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Osam bhajan -ऋषभदेव भगवान तपस्थली इलाहाबाद- बनारस हाईवे (निकट अंदावा) @ इलाहाबाद (प्रयाग):उत्तर प्रदेश #Prayag #AryikaGyanmati
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⊱✿ UN-Conditional affection toward every living being like Cow's Love to her calf, It is an affirmation to protect. Vātsalya [UN-Conditional Affection] is also a crux of the Jainism philosophy. It should not change circumstantially. Be Genuine and Let Spread Peace in D air. ✿⊰
अपने समाज के प्रति,छल कपट रहित,सदभाव सहित यथोचित स्नेहमयी प्रवृत्ति को वात्सल्य अंग कहते हैं!
सभी के साथ सच्चे दिल से प्रेम करना और समुचित व्यवहार के द्वारा यह दिखलाते रहना कि हम आपके ही हैं,बस इसी का नाम वात्सल्य अंग है! किसी को भी वश मे करने का उपाय है तो परस्पर का प्रेम है! मजबूत से मजबूत लोहे के सांकल को मनुष्य तोड़ सकता है,परन्तु प्रेम के बंधन को नही तोड़ सकता! देखो,जो भौरा कठिन से कठिन काठ मे भी छेद कर डालता है,वह कमल के अंदर पड़ा हुआ अपने प्राण तक दे देता है,इसमें क्या कारण है? है तो यही कि उसका उस से प्रेम है! इसीलिए उसे जरा भी तकलीफ न देकर अपने प्राण तक दे देता है!
"पाँव पिचानि मोचडी,नयन पिछाणी नेह " अर्थात अन्धकार मे भी हम अपनी जूतियों को अपने पैरों मे पहनकर पहचान लेते हैं! अपनी जूतियाँ अपने पैरों मे जैसे ठीक बैठती हैं,वैसी दूसरों की नही बैठती! उसी प्रकार सामने वाले के प्रति हमारा प्रेम है कि नही ये हम उसके नेत्रों की तरफ गौर से देखकर पहचान लेते हैं,जां सकते हैं! किसी भी को दुखों दरिद्र व्यक्ति को देखकर उसकी मदद करने मे जी जान से जुट जाता है,यही वात्सल्य अंग है!
मतलब यह है कि भला आदमी दुनिया को अपनाते हुए अपने से प्रतिकूल चलने वाले को भी रास्ता सुझाते हुए प्रसन्नता पूर्वक चलता है और विश्व भर मे अपनी छवि बनाता है!
*In Thsi pic Ach. Sri GyaanSagara Je [Preceptor/godfather of Ach. VidyaSagara Je] & Acarya Sri VidyaSagara Ji....
SOURCE - "रत्न करंड श्रावकाचार "मानव धर्म आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी, हिन्दी व पद अनुवाद: आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी, copied from http://www.teerthankar.blogspot.in/ [Mr. Rajesh Jain blog]
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News in Hindi
जिज्ञासा_समाधान About COW 🐮 @ मुनि सुधासागर जी -शिष्य आचार्य विद्यासागर जी #Dont_Send_Cow_Slaughter_House
गायों को काटने में जितना हाथ कसाइयों का है, उससे ज्यादा उन लोगों का है, जो गाय का दूध पीने के बाद दूध न देने पर गायों को लावारिस छोड़ देते हैं, या कसाई को बेच देते हैं। गाय यदि खूंटे पर मरती है, तो वह वरदान देकर मरेगी। उसे कसाई के हाथों बेचने वालों को उसकी ऐसी बद्दुआ लगती है, कि लोग जन्म से अनाथ हो जाते हैं। उनका समूल वंश का नाश हो जाता है। गायों के संरक्षण के लिए हमें जन जागरण करना होगा। गौ रक्षकों को गांव-गांव जाकर गाय के प्रति लोगों में संवेदना भरना पड़ेगी। हम कत्लखानों को खुलने से नहीं रोक सकते तो कम से कम गौशालाएं खोलकर उन्हें कटने से बचाने का पुरुषार्थ तो कर ही सकते हैं। comment box me 'Ahinsa Parmo Dharma' likhkar apni sahmati de
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जैन धर्म में गाय की महत्ता #Cow #AnimalLove #Vegetarian #Vegan आज पूरे देश में जैन समाज द्वारा लगभग पांच हज़ार से अधिक गो शालाएं संचालित हैं |
जैन धर्म का मूल अहिंसा है अतः जैन धर्म सभी जीवों की हत्या और उनके मांस सेवन का कड़ा निषेध करता है | जैन उसे एक पवित्र पशु मानते हैं तथा उसका माता के समान सम्मान भी करते हैं | उसकी बहुविध उपयोगिता के कारण अन्य पशुओं की अपेक्षा उसके प्रति जैनों में बहुमान भी अधिक है |जैन मुनियों की पवित्र एवं कठिन आहारचर्या में भी तुरंत दुहा हुआ और मर्यादित समय में उष्ण किया हुआ गो दुग्ध श्रेयस्कर माना गया है
तीर्थंकर ऋषभदेव के काल से ही जैन गो रक्षा में सक्रिय हैं । उन्होंने कृषि करो और ऋषि बनो का सन्देश दिया था |उस काल में विशाल गोशालाएँ निर्मित हुईं और गो पालन को जीवन शैली बनाया गया । सभी पशुओं सहित गायों पर भी क्रूरता, उन्हें भूखा रखना, बोझ से लादना, अंग भंग, सभी पर कानूनी प्रतिबंध था ।
अर्धमागधी प्राकृत भाषा में रचित जैन आगमों के अनुसार महावीर के काल में गायों की संख्या से किसी के धन का आकलन होता था । एक व्रज गौकुल में दस हज़ार(१०,०००) गायें होती थीं । महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ के वैशाली गणराज्य में सर्वाधिक गायों के १० स्वामियों को ‘राजगृह महाशतक’ एवं ‘काशिय -चुलनिपिता’ कहा जाता था ।महावीर ने अपने प्रत्येक अनुयायियों को ६०,००० गायों के पालन का उपदेश दिया था ।भगवान् महावीर के प्रमुख भक्त आनंद श्रावक ने आठ गोकुल संचालित करने का संकल्प लिया था ।
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