14.01.2018 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 14.01.2018
Updated: 16.01.2018

Update

#भुवनेश्वर में तेरापंथ के ग्यारहवें #अनुशास्ता का अभिनन्दन

-महातपस्वी #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी की अभिवन्दना में जुटे भुवनेश्वरवासी

-ज्ञान का सार होता है आचार: #आचार्य_श्री_महाश्रमण

14.01.2018 भुवनेश्वर (ओड़िशा):- जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्धमान समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को ज्ञान का सार बताते हुए कहा कि ज्ञान का सार है आचार। ज्ञान प्राप्ति के बाद जो व्यक्ति हिंसा नहीं करना सीख गया मानों उसके जीवन में ज्ञान का सार आ गया। जो ज्ञान अर्जन के उपरान्त आचार व व्यवहार में आ जाए, वह सार्थक होता है। दुनिया में ज्ञान से बड़ी कोई पवित्र चीज नहीं होती है, परन्तु ज्ञान-ज्ञान में फर्क होता है। एक ज्ञान आदमी को भौतिकता की ओर ले जाने वाला, सुख-सुविधावादी बनाने वाला, चोरी, हिंसा, झूठ की ओर ले जाने वाला तो दूसरा ज्ञान आदमी को वैराग्य, ध्यान, साधना व मोक्ष के मार्ग पर ले जाने वाला होता है। वैराग्य की ओर ले जाने वाला आध्यात्मिक ज्ञान होता है।

आदमी को सभी प्राणियों के प्रति मंगल मैत्री की विचारधारा रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी की ऐसी विचारधारा आध्यात्मिक और कल्याणकारी हो सकती है। ज्ञानार्जन कर आदमी को अहिंसक बनने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा की चेतना को अध्यात्म के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सभी जीव जीना चाहते हैं। इसलिए आदमी को किसी भी जीव की हिंसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जो व्यवहार अपने लिए अच्छा नहीं लगता, वैसा व्यवहार उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए। आदमी संयम, अहिंसा व मैत्रीपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त भुवेश्वरवासियों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की और उनसे अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित भुवनेश्वरवासियों ने आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की।

तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण #साध्वीप्रमुखाजी के 47वें #चयन_दिवस के अवसर पर आचार्यश्री ने पावन उद्बोध प्रदान करते हुए कहा कि आज से 46 वर्ष पूर्व साध्वीप्रमुखाजी का मनोनयन हुआ था। एक अच्छा काल व्यतीत किया है। साध्वीप्रमुखाजी ने अपने कर्तृत्व, व्यक्तित्व व वैदुष्य से सेवा का अच्छा कार्य किया है। तीन गुरुओं को अपनी सेवा प्रदा करने वाली साध्वीप्रमुखाजी अपनी तीसरी पीढ़ी को सेवा दे रही हैं। साध्वीप्रमुखाजी समर्थ हैं। आप धर्मसंघ को लंबे समय तक सेवा देती रहें।

भुवनेश्वर प्रवास के दूसरे दिन रविवार को आचार्यश्री का अभिनन्दन का कार्यक्रम भी समायोज्य था। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित भुवनेश्वरवासियों ने आचार्यश्री के अभिनन्दन के क्रम में सर्वप्रथम समणी कमलप्रज्ञाजी ने ओड़िया भाषा में गीत का संगान किया। उसके उपरान्त ओड़िशा से संबंधित साध्वीवृंद और समणीवृंद द्वारा भी गीत का संगान किया गया। इसके उपरान्त उत्कल गुजराती सभा के अध्यक्ष श्री किशोर भाई खेम, कटक रोड व्यवसायी संघ के अध्यक्ष श्री आर.के. स्वाई, लक्ष्मीसागर कारपोरेटर श्रीमती राजलक्ष्मी नायक, जैन समाज के श्री महेश सेठिया, मारवाड़ी समाज के अध्यक्ष श्री महेन्द्र कुमार गुप्ता, भुवेश्वर महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती शशी सेठिया, युवक परिषद अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र बेताला, आरएसएस परिवार की ओर से श्री लक्ष्मीकांत दास ने आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। परशुराम मंडल के अध्यक्ष श्री किशन खांडेलवाल ने कविता के द्वारा आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। भुवनेश्वर कन्या मंडल ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। श्री नवीन धाड़ीवाल चैरिटेबल ट्रस्ट कोलकाता की ओर से टीपीएफ को सेवार्थ एम्बुलेंस प्रदान की गई। जिसकी चाबी ट्रस्ट से संबंधित लोगों ने टीपीएफ के पदाधिकारियों को भेंट दी।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

14.01.2018
प्रस्तुति > #तेरापंथ मीडिया सेंटर
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📣 #साध्वीप्रमुखा श्रीजी का #47वां #चयन दिवस

पूज्य गुरुदेव #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से संघ #महानिदेशिका #साध्वीप्रमुखा_श्री_कनकप्रभा जी के 47 वें चयन दिवस पर #वर्धापना कार्यक्रम का वीडियो एवं गुरुवर के #आशीर्वचन।🎥

(#अधिक_से_अधिक_शेयर_करे)

14.01.2018
प्रस्तुति> तेरापंथ मीडिया सेंटर
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🙏 #जय_जिनेन्द्र सा 🙏

दिनांक- 14-01-2018
तिथि: - #माघ कृष्णा #तेरस (13)

#रविवार त्याग/#पचखाण

★आज #चिप्स खाने का त्याग करे।

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जय जिनेन्द्र
#प्रतिदिन जो त्याग करवाया जाता हैं। सभी से #निवेदन है की आप स्वेच्छा से त्याग अवश्य करे। छोटे छोटे #त्याग करके भी हम मोक्ष मार्ग की #आराधना कर सकते हैं। त्याग अपने आप में आध्यात्म का मार्ग हैं।
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🙏तेरापंथ मीडिया सेंटर🙏

🔯 गुरुवर की अमृत वाणी 🔯
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News in Hindi

#ओड़िशा की राजधानी #भुवनेश्वर में पधारे तेरापंथ के भुवनेश्वर।

-कोलकाता चतुर्मास के बाद पहले पंचदिवसीय प्रवास में आयोजित है #वर्धमान_महोत्सव

-भव्य स्वागत जुलूस ने #महातपस्वी के मंगलचरणों का किया अभिन्दन

-संयममय जीवन जीने की #आचार्य_श्री_महाश्रमण ने दी पावन प्रेरणा, #साध्वीप्रमुखा जी ने प्रदान किया सम्बोध

-आह्लादित श्रद्धालुओं ने विभिन्न माध्यमों से दी अपनी भावाभिव्यक्ति

13.01.2018 भुवनेश्वर (ओड़िशा):- सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की ज्योति लेकर नौ नवम्बर 2014 को नई दिल्ली के लालकिले से #अहिंसा_यात्रा लेकर निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी नेपाल व भूटान जैसी विदेशी धरती सहित भारत के ग्यारह राज्यों को पावन बनाने के लिए उपरान्त ओड़िशा राज्य में 23 दिनों की यात्रा कर 24वें दिन ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में अपने ज्योतिचरण रखे तो मानों महातपस्वी महासंत आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर भुवनेश्वर ज्योतित हो उठा।

पूर्वी की काशी के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त भुवनेश्वर एक प्राचीन शहर है। कहा जाता है कि कभी यहां 7000 हजार मंदिर हुआ करते थे, किन्तु अब केवल 600 मंदिर हैं। इनमें सबसे प्रमुख और प्राचीन लिंगराज मंदिर है। जिसे सोमवंशी राजा ययाति ने बनवाया था। यह वर्तमान में ओड़िशा की राजधानी है। यहां तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व प्रसिद्ध कलिंगा युद्ध था। यहां का इतिहास जैन राजा खारवेल से भी जुड़ा हुआ है।

शनिवार को रामनगर स्थित बाबा रामदेव रूणचीवाले मंदिर से आचार्यश्री ने निर्धारित समय पर मंगल प्रस्थान किया। वातावरण में कोहरा व्याप्त था, इसलिए ठंड का भी अहसास हो रहा था, किन्तु मानवता के कल्याण के लिए समर्पित आचार्यश्री बढ़ चले। वातावरण में कोहरा व्याप्त था, किन्तु कुछ ही देर बाद उगते सूर्य के प्रभाव ने कोहरे को समाप्त कर दिया। इधर आचार्यश्री जैसे-जैसे भुवनेश्वर की ओर बढ़ रहे थे साथ चलने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही थी। भुवनेश्वरवासियों का मानों आज वर्षों से संजोया हुआ सपना साकार हो रहा था। जब उनके घर स्वयं चलकर उनके आराध्य पधारने वाले थे। आचार्यश्री जैसे ही भुवनेश्वर की सीमा पर पहुंचे तो वहां मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। श्रद्धालु इतने उत्साहित थे कि उनकी प्रफुल्लता जयकारों में बदल रही थी जो पूरे वातावरण को गुंजायमान कर रही थी। तेरापंथी श्रद्धालुओं के साथ ही अनेक जैन व जैनेतर समाज के भी सैंकड़ों लोग ऐसे महातपस्वी महासंत के दर्शन व उनके स्वागत को खड़े। उपस्थित विशाल जनमेदिनी भव्य जुलूस के रूप में परिवर्तित हुई और अपने आराध्य का अभिनन्दन के साथ अगवानी करते हुए आगे बढ़ चली। ओड़िया पारंपरिक परिधानों से सजे युवक व युवतियां विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि करते हुए चल रहे थे। ऐसे भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री यहां स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।

प्रवास स्थल से लगभग सात सौ मीटर से भी कुछ ज्यादा दूरी पर मेलान पडिया में बने वर्धमान समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री पहुंचे। वहां उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने अपने मंगल संबोध प्रदान किए।

इसके उपरान्त आचार्यश्री ने भुवनेश्वर की धरा पर पहला मंगल प्रवचन प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को भोगों ने निवृत्त होने का प्रयास करना चाहिए। दुनिया में किसी भी जीव का जीवन सीमित है अर्थात उसका आयुष्य निर्धारित है। इस कारण यह जीवन अध्रुव है, अशाश्वत है। जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। यह मानव जीवन भी शरीर और आत्मा का योग है। शरीर अस्थाई है तो आत्मा स्थाई है। पूरी दुनिया में दो ही तत्त्व होते हैं-चेतन और अचेतन। आत्मा का शरीर से वियोग होना ही मृत्यु है। इसलिए इस अधु्रव संसार में आदमी को भोगों से मुक्त होकर धर्म की साधना के माध्यम से अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। इस मानव जीवन का लाभ उठाते हुए आत्मा को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। संयम की साधना के द्वारा गुस्सा, अनैतिकता व नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर आह्लादित भुवनेश्वरवासियों के अरमानों को तो मानों पंख ही लग गए थे। सभी अपनी भावाओं को किसी न किसी माध्यम से अपने आराध्य के समक्ष प्रस्तुत कर रहे थे। सर्वप्रथम वर्धमान महोत्सव प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री प्रकाश बेताला, भुवनेश्वर तेरापंथी सभाध्यक्ष श्री मनसुख सेठिया ने अपनी हर्षित भावाभिव्यक्ति दी। भुवनेश्वर महिला मंडल व कन्या मंडल की सदस्याओं ने स्वागत गीत के द्वारा अपनी धरा पर अपने आराध्य का अभिनन्दन किया। भुवनेश्वर तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने भी गीत का संगान कर आचार्यश्री की अभ्यर्थना की। ज्ञानशाला के बच्चों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों में भावसुमन अर्पित किए।

भुवनेश्वर में चतुर्मास सम्पन्न करने वाली साध्वी सम्यकप्रभाजी ने गुरु चरणों में अपनी भावाभिव्यक्ति अर्पित की तो साध्वी वर्धमानयशाजी ने गीत के माध्यम से पूज्यचरणों की अभिवंदना की। आचार्यश्री ने भुवनेश्वरवासियों सहित गुरुवास में समागत साधु-साध्वियों को भी पावन आशीर्वाद प्रदान प्रदान किया।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

13.01.2018
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