13.12.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 13.12.2017
Updated: 14.12.2017

Update

नीम और गाय स्वस्थ्य के लिए अमृत सम -आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की नीम का वृक्ष बहुत उपयोगी होता है उसकी छाल से बनी जडीबुटी से बड़े से बड़े रोगों, विभिन्न बिमारियों का उपचार संभव है | वृक्ष oxygen छोड़ते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं जिससे हमें प्राण वायु प्राप्त होती है | नीम का फल कडुवा होता है परन्तु उसका स्वास्थ्य के लिए लाभ बहुत है | नीम की शाखायें एवं टहनी का उपयोग दातून आदि के लिए भी उपयोग किया जाता है | इस प्रकार नीम का वृक्ष मनुष्य एवं प्रकृति के लिए बहुत लाभकारी है जिसे पहले के लोग अपने आँगन में लगाते थे और स्वस्थ्य रहते थे आज आप लोग इस ओर ध्यान नहीं देते हैं और कई छोटी - बड़ी बिमारियों से ग्रषित हो जाते हैं |

गाये जो बहुत भोली - भाली मुख वाली जिसे हम गईया भी कहते हैं वह हमारे लिए अत्यंक दुर्लभ है क्योंकि वह हमेशा 24 घंटे प्राण वायु oxygen ग्रहण करती व छोड़ती है | उसके सिंह की कीमत सोने से भी ज्यादा है यदि आज सोना तीस हज़ार रुपये है तो उसकी किमान एक लाख से भी अधिक है | गाये के दूध में स्वर्ण होता है उसका सेवन अमृत सम होता है | घर में गाये होने से घर का पूरा वातावरण पवित्र हो जाता है | गाये द्वारा ऐसी क्या राशायनिक क्रिया की जाती है जिससे वह प्राण वायु oxygen ग्रहण करती व छोड़ती है यह विचारणीय है | यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।

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#जिज्ञासा_समाधान very Important question answer मुनि श्री सुधासागर जी द्वारा:) #MuniSudhasagar

-एक जैनी को भोजन करते समय यदि मांसाहार का दर्शन भी हो रहा है, तो वह भोजन कदापि नहीं कर सकता, उसे ऐसे स्थान से हटकर ही भोजन करना चाहिए।* ज्हां सामने कोई नॉनवेज खा रहा है, अंडे खा रहा है, ऐसे व्यक्ति के सामने यदि तुम वेज खाना भी खाते हो, तो महादोष के भागी हो।

आज लोग तर्क देते हैं, कि वनस्पति आदि में भी एक इन्द्रिय जीव है, तब उन्हें खाते हैं तो मांस खाने में क्या बुराई है? *जीवो को मारकर खाना और बनस्पति को खाने में अंतर है। वनस्पति जीवो की विराधना व अन्य जीवो की विराधना में अंतर होता है। वनस्पति काय जीव एक इंद्रिय कर्मफल चेतना से जीते हैं। उनका कोई परिवार नही है, वनस्पति को उबालने के बाद उसमें एक समय तक कोई जीव की उत्पत्ति नहीं होती। मांस आदि में निरंतर अपने निगोदिया जीवो की उत्पत्ति होती रहती है। पशु आदि का सेवन करने वाले महा पापी ही कहलाएंगे।

यदि किसी श्रावक को छुआ-छूत की या संक्रमित बीमारी है, अथवा शरीर में किसी फोड़े-फुंसी आदि से कोई रिसाव हो रहा है, तो उसे अभिषेक नहीं करना चाहिए।* मात्र गंधोदक को श्रद्धा के साथ मस्तक पर लगाना चाहिए। फोड़े फुंसी आदि पर गंधोदक नहीं लगाना चाहिए।_

🥀 _*धरणेन्द्र-पद्मावती ने पार्श्वनाथ का उपसर्ग दूर किया सो वह आपकी रक्षा करने आएंगे, ये बात नही, बल्कि नाग-नागिन की रक्षा पार्श्वनाथ ने की थी, इसलिए धरणेंद्र पद्मावती को उनकी रक्षा के लिए आना पड़ा। यह उन पर पार्श्वनाथ के प्रति उपकारी भाव था।* यदि उपकारी भाव ना होता, तो उन्हें कोई बचाने नहीं आता। *भगवान सुपार्श्वनाथ पर देव ने उपसर्ग किया, परंतु वहाँ कोई उन्हें बचाने नहीं आया।उपसर्ग होते-होते उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया, और उपसर्ग अपने आप दूर हो गया।*_

🥀 _*दान की घोषणा कर के नाम वापस लेना बहुत बड़ा पाप है। लोग थोड़े पैसे देकर, अपना नाम कमरा निर्माणकर्ता के रुप में लिखवाते हैं, यह भी बहुत बड़ा दोष है। आपको कम से कम उतना पैसा देना चाहिए, जितना उसके निर्माण में खर्च आया है। यदि आप कम पैसा देते हैं, तो उसके लिए निर्माण न लिखा कर, सहयोग किया शब्द लिखवाना चाहिये।*_
_जो लोग थोड़ा सी द्रव्य सामग्री देकर, अधिक चढ़ाते हैं, वह निश्चित रूप से निर्माल्य के दोषी हैं। धर्म क्षेत्र में हमेशा ध्यान रखना चाहिए, जितना उपयोग आपके द्वारा किया जा रहा है, उससे ड्योढ़ा ही देना चाहिए।_

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आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज @ गिरनार सिद्ध क्षेत्र भगवान नेमिनाथ जी की केवलज्ञान तथा मोक्ष भूमि। राज़ूल की तप स्थली!!! #Girnar #BhagwanNeminatha #AcharyaGyansagar

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