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🌸 पतित पावन उच्च विद्यालय में शांतिदूत का पावन पदार्पण 🌸
-सोलह किमी प्रलंब विहार के उपरान्त आचार्यश्री के पावन प्रवचन से लाभान्वित हुई जनता
05.02.2018 जारपाड़ा, अंगुल (ओड़िशा)ः यों तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भारतीय ऋषि परंपरा के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जहां पधारते हैं वहां की धरती, वह क्षेत्र और पावन हो जाता है किन्तु सोमवार को महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बड़ाकेरा से मंगल प्रस्थान कर जारपाड़ा गांव के स्थित पतित पावन उच्च विद्यालय में पधारे तो मानों पहले से ही पतित पावन यह विद्यालय महातपस्वी के ज्योतिचरण से और भी अनंत पावनता को प्राप्त हो उठा।
सोमवार को आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ बड़ाकेरा से मंगल प्रस्थान किया। उत्कल धरा पर अखंड परिव्राजक आचार्यश्री का आज भी प्रलंब विहार आरम्भ था। ओड़िशा में फरवरी महीने में सूर्य की किरणें इतने तीक्ष्ण हो गई हैं कि मई की गर्मी का अहसास कराने लगी हैं। ऐसी तीखी धूप के बावजूद भी समताधारी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी श्वेत सेना के साथ लगभग सोलह किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर जारपाड़ा में पधारे। यहां स्थित पतित पावन उच्च विद्यालय में पधारे तो आचार्यश्री के स्वागत में खड़े विद्यार्थियों ने श्रद्धा के साथ अपने कर जोड़े तो महातपस्वी के भी करकमल आशीष वृष्टि करने के लिए उठे तो मानों समस्त विद्यार्थियों व ग्रामीणों पर आशीषवृष्टि करने के उपरान्त ही अपनी स्थिति में लौटे।
बढ़ती गर्मी और प्रलंब विहार के बावजूद जनमानस के कल्याण के लिए आचार्यश्री कुछ समय पश्चात मंगल प्रवचन के लिए पधार गए। परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों और ग्रामीणों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में साधु और गृहस्थ मिलते हैं। साधु बनना एक उच्च कोटि की स्थिति होती है। देखा जाए तो वास्तव में कितने लोग विषय-भोगों का त्याग कर साधु बनते हैं। आदमी अपने जीवन में साधु न भी बन सके तो उसे श्रमणोपासक बनने का अवश्य प्रयास करना चाहिए। श्रमणोपासक अर्थात साधु की उपासना करने वाला। यों तो साधु के दर्शन मात्र से ही कितना आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो सकता है और यदि साधु का प्रवचन सुनने को प्राप्त हो जाए तो आदमी के जीवन का कल्याण हो सकता है।
आदमी साधु न भी बने तो उसे अपने जीवन में तीन चिन्तन अवश्य करने का प्रयास करना चाहिए। इन तीन चिन्तनों के माध्यम से ही आदमी महान कर्म निर्जरा और कभी मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। आदमी का पहला चिन्तन होना चाहिए कि कब मैं अल्पमूल्य और बहुमूल्य परिग्रह का त्याग करूं अथवा उन्हें कम करने का प्रयास करूं। गृहस्थ के पास तो बहुत प्रकार का परिग्रह होता है। गृहस्थ के जीवन में परिग्रह का महत्त्व भी होता है, किन्तु एक समय के पश्चात आदमी को परिग्रहों का त्याग करने अथवा उन्हें कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी का दूसरा मनोरथ होना चाहिए कि मेरे जीवन वह क्षण कब आए जब मैं मुंड होकर गृहस्थ जीवन का त्याग करूं। आदमी अपने जीवन में साधु बने अथवा न बने, फिर भी उसे साधु बनने की भावना भानी चाहिए। ऐसा इस जन्म में न हो तो अगले जन्म भी उसकी भावना पूर्ण हो सकती है। इसलिए आदमी को ऐसी भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। तीसरे मनोरथ के रूप में आदमी यह कामना करे कि कब मैं संलेखना और अनशन करूंगा। आदमी को यह भावना रखनी चाहिए कि मैं अपने जीवन के अंतिम क्षण में खाते-खाते नहीं, अनशन करते हुए तथा साधना में प्राण छूटे। इस प्रकार आदमी भावना रखने मात्र से ही महान निर्जरा को प्राप्त हो सकता है और कभी उसे मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है।
आचार्यश्री ने पावन प्रवचन के उपरान्त उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों और ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार कराई। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुभाषचंद्र प्रधान ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
🙏🏻संप्रसारक🙏🏻
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा