16.12.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 16.12.2017
Updated: 19.12.2017

Update

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*17/12/17* दक्षिण भारत मे मुनि वृन्द, साध्वी वृन्द व समणी वृन्द का सम्भावित विहार/ प्रवास
दर्शन सेवा का लाभ लें
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी* *के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ठाणा* 2 का प्रवास *O.Mohanraj Mandapam*
*Puthukoil*
कृष्णगीरी-गुडियातम रोड) (तमीलनाडु)
☎9003789485,9366111160
9443235611
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*Bansilal ji Pitaliya*
7 th Road
K.R Nager (कर्नाटक)
☎9901135937,9448385582
9886872447,9886872448
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*पूर्व सरपंच के निवास स्थान*
*Pillayar Patti* (Tanjore)
*तिरची तंजावुर रोड (तमिलनाडु* 620017)
☎ 8107033307
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*डॉ. मुनि श्री अमृतकुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*जैन भवन*
*तिरूकलीकुन्ड्रम* (पक्षीतीर्थ),(तमिलनाडु)
☎9786805285,9443247152
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*Sevati Appointment*
Near Jalaram Mandir
Gujarati Street,South Beach Road
*Calicut*(केरला)
☎9672039432,9447606040
9847303267
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितिय' ठाणा ५* का प्रवास
कोलार से 10 km का विहार कर करीयप्पा स्कूल *उदकोला* गांव पधारेंगे
कोलार- केजीफ हाईवे
(कर्नाटक)
☎8890788494
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा ५* का प्रवास
*Laxmi Chand ji Bhandari*
Flat No 204 2nd Floor
Pushpanjali Apartment 1st Cross Next To Canara Bank *Chamrajpet* Bangalore 18
☎9844002852,9620710283
26601319,9916378129
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री सत्यवती जी ठाणा 4* का प्रवास
*मवाला*सरकारी स्कूल से विहार करके अग्रवाल हाऊस *अदिलाबाद* पधारेगे
*हैदराबाद- नागपुर रोड* (तेलंगाना)
☎9959037737
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ सभा भवन*
*मिंजुर* (तमिलनाडु)
☎9444726501,9884200325
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*जैनघर्म शाला*
*Tirunelveli Town*
(तमिलनाडु)
☎ 9443031462,9443120339
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*सिंघनुर*(कर्नाटक)
☎7230910977,8830043723
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
डुंगरचंदजी के फार्म हाउस से विहार करके *उदवाली गाँव* तिपिरण फार्म हाउस पधारेगे हिरियुर से 7 km दूर है
☎9448131641
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मघुस्मिता जी ठाणा 7* का प्रवास
*मागडी पालीया गांव स्कूल में*
श्रवणबेलगोला - बैगलोर रोड (कर्नाटक)
☎7798028703
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*आचार्य श्री महाश्रमणजी* *की सुशिष्या* *समणी निर्देशिका चारित्रप्रज्ञाजी* *एवं सहवर्तिनी समणीवृन्द का प्रवास*
*BHAWARLAL MARLECHA*
T.V ROAD, NEAR SHRI MITHAI
*CHETPET* *CHENNAI - 600031*
*☎: 9840092161, 28362162*
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प्रस्तुति:- 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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Update

👉 राजमहेन्द्रवरम - जैन संस्कार विधि के बढ़ते कदम

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

Source: © Facebook

*पुज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 *जमशेदपुर (टाटानगर) की सीमा में अखंड परिव्राजक का मंगल प्रवेश* 🌸

👉 *-मनुष्य गति के आयुष्य बंध के चार कारणों को आचार्यश्री ने किया विश्लेषित*

दिनांक - 16-12-17

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 221* 📝

*सरस्वती-कंठाभरण आचार्य सिद्धसेन*

*साहित्य*

*सन्मतितर्क* यह ग्रंथ आचार्य सिद्धसेन की प्राकृत रचना है। उस समय आगम समर्थक जैन विद्वान् प्राकृत भाषा को पोषण दे रहे थे। संभवतः इन विद्वानों की अभिरुचि का सम्मान करने के लिए 'सन्मतितर्क' का निर्माण सिद्धसेन में प्राकृत भाषा में किया। नय का विशद विवेचन, तर्क के आधार पर पांच ज्ञान की परिचर्चा, प्रतिपक्षी दर्शन का भी सापेक्ष भूमिका पर समर्थन तथा सम्यक्त्व स्पर्शी अनेकांत का युक्ति पुरस्सर प्रतिपादन इस ग्रंथ का प्रमुख विषय है। प्रमाण विषयक सामग्री को प्रस्तुत करने वाला यह सर्वप्रथम जैन ग्रंथ है। इस ग्रंथ के 3 कांड और 167 गाथाएं हैं। प्रथम कांड में 54 गाथाएं हैं और इसमें नयवाद का विशद विवेचन है। नयों का गंभीर तलस्पर्शी अध्ययन करने वालों को यह कांड समुचित सामग्री प्रस्तुत करता है। दूसरे कांड की 43 गाथाएं हैं। पांच ज्ञान का समुचित विवेचन एवं प्रत्यक्ष, परोक्ष ज्ञान की व्याख्या इनमें उपलब्ध है। तृतीय कांड की 70 गाथाएं हैं। इसमें ज्ञेय तत्त्व की चर्चा और अनेकांत तथा स्याद्वाद का वर्णन है। यथार्थ में यह ग्रंथ स्याद्वाद का अनुपम खजाना है।

इस ग्रंथ में आचार्य सिद्धसेन ने सर्वज्ञ के केवलज्ञान और केवलदर्शन में अभेद सिद्ध किया है। युगपत् ज्ञानद्वयी का यह समर्थन सिद्धसेन का सर्वथा मौलिक था। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने इस मान्यता का विरोध किया। मल्लवादी ने इसका समर्थन किया और यशोविजयजी ने ज्ञान बिंदु विवरण में इन तीनों आचार्यों की मान्यताओं को विविध नयों के आधार पर सिद्ध कर स्याद्वाद को पुष्ट किया।

*न्यायावतार* गौतम ऋषि द्वारा न्यायसूत्र की रचना के बाद न्यायशास्त्र की उपयोगिता बढ़ रही थी। इस उपयोगिता की पूर्ति में आचार्य सिद्धसेन ने न्यायावतार ग्रंथ की रचना की। यह बत्तीस श्लोकों की न्याय विषयक मौलिक रचना है। जैन न्याय ग्रंथों में संस्कृत भाषा का यह प्रथम ग्रंथ है। उत्तरवर्ती ग्रंथों पर इस न्याय ग्रंथ का प्रभाव स्पष्ट है। आचार्य सिद्धर्षि ने इस ग्रंथ पर 2073 श्लोकों की टीका और आचार्य भद्रेश्वर सूरि ने 1053 श्लोकों का टिप्पण लिखा है। अंग्रेजी संस्करण भी इस ग्रंथ के प्रकाशित हुए हैं। जैन न्याय का यह आदि ग्रंथ है। इसकी भाषा सुललित और प्रभावमयी है। आगमों में बीज रुप से प्राप्त प्रमाण एवं नयों का आधार लेकर बत्तीस अनुष्टुप् श्लोकों में न्याय जैसे गंभीर विषय को प्रस्तुत कर देना उनकी प्रतिभा का चमत्कार है।

*आचार्य सिद्धसेन द्वारा रचित कल्याण मंदिर स्तोत्र* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 221* 📝

*सरस्वती-कंठाभरण आचार्य सिद्धसेन*

*साहित्य*

*सन्मतितर्क* यह ग्रंथ आचार्य सिद्धसेन की प्राकृत रचना है। उस समय आगम समर्थक जैन विद्वान् प्राकृत भाषा को पोषण दे रहे थे। संभवतः इन विद्वानों की अभिरुचि का सम्मान करने के लिए 'सन्मतितर्क' का निर्माण सिद्धसेन में प्राकृत भाषा में किया। नय का विशद विवेचन, तर्क के आधार पर पांच ज्ञान की परिचर्चा, प्रतिपक्षी दर्शन का भी सापेक्ष भूमिका पर समर्थन तथा सम्यक्त्व स्पर्शी अनेकांत का युक्ति पुरस्सर प्रतिपादन इस ग्रंथ का प्रमुख विषय है। प्रमाण विषयक सामग्री को प्रस्तुत करने वाला यह सर्वप्रथम जैन ग्रंथ है। इस ग्रंथ के 3 कांड और 167 गाथाएं हैं। प्रथम कांड में 54 गाथाएं हैं और इसमें नयवाद का विशद विवेचन है। नयों का गंभीर तलस्पर्शी अध्ययन करने वालों को यह कांड समुचित सामग्री प्रस्तुत करता है। दूसरे कांड की 43 गाथाएं हैं। पांच ज्ञान का समुचित विवेचन एवं प्रत्यक्ष, परोक्ष ज्ञान की व्याख्या इनमें उपलब्ध है। तृतीय कांड की 70 गाथाएं हैं। इसमें ज्ञेय तत्त्व की चर्चा और अनेकांत तथा स्याद्वाद का वर्णन है। यथार्थ में यह ग्रंथ स्याद्वाद का अनुपम खजाना है।

इस ग्रंथ में आचार्य सिद्धसेन ने सर्वज्ञ के केवलज्ञान और केवलदर्शन में अभेद सिद्ध किया है। युगपत् ज्ञानद्वयी का यह समर्थन सिद्धसेन का सर्वथा मौलिक था। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने इस मान्यता का विरोध किया। मल्लवादी ने इसका समर्थन किया और यशोविजयजी ने ज्ञान बिंदु विवरण में इन तीनों आचार्यों की मान्यताओं को विविध नयों के आधार पर सिद्ध कर स्याद्वाद को पुष्ट किया।

*न्यायावतार* गौतम ऋषि द्वारा न्यायसूत्र की रचना के बाद न्यायशास्त्र की उपयोगिता बढ़ रही थी। इस उपयोगिता की पूर्ति में आचार्य सिद्धसेन ने न्यायावतार ग्रंथ की रचना की। यह बत्तीस श्लोकों की न्याय विषयक मौलिक रचना है। जैन न्याय ग्रंथों में संस्कृत भाषा का यह प्रथम ग्रंथ है। उत्तरवर्ती ग्रंथों पर इस न्याय ग्रंथ का प्रभाव स्पष्ट है। आचार्य सिद्धर्षि ने इस ग्रंथ पर 2073 श्लोकों की टीका और आचार्य भद्रेश्वर सूरि ने 1053 श्लोकों का टिप्पण लिखा है। अंग्रेजी संस्करण भी इस ग्रंथ के प्रकाशित हुए हैं। जैन न्याय का यह आदि ग्रंथ है। इसकी भाषा सुललित और प्रभावमयी है। आगमों में बीज रुप से प्राप्त प्रमाण एवं नयों का आधार लेकर बत्तीस अनुष्टुप् श्लोकों में न्याय जैसे गंभीर विषय को प्रस्तुत कर देना उनकी प्रतिभा का चमत्कार है।

*आचार्य सिद्धसेन द्वारा रचित कल्याण मंदिर स्तोत्र* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 45* 📝

*मनजी पोरवाल*

*श्रद्धा और दबाव*

मनजी पोरवाल उदयपुर निवासी श्रावक थे। मूलतः वे मारवाड़ के रहने वाले थे, परंतु व्यापार आदि के निमित्त बाद में उदयपुर में ही बस गए। वहां उनका अच्छा व्यापार चलता था। आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ थी। महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ गहरी जान-पहचान थी कार्यवश यदा-कदाचित् महाराणा से मिलने का भी अवसर आता रहता था।

धार्मिक दृष्टि से वे स्वामी भीखणजी के श्रद्धालु श्रावक थे। उन्होंने जैन तत्त्वज्ञान को स्वामीजी की व्याख्या के प्रकाश में अच्छी तरह से समझा था। तेरापंथ का वह उद्गम काल था, अतः हर प्रगति के साथ कोई न कोई संघर्ष अनिवार्य रूप से जुड़ा ही रहता था।

उस समय प्रायः हर व्यक्ति को तेरापंथी बनने में और फिर बने रहने में अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता था। मनजी को भी उन स्थितियों से गुजरना पड़ा। जब वे तेरापंथी बने तब अन्य संप्रदाय वालों को उनका वह कार्य बहुत अखरा, परंतु विभिन्न प्रकार से सामाजिक दबाव डालने पर भी वे उन्हें उस मार्ग से विरत नहीं कर पाए।

एक बार स्वामी भीखणजी का उदयपुर में पदार्पण हुआ तब मनजी को उनकी सेवा का अपूर्व अवसर प्राप्त हुआ। वे स्वयं तो उस अवसर का लाभ उठाते ही थे साथ में अपने परिचितों को भी उसके लिए प्रेरित करते रहते थे। उनकी यह प्रेरणा अनेक व्यक्तियों के लिए सम्यक् बोध पाने का हेतु बनी। अन्य लोगों के लिए यह सब कुछ एक प्रकार से असह्य हो गया। वे उदयपुर में तेरापंथ के प्रभाव को बढ़ने देना नहीं चाहते थे। उन्होंने अनेक उपायों द्वारा स्वामीजी के संपर्क में आने वाले लोगों को रोकना चाहा, परंतु वे उसमें कृतकार्य नहीं हो पाए। उन लोगों ने तब स्वामीजी को ही वहां से निकलवा देने का षड्यंत्र प्रारंभ किया। उक्त विद्वेषी व्यक्तियों में कुछ समाज मान्य और पहुंच वाले भी थे। उन्होंने स्वामीजी के विरुद्ध महाराणा के कान भरने प्रारंभ किए। स्वामीजी को धर्मविरोधी, दयादान उत्थापक तथा अधर्म प्रचारक के रुप में प्रस्तुत करते हुए महाराणा से कहा कि यदि ऐसे व्यक्ति नगर में रहेंगे तो अवश्य ही कुछ न कुछ अनिष्ट होने की संभावना है। विभिन्न व्यक्तियों और विभिन्न प्रकारों से वे लोग इस प्रकार के विचार नियमित रूप से महाराणा के पास पहुंचाते रहे। सैकड़ों बार दोहरा-दोहरा के कही गई असत्य बात भी सत्य प्रतीत होने लगती है, अतः महाराणा के मन पर उस असत्य प्रसार का प्रभाव हुआ और उन्होंने स्वामी भीखणजी को वहां से चले जाने का आदेश दे दिया।

*आदेश की वापसी*

संयोगवश मनजी पोरवाल को तत्काल ही उस आदेश का पता लग गया। महाराणा का हरकारा (संदेशवाहक) स्वामीजी के पास पहुंच कर उन्हें महाराणा के आदेश से अवगत कराए और स्वामीजी उस पर अमल करें, उससे पूर्व ही मनजी महाराणा से मिले और उन्होंने स्वामीजी तथा उनके मंतव्यों के विषय में महाराणा को अवगत किया। लोगों द्वारा लगाए गए आक्षेपों का भी उन्होंने स्पष्टीकरण किया। महाराणा ने जब सारी बातें अच्छी तरह से समझ लीं तब उन्होंने अपना आदेश वापस ले लिया।

*जागरूक श्रावक*

मनजी पोरवाल कि वह सेवा बड़ी सामयिक और आवश्यक थी। उदयपुर निवासियों के लिए वह बहुत लाभदायक सिद्ध हुई। उससे अनेक नए व्यक्तियों को स्वामीजी का संपर्क करने और धर्म के रहस्य को समझने का अवसर प्राप्त हुआ। उसके साथ ही विरोधी लोगों को अपनी शक्ति और पहुंच का जो अहंकार था, वह चूर-चूर हो गया। उन्हें अवश्य ही समझ लेने के लिए विवश होना पड़ा कि बिल्ली के चाहे छींके नहीं टूटा करते।

श्रावक मनजी के इस सेवा को तेरापंथ के श्रावक वर्ग की जागरूकता और कर्तव्य परायणता का ही एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण कहा जा सकता है।

*परिक्षोत्तीर्ण श्रावक जयचन्दजी पोरवाल के प्रेरणादायी व्यक्तित्व* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi

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दक्षिणांचल युवा सम्मेलन
🙏🏻*भावभरा आमंत्रण*🙏🏻
*अवसर*
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★ दक्षिणांचल युवा सम्मेलन का होगा भव्य आयोजन आज से सिंधनूर (कर्नाटक) में..

★ सिंधनूर की पावन धरा स्वागत करने हेतु है तैयार..🙏🏻

★ साध्वी श्री सुदर्शनाश्री जी द्वारा रचित एवं 'श्रधानिष्ठ श्रावक" श्री कमल सेठिया द्वारा समधुर स्वर में प्रस्तुत *"दक्षिणांचल युवा सम्मेलन गीतिका"*..

प्रसारक: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम

👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "कान्द्रबेड़ा" पधारेंगे

👉 आज का प्रवास - सिल्वर सेण्ड रिसोर्ट, कान्द्रबेड़ा, जिला - सरायकेला (झारखण्ड)

दिनांक: 16/12/2017

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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  7. भाव
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