02.01.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 02.01.2018

🌸 आध्यात्मिक इच्छा परम सुख को प्रदान करने वाली: आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे कोलीमाटी स्थित स्वप्नेश्वर आदिवासी हाईस्कूल

02.01.2018 कोलीमाटी, क्योंझर (ओड़िशा)ः मानवता का शंखनाद करते ओड़िशा की धरती पर गतिमान अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ वर्तमान में ओड़िशा राज्य के क्योंझर जिले में यात्रायित है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग आचार्यश्री के दर्शन, प्रवचन और आशीर्वाद से लाभान्वित हो रहें हैं। वे अपनी परंपरा के अनुसार आचार्यश्री के समक्ष नतसिर वंदन करते हैं तो आचार्यश्री भी आशीर्वाद की मुद्रा में उन्हें अपने आशीर्वाद लाभान्वित करते हुए गतिमान हैं।

मंगलवार को बालीजोड़ी से आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अगले गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए। मार्ग के दोनों ओर हरे-भरे वृक्षों की अधिकता और जगह-जगह चट्टानों का समूह इस क्षेत्र को वन क्षेत्र साबित करने के लिए काफी था। लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कोलीमाटी स्थित स्वप्नेश्वर आदिवासी हाईस्कूल के प्रांगण में पधारे।

यहां उपस्थित ग्रामीणों व श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में इच्छाओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। आदमी के इच्छा के अनुकूल यदि कोई कार्य हो तो आदमी खुश होता है और आदमी की इच्छा के प्रतिकूल कोई कार्य हो तो आदमी दुःखी हो जाता है। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि उसकी इच्छा का आधार क्या है? इच्छा का आधार भौतिक है या आध्यात्मिक। भौतिक इच्छा आदमी को परम सुख प्रदान नहीं कर सकती, आध्यात्मिक इच्छा आदमी को परम सुख की प्राप्ति करा सकती है। इसलिए आदमी को भौतिक इच्छाओं का सीमाकरण करने का प्रयास करना चाहिए।

आदमी को भौतिक इच्छाओं का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने इच्छाओं को आकाश के समान असीम और अनंत बताते हुए कहा कि आदमी की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती, बल्कि वह दिन प्रतिदिन बढ़ने वाली ही होती हैं। आदमी को सोने अथवा चांदी का पहाड़ भी प्राप्त हो जाए तो आदमी की इच्छा पूर्ण नहीं होती, और पाने की ओर आगे बढ़ने वाली हो सकती है। कोई आदमी मन का गुलाम भी हो सकता है, किन्तु अच्छा होगा कि मन आदमी का गुलाम बना रहे। इसलिए आदमी को अपनी इच्छाओं का संयम करना चाहिए और उसमें सीमाकरण करे का प्रयास करना चाहिए। आदमी जीवन मंे अर्थ के अर्जन में नैतिकता और प्रमाणिकता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

आदमी इच्छाओं को जितना अधिक सीमांकन कर लेगा आदमी की आत्मा निर्मल बन सकती है। इच्छाओं से उत्पन्न होने वाले लालच व मोह का आवरण आदमी के आत्मा से हटता है तो आत्मा का प्रकाश फैल सकता है। आदमी अपनी इच्छाओं का संयम करे, जीवन का कुछ समय साधना में लगाए। प्रतिदिन ध्यान, साधना व स्वाध्याय के का अभ्यास करे तो वह अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। इसके द्वारा आत्मा का भी कल्याण हो सकता है।

आचार्यश्री के अपने विद्यालय में आगमन से हर्षित स्वप्नेश्वर आदिवासी हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक श्री तपनकुमार चक्र ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाओं की अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने भी उन्हें पावन प्रेरणा और मंगल आशीर्वाद से आच्छादित किया।

🙏संप्रसारक🙏
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा

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