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जैन समाज ट्रस्टी की पुत्र द्वारा हत्या और पारिवारिक मूल्य:-
1 जनवरी 2018 की अलसुबह । जब पूरा संसार नए साल के स्वागत में अपनी आंखें खोल रहा था तब संदीप जैन नामक युवा अपने वृद्ध माता पिता की गोली मारकर नृशंस हत्या कर रहा था । आपकीं जानकारी के लिए जिन वृद्ध दंपत्ति की हत्या की गई वे सामान्य नही थे । वे छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध प्रमुख जैन मंदिर, दुर्ग जिले के नगपुरा तीर्थ के प्रमुख ट्रस्टी रावलमल जैन व उनकी पत्नी सूरज देवी जैन थे ।
पूरे देश के जैन समाज में रावलमल जैन ‘मणि' की विशिष्ट पहचान थी। उन्होंने छत्तीसगढ़ में योग और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित होकर कार्य किया था ।उन्होंने दुर्ग जिले के नगपुरा में प्राकृतिक चिकित्सा महाविद्यालय की भी स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।स्वर्गीय श्री जैन ने समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के विकास के लिए विभिन्न विषयों में कई पुस्तकों की रचना की। उनकी शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कल देर शाम हुए उनके अंतिम संस्कार में छतिसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह भी शामिल हुए ।
नैतिकता के सर्वोच्च प्रतिमान माने जाने वाले रावलमल जैन का पुत्र संदीप जैन इतना खतरनाक कैसे हो गया, यह शोध का विषय होना चाहिए । बताया जा रहा है कि संदीप बेहद बिगड़ैल होने के साथ -साथ कई प्रकार की बुरी लतों का शिकार भी था । यह जानकारी भी सामने आई है कि उसे शराब और लड़कियों का शौक था, जिसके चलते उसे अक्सर बड़ी रकम की जरुरत होती थी। खैर कहानियां तो अब कई सामने आएंगी लेकिन हमारे समाज का एक विद्रूप तो सामने आ ही चुका है।
सोचना तो यह है कि अंतिम क्षणों में स्तंभित व निर्निमेष दृष्टि से पुत्र को देखती रावलमल जैन और उनकी धर्मपत्नी की आंखों ने सर्वप्रथम मात पितृृहंता पुत्र को कोसा होगा या विकृत मन:स्थिति में पलते इस समाज को? अंतिम समय उन्होने चाहे जो सोचा हो किन्तु मध्यप्रदेश के दुर्ग शहर में घटित इस लोमहर्षक घटना ने हमें बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया है।
असल मे हमारे शहर और समाज "कंक्रीट के जंगल" बनते जा रहे हैं । उस पर हमारे चारों ओर का वातावरण जैसे तनाव, आक्रोश और वासना आदि हमें जानवरों की श्रेणी में लाती जा रही है।
विकृत मानसिक प्रवृत्तियों के अतिरिक्त समाज में एक विचित्र सी हताशा, कुंठा व नैराश्य का भाव व्यापता जा रहा है। दु:खद व चिंताजनक पहलू यह है कि युवा वर्ग में यह विकृत मानसिकता अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से पनप रही है । युवाओं में यह मानसिकता क्यों पनप रही है? यह गहन पड़ताल का विषय है कि हमसे चूक कहां हुई? क्या यह पश्चिमी प्रगति का उदाहरण अपनाने के कारण ध्वस्त होते पारिवारिक मूल्य हैं या फिर सांस्कृतिक विसरण इसके लिए उत्तरदायी है? ऐसा क्यों कि युवा पीढ़ी का आदर्श हर्षद मेहता या दाऊद इब्राहिम बन रहे हैं, महर्षि दयानंद या भगवान महावीर नहीं?
जो भी हो पारिवारिक मूल्यों की स्थापना पर जोर देना ही प्रारंभिक लक्ष्य होना चाहिए।
सादर
Cp🙏
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