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*23/12/17* दक्षिण भारत मे मुनि वृन्द, साध्वी वृन्द व समणी वृन्द का सम्भावित विहार/ प्रवास
दर्शन सेवा का लाभ लें
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी* *के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ठाणा* 2 का प्रवास
*चन्द्रप्रकाश जी दुगड़* के निवास स्थान पर
Flower bazaar opp.Head post office
*Vaniyambadi*
(तमीलनाडु)
☎9003789485,9366111160
9443235611
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*Bansilal ji Pitaliya* के निवास स्थान पर
BPL SHOW ROOM
K.R Nager (कर्नाटक)
☎9901135937,9448385582
9886872447,9886872448
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*MP jewellery*
Harishji rajeshji sethiya 32 big street
*Kumbakonam*
(तमिलनाडु* 620017)
☎ 8107033307,9842420774
9443415708
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*डॉ. मुनि श्री अमृतकुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*जैन भवन*
*तिरूकलीकुन्ड्रम* (पक्षीतीर्थ),(तमिलनाडु)
☎9786805285,9443247152
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*Sevati Appointment*
Near Jalaram Temple
*Calicut*(केरला)
☎9672039432,9447606040
9847303267
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितिय' ठाणा ५* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*KGF*(कर्नाटक)
☎8890788495
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा ५* का प्रवास
https://maps.google.com/?q=12.956870,77.558029
*Rajan ji Vikram'Ji Rishabh Sethiya*
Sethiya Nivas 23/1 5th main 6th cross
Near Azad Nagar T.R.Mill Circle *Chamrajpet* Bangalore 560018 कर्नाटक
☎9845120940,9448767555
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री सत्यवती जी ठाणा 4* का प्रवास
*पाडुकोणां स्कुल से विहार करके सकुरी पधारेगे*
*हैदराबाद- नागपुर रोड* (तेलंगाना)
☎9959037737
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास *गणपतराज जी डागा के निवास स्थान पर*
*रेडिल्स*
☎9884200325,9840131331
8428020772
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*राजेन्द्र जी चोरडिया वलयुर के निवास स्थान से 12 km का विहार करके पनगुडी कल्याण मण्डप मे पधारेगे* (तमिलनाडु)
☎ 7305730863,9629840537
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*सिरगुपा से 3 km आगे कल्याण मण्डप मे*
सिघनुर- बेल्लारी रोड
(कर्नाटक)
☎7230910977,8830043723
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
*तेरापंथ भवन चिक्कनायकनहल्ली*
हिरियूर - मैसूर रोड कर्नाटक
☎9601420513
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मघुस्मिता जी ठाणा 7* का प्रवास
कल सुबह जहा से विहार होगा वहां का लोकेशन
13°03'15.5"N 77°09'18.4"E
https://goo.gl/maps/VaAB6F4x9oo
*कंनाचंदरा गांव स्कूल में*
श्रवणबेलगोला - बैगलोर रोड (कर्नाटक)
☎7798028703
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*आचार्य श्री महाश्रमणजी* *की सुशिष्या* *समणी निर्देशिका चारित्रप्रज्ञाजी* *एवं सहवर्तिनी समणीवृन्द का प्रवास*
*वसंतलाल जी मरलेचा*
#20/2, Chinna Thambi street, Ellis Road Triplicane, Chennai 5.
☎9940127000,9840031490
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*TSS वाट्स अप गुप से जुडने के लिए दिए link पर click करे*
प्रस्तुति:- 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 रायपुर: श्रीमती रतनी देवी बरडिया द्वारा “चौविहार संथारे” का प्रत्याख्यान
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👉 जयपुर - वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन
👉 जयपुर: अभातेयुप के “संगठन यात्रा” सप्ताह के तहत सार - संभाल
👉 बेंगलोर - महिला मण्डल निर्माण एक कदम स्वच्छता की ओर कार्यशाला का आयोजन
👉 ब्यावर - "दम्पति शिविर का आयोजन"
👉 कुंभकोणम: मुनि वृन्द का "मंगल प्रवेश"
👉 भिलवाड़ा: जिला कारागृह में "जीना इसी का नाम है", प्रेक्षाध्यान - तनावमुक्ति कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 224* 📝
*सरस्वती-कंठाभरण आचार्य सिद्धसेन*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
आचार्य सिद्धसेन कि उक्त पद्यावलियां उनकी स्पष्टवादिता, निर्भीकता और चिंतन की उन्मुक्तता का स्पष्ट प्रतिबिंब हैं। प्रत्येक पद्यावली में पुरातन रूढ़ धारणाओं पर क्रांति का सबल घोष प्रतिध्वनित है।
आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की अनेकांतवाद में अत्यंत निष्ठा थी।
*जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा न निव्वडइ।*
*तस्स भुवणेक्कगुरुणो नमो नमो अणेगंणतवायस्स।।*
आचार्य सिद्धसेन ने दर्शन के क्षेत्र में नई दृष्टियां दीं, जैन न्याय का बीजारोपण किया। जैन सिद्धांतों की युक्ति पुरस्सर सुक्ष्म चर्चा कर तात्त्विक मान्यताओं पर चिंतन-मनन का द्वार उद्घाटित किया।
एक और आचार्य सिद्धसेन ने आगम में बिखरे अनेकांत सुमनों को माला का रूप दिया, दूसरी ओर उनके उर्वर मस्तिष्क से अनेक मौलिक तथ्य भी उभरे। ज्ञान की प्रमाणता और अप्रमाणता में मोक्षमार्गोपयोगिता के स्थान पर मेय रूप का समर्थन, प्रत्यक्ष अनुमान और आगम के रूप में प्रमाणत्रयी की परिकल्पना, प्रत्यक्ष और अनुमान में स्वार्थ और परार्थ की अनुमति और प्रमाण लक्षण में स्वपरावभासक के साथ बाधवर्जित स्वरूप का निश्चयीकरण सिद्धसेन की अपनी मौलिक सूझ थी।
जैन सैद्धांतिक मान्यताओं का भी समीक्षात्मक विश्लेषण आचार्य सिद्धसेन की दार्शनिक प्रतिभा का विशिष्ट अनुदान है।
*समय-संकेत*
आचार्य सिद्धसेन विक्रमादित्य के समकालीन थे। भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य नाम के कई राजा हुए हैं। आचार्य सिद्धसेन से प्रभावित विक्रमादित्य गुप्तवंशीय नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य अलंकरण) संभव हैं। संवत्सर प्रवर्तक विक्रमादित्य इनसे भिन्न एवं पूर्ववर्ती हैं।
पूज्यपाद (देवनंदी) ने जैनेंद्र व्याकरण में 'वेत्तेः सिद्धसेनस्य' वाक्य में सिद्धसेन के मत का उल्लेख किया है। पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि टीका में भी सिद्धसेन की द्वात्रिंशिकाओं के श्लोक उद्धृत हैं। अतः विक्रम की पांचवीं सदी के उत्तर भाग में एवं छठी सदी के पूर्वी भाग में होने वाले पूज्यपाद से पूर्ववर्ती होने के कारण सिद्धसेन विक्रम संवत् पांचवीं सदी के विद्वान् अनुमानित होते हैं। इससे अधिक अर्वाचीन समय किसी प्रकार से संभव नहीं है।
पंडित सुखलालजी ने भी सन्मतिप्रकरण की प्रस्तावना में सिद्धसेन को विक्रम की 5वीं शताब्दी का मान्य किया है।
आचार्य सिद्धसेन द्वारा रचित साहित्य में सुललित, सालंकारिक, प्रवाहमयी संस्कृत भाषा के आधार पर उनको वीर निर्वाण की 10वीं-11वीं (विक्रम की 5वीं) शताब्दी का विद्वान् मानना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है।
पंडित बेचरदासजी ने सिद्धसेन दिवाकर को विक्रम की पांचवीं शताब्दी का आचार्य माना है। पंडित दलसुख मालवणिया ने इस स्थिति का निर्बाध समर्थन किया है।
सिद्धसेन आचार्य वृद्धवादी के शिष्य थे। वृद्धवादी अनुयोगधर स्कंदिल के शिष्य थे। वाचनाकार स्कंदिल का आगम वाचनाकाल वीर निर्वाण 827 से 840 (विक्रम सम्वत् 357 से 370) स्वीकृत हुआ है। दिवाकर सिद्धसेन आचार्य स्कंदिल के प्रशिष्य से होने के कारण उनका समय विक्रम की 5वीं शताब्दी सिद्ध होता है।
आचार्य सिद्धसेन न्याय प्रतिष्ठापक, कुशल वाग्मी एवं साहित्याकाश के दिवाकर थे। उनकी नव-नवोन्मेषप्रदायिनी मनीषा जैन शासन के लिए वरदान सिद्ध हुई।
*महाप्राज्ञ आचार्य मल्लवादी का प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे तथा प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 48* 📝
*केसरजी भण्डारी*
*महाराणा के कृपापात्र*
सुप्रसिद्ध श्रावक केसरजी का जन्म कपासन निवासी देवराजजी भंडारी के घर सम्वत् 1821 के लगभग हुआ। उनका पूरा नाम केसरीसिंहजी था। परंतु बहुधा उन्हें संक्षिप्त नाम 'केसरजी' से ही पुकारा जाता था। उन्होंने कपासन को छोड़कर अपना निवास स्थान उदयपुर को बना लिया। उनके तीन पुत्र थे। उनके नाम क्रमशः पेमराजजी, जुगलकिशोरजी और हुकमीचंदजी थे। केसरजी तात्कालीन महाराणा भीमसिंहजी के अत्यंत कृपापात्र तथा विश्वसनीय व्यक्तियों में से एक थे। महाराणा ने उन्हें समय-समय पर अनेक कार्यों पर नियुक्त किया और प्रत्येक कार्य में निपुण पाया। अनेक वर्षों तक वे राज्य के कर अधिकारी के रूप में कार्य करते रहे। उन वर्षों में उन्हें सारे राज्य में घूमते रहना पड़ता था। छोटे बड़े सभी ठिकानों तथा राज्यशासित क्षेत्रों से कर उगाहने में वे अत्यंत माधुर्य एवं चातुर्य से काम लेते थे। उस समय उन्हें वार्षिक वेतन के रूप में बारह सौ रुपए मिला करते थे। उनकी उस परिश्रम साध्य तथा प्रामाणिक सेवा से प्रसन्न होकर सम्वत् 1866 के लगभग महाराणा ने एक साथ ही आठ सौ रुपए बढ़ाकर उनका वार्षिक वेतन दो हजार रुपये कर दिया। उन्हीं वर्षों में उन्हें जागीर के रूप में जवासिया, भाकल्या, अलसीपुरा, लोडियाना नामक चार गांव भी दिए गए। उसके पश्चात् वे अनेक वर्षों तक 'ड्योढ़ी' (अंतःपुर) के कार्याधिकारी रहे। कालांतर में राज्य के सर्वोच्च न्यायाधीश नियुक्त किए गए। इन सभी कार्यों में उन्हें महाराणा के अत्यंत सामीप्य तथा अंतरंगता का अवसर प्राप्त हुआ। लंबे सामीप्य तथा कार्य कौशल ने महाराणा के मन में उनके प्रति आत्मीयता का भाव जगा दिया। वे उन्हें अपने पारिवारिक जनों के समान ही समझने लगे थे।
*प्रच्छन्न श्रावक*
केसरजी स्वामी भीखणजी के समय में ही तेरापंथ के अनुयायी बन गए थे। उन्हें सम्यक्त्वी बनाने का श्रेय स्वामीजी के अनन्य उपासक श्रावक शोभजी को है। उन्होंने श्रद्धा और आचार की एक-एक बात को बहुत अच्छी तरह समझा और फिर गुरु धारणा की। इतना होने पर भी अनेक वर्षों तक वे प्रच्छन्न श्रावक ही रहे। प्रकट रूप से तेरापंथी बनने पर उन्हें सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। वह समय ही ऐसा था। केसरजी उस अनाहूत झंझट से बचना चाहते थे। वे इससे डरते थे ऐसा तो संभव नहीं लगता पर बचा जा सके तब तक बचना ही पसंद करते थे। ऐसी स्थिति एक पूर्ण रूप से समर्थ व्यक्ति के सामने थी। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि साधारण जन के लिए तेरापंथी बनना उस समय कितना खतरों से भरा हुआ था।
*केसरजी ने वर्षों तक प्रच्छन्न श्रावक बने रहने के बाद किस प्रकार धर्मसंघ की सामयिक सेवा की...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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★ *परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर ने अनशनपूर्वक प्रयाण करने वाली साध्वी श्री मुक्तिप्रभा जी (सिरसा) को 'तपोमूर्ति शासन श्री' अलंकरण प्रदान किया है।*
दि 22/12/2017
🙏🏻 संप्रसारक 🙏🏻
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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