10.12.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 10.12.2017
Updated: 12.12.2017

Update

मन से करो मन का मत करो -आचार्य श्री विद्यासागर जी

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की समन्वय से गुणों में वृद्धि हो तो वह सार्थक है किन्तु यदि समन्वय से गुणों में कमी आये तो वह समन्वय विकृत कहलाता है | उदाहरण के माध्यम से आचार्य श्री ने समझाते हुए कहा की यदि दूध में घी मिलाया जाये तो वह उसके गुणों को बढाता है जबकि दूध में मठा मिलाते हैं (कुछ लोग कहते हैं दूध भी सफ़ेद होता है और मठा भी सफ़ेद होता है) तो वह विकृति उत्पन्न कर देता है | मठा में यदि घी मिलाया जाये तो वह अपचन कर सकता है परन्तु उसी घी का यदि बघार मठा में मिलाया जाये तो वह पाचक तो होगा ही और उसके स्वाद में भी वृद्धि हो जायेगी | इसी प्रकार सुयोग समन्वय से गुणों में वृद्धि होती है | आप लोग कहते हो डॉक्टर के पास जाना है डॉक्टर तो उपाधि होती है एलोपेथिक चिकित्सा के लिए चिकित्सक होता है और आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए वैद्य या वैदराज होता है जो आज कल कम सुनने को मिलता है | वर्तमान में आपकी तबियत खराब हो जाये या शरीर में कोई तकलीफ आ जाये तो आप लोग दवाइयों का सेवन करते हो जबकि पहले के लोग भोजन को ही औषधि के रूप में सेवन करते थे और उनकी दैनिक चर्या ऐसी होती थी की वे कभी बिमार ही नहीं पड़ते थे | डॉक्टर और बीमारी दोनों उनके पास आने से डरती थी | आप लोग सभी जगह आने - जाने में वाहन का उपयोग करते हो इसकी जगह यदि आप पैदल चलें तो आपकी आधी बीमारी तो यूँ ही दूर हो जायेगी | आचार्य श्री ने कहा की ‘’मन से करो मन का मत करो ‘’| आपको यदि स्वादानुसार अच्छा भोजन मिल जाये तो आप उसका सेवन आवश्यकता से अधिक कर लेते हैं जिससे आपका पेट कहता तो नहीं है परन्तु आपको एहसास होता है की पेट अब मना कर रहा है परन्तु आप फिर भी अतिरिक्त सेवन करते हैं तो उसे पचाना मुश्किल होता है और फिर आपको उसे पचाने के लिए पाचक चूर्ण या दवाई आदि का उपयोग करना पड़ता है | आप लोगों से अच्छे तो बच्चे है जो पेट भरने पर और खाने से तुरंत मन कर देते हैं | इसलिए दोहराता हूँ की ‘’मन से करो मन का मत करो’’|

गृहस्थ में धर्म, अर्थ और काम होता है जबकि मोक्ष मार्ग में केवल संयम ही होता है | मुमुक्षु की सब क्रियायें गृहस्थ के विपरीत होती है जैसे आप बैठ के भोजन लेते हैं जबकि मुमुक्षु खड़े होकर आहार लेते हैं आप थाली में परोस कर लेते हैं जबकि मुमुक्षु कर पात्र (दोनों हांथ मिलाकर) करपात्र में आहार लेते हैं | आपको सोने के लिए आराम दायक बिस्तर, तकिया आदि की आवश्यकता होती है जबकि मुमुक्षु लकड़ी के चारपाई, भूमि आदि में शयन करते हैं | आप लोग जब मन चाहे चट - पट जितनी बार चाहो खा सकते हो जबकि मुमुक्षु दिन में एक बार ही आहार करता है | इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में वीतरागी देव, शास्त्र और गुरु का समन्वय आवश्यक है तभी कल्याण होना संभव है | यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।

News in Hindi

#BIG_BREAKING_NEWS

2006 में टांटोटी अजमेर में निकला जैन पुरातत्व जिसमे 50 से ऊपर जैन प्रतिमाएँ थी उनका होगा 1 जनवरी को ज्ञानोदय क्षेत्र नारेली में महामस्तकाभिषेक, आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के सुशिष्य श्री सुधासागरजी महाराज ससंघ सानिध्य मे दिनांक 1 जनवरी 2018 से 3 जनवरी 2018 तक श्री ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र नारेली अजमेर मे भूगर्भ से प्राप्त 50 प्रतिमाएं का महामस्तकाभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। #AcharyaVidyasagar #MuniSudhasagar

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. आचार्य
          Page statistics
          This page has been viewed 418 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: