्तमान समय में ओड़िशा के संबलपुर जिले में गतिमान हैं।
    सोमवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बदबहाल से मंगल प्रस्थान किया। संबलपुर जिले के प्रारम्भ से ही आचार्यश्री की अहिंसा यात्रा में भागीदार बने जंगल आज भी आचार्यश्री की यात्रा के साथ जुड़े हुए थे। आज का मार्ग जंगली होने के साथ-साथ सर्पाकार भी था। घुमावदार मार्ग पर लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कलदीगढ़ गांव स्थित कदलीगढ़ हाइस्कूल में पधारे। यहां उपस्थित विद्यार्थियों और शिक्षकों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
    आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों, ग्रामीणों व अन्य श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए अपने मंगल प्रवचन मंे कहा कि संस्कृत और हिन्दी में एक शब्द संज्ञा का प्रयोग होता है। संज्ञा का अर्थ होता है, जिसके द्वारा जिसे जाना जाता है वह संज्ञा होती है। संज्ञा की विशेष अर्थ भी होता है। चित्त वृत्ति के रूप में भी संज्ञा को जाना जाता है। मनुष्य और पुशओं में वृत्ति होती है। जैसे आहार की आदि-आदि अनेक वृत्तियां मनुष्य और पशुओं में होती है।
    आहार एक वृत्ति है। आदमी आवश्यकतानुसार भी आहार ग्रहण करता है और अभिलाषा और आसक्तिवश भी आहार कर लेता है। आदमी को आहार में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को आसक्तिवश ज्यादा खाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। असंयम से किए गए आहार से आदमी अस्वस्थ भी हो सकता है। इसलिए आदमी को आहार संज्ञा का ध्यान देते हुए उसमें संयम बरतने का प्रयत्न करना चाहिए और नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए।
    भय भी एक वृत्ति है। भय आदमी को भी होता है और भय पशुओं में भी होता है। मनुष्य और पशुओं की वृत्तियों में कोई विशेष अंतर नहीं होता है। मनुष्य और पशु के बीच में अंतर इतना ही होता है कि आदमी जितनी उत्कृष्ट साधना कर सकता है, पशु उतनी उत्कृष्ट साधना नहीं कर सकता। आदमी को यथासंभव अभय रहने का प्रयास करना चाहिए। गलत कार्यों से स्वयं को बचाने वाला आदमी को दूसरों को अभय प्रदान करने वाला आदमी अभय हो सकता है। आदमी भय से तभी तक डरे जब तक वह सामने न आए। सामने आने पर आदमी को भय पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी एक वृत्ति भोग भी बताई गई है। आदमी को भोग में ज्यादा आसक्त होने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को मैथुन संज्ञा पर भी नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी की चैथी वृत्ति होती है परिग्रह संग्रह की। आदमी को परिग्रह संज्ञा का नियमन और संयम करने का प्रयास करना चाहिए। इन चारों संज्ञाओं के नियमन, संयम और नियंत्रण के द्वारा आदमी अपने जीवन को सुखमय और अच्छा बना सकता है।
    मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों, ग्रामीणों व अन्य श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उनसे अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित जन समूह संकल्पत्रयी स्वीकार की। संकल्पत्रयी स्वीकार करने में विद्यार्थियों का उत्साह देखने लायक था। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री वीरेन्द्र कुमार साहू ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि हमें अपार हर्ष है कि आपकी यह विशाल पदयात्रा आज हमारे विद्यालय में पहुंची। आपके दर्शन कर हम और हमारे विद्यार्थी धन्य हो गए। आपकी प्रेरणा हम सभी के जीवन लाभदायी साबित होगी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

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