17.01.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 17.01.2018
Updated: 18.01.2018

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प्रश्न - क्या हिन्दी में भक्तामर पढ़ने की अपेक्षा संस्कृत में भक्तामर स्तोत्र पढ़ने का महत्व अधिक है अथवा भावों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए अर्थात् उसे पढ़े जिसे पढ़ने में अधिक मन लगे?

मुनि श्री क्षमासागर जी द्वारा दिए गए प्रश्नो के उत्तर

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#LordBahubali @ #Shravanbolgola

बाहुबली स्वामी, जगकेल्ला स्वामी।
शाँतिय मूर्तिय, नमिपेतू अनुदिनवू।।
आदिनाथ कुवरा, भरतन सोदरा।
सोदरन मेद्देयल्ला, राजवन्ने कोट्टेयल्ला।।
नोडनी किरियव, आदिनी हिरियव।
विवेक निनदानी, तालमेवू बालामी।।
शाँतिय वंदना, कांतिय निलबू।
विश्व के आदरुशा, निन्नय दर्शनबू।।
बेलगुल राजा, अगनिय तेजा।
अरलीद बिली कमला; निन्नय पदयुगला।।
सुनन्दा देविय, गर्भदि जनसी।
कीर्तिय टदेया, इडिय प्रपंचदोलु।।

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News in Hindi

#राणीसावरगाँव_जैनो_का_गढ

परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री अक्षयसागरजी महाराज एवं मुनि श्री नेमीसागरजी महाराज, क्षुल्लक समताभूषणजी महाराज १४-०१-२०१८ को गंगाकेड से राणीसावरगांव को गया और मकरसंक्रांति के दिन वही आहारचर्या हो गयी। मूलनायक भगवान श्री आदिनाथ स्वामी का सुंदर प्रतिमा को देकते ही महाराज जी मन प्रफुल्लीत हो गया ।मंदीर जी इतिहास को देकते गया अभी भी विशाल मंदीर का अवशेष भी प्राप्त होगया।और इस गांव के वायव्य दिशा मे एक पहाड़ के ऊपर नेमीनाथ,पार्श्वनाथ जी का भी चतुर्मुख जिनबिंब है। गांव के रेणुकादेवी मंदीर के मुख्य द्वार मे जिन प्रतिमा है ।मंदीर के बाहर श्री१००८ पार्श्वनाथ भगवान जी प्रतिमा (कल्लोळ)नाम से पूजा जा रहा है।इस गांव मे लिंगायत समाज के ३००घर है ये सब जैन था ऐसा लगरहा है जिनको फिर कन्वर्ट किया गया।आज भगवान श्री १००८ आदिनाथ स्वामी का मोक्षकल्याणक था महाराज जी ने भक्ती पाठ पडके चतुर्दसी प्रतिक्रमण करके ३-३०को गंगाकेड की ओर विहार किया ।आज का विश्राम १२कि मी इसद मे हुवा

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*गुरु दर्शन से बना अहिंसक #ऽhare

वीतराग मुद्रा मोक्षमार्ग में कितनी कार्यकारी है, इसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। इस मुद्रा को देखकर बहुत पापी व्यक्ति भी वीतरागी के चरणों में आकर सारे पापों का त्याग कर अपने आपको सद् मार्ग में लगा लेता है। कैसे लगाता है? आचार्यश्री के दर्शन से एक सैनिक का जीवन बदल गया। इस प्रसंग को पढ़ें

बात 24 अप्रैल 1998 की शाम के समय की है। 18 अप्रैल को आचार्यश्री एवं संघ का दर्शन आर्मी के एक रिटायर्ड सैनिक ने किए। उस दिन वह सैनिक आचार्य संघ के साथ-साथ भाग्योदय तीर्थ तक आया पर जनसमूह बहुत होने से वापस चला गया। आज वह फिर आया। आचार्य भक्ति के बाद हम और 2 ब्रह्मचारीगण बैठे हुए थे। वह व्यक्ति आया उसका नाम महेंद्रसिंह था। जाति का जाट था। हरियाणा का रहने वाला था। यहाँ सागर की आर्मी का था। वह आचार्यश्री के दर्शन करके रोने लगा। आचार्यश्रीजी से बोला- 'बाबा मुझे शांति नहीं है। कुछ ऐसा बताओ या कोई मंत्र दे दो जिससे मुझे शांति मिले।

'आचार्यश्री ने उससे पूछा- 'माँस-मदिरा, अंडा आदि खातेपीते हो।' वह बोला- 'हाँ महाराज! मैं तो सेना में था, वहाँ तो सब चलता है।' उसने बताया कि '18 अप्रैल 1998 के दिन यहाँ पर जब आप आए थे, मैं उस दिन माँस खरीदने ही जा रहा था, जैसे ही आप सभी बाबा लोगों को देखा। सब भूल गया और आपके साथसाथ यहाँ तक चला आया था। लेकिन व्यवस्थापकों ने आप तक नहीं आने दिया था। आज आप जो आज्ञा करें। मैं सब कुछ छोड़ दूँगा। मुझे तो बस शांति चाहिए। मैं वचन का पक्का हूँ मर जाऊँगा पर आपका वचन नहीं जाने दूँगा।'

आचार्यश्री ने कहा ठीक है। अब तुम माँस-मदिरा, अंडा आदि खाना छोड़ दो और पामोकार मंत्र का ध्यान करना, इसको अच्छे से पढ़ना और भूल-चूक निरादर न हो इसका ध्यान रखना। मेरी तरफ इशारा करते हुए ये महाराज (ऐलक प्रज्ञासागर) आपको मंत्र लिख देंगे, पढ़ा देंगे। उसको ध्यान से पढ़ना। मैंने उसे पामोकार मंत्र लिखकर उच्चारण कराया। आचार्यश्री का एक फोटो भी उसको दे दिया। बड़ी आस्था के साथ उसने कहा- अब मुझे निश्चित रूप से शांति मिलेगी। वह व्यक्ति फिर पूरे परिवार को लाया, सबको माँस आदि का त्याग करा दिया। सभी ने णमोकार मंत्र सीख लिया था। पूरे ग्रीष्मकाल एवं चातुर्मास के काल में अपनी साइकिल से 6-7 किमी. दूर से प्रायः करके रोज आता, आहार चर्या देखता चला जाता या शाम को आता, महाराज लोगों की वैय्यावृत्ति करता। रात्रि में घर चला जाता था। अब वह पूरे संघ का चहेता बन गया। उसका छोटा बेटा था, वह पिताजी से और आगे निकला। प्रतिदिन पिताजी के साथ शाम को आता था। वैय्यावृत्ति आदि करता था। ठीक ही है, जिसका भविष्य सुधरना होता है वह अहिंसक वृत्ति भी अपनाता है और तदनुसार धर्म में श्रद्धा-भक्ति भी करने लगता है।

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