21.11.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 21.11.2017
Updated: 23.11.2017

Update

*22/11/17* दक्षिण भारत मे मुनि वृन्द, साध्वी वृन्द का सम्भावित विहार/ प्रवास
दर्शन सेवा का लाभ लें
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी* *के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ठाणा* 2का प्रवास
Paras Jain.
# 120 3rd Cross. Vidhyanagar Opp. S.K.F. Next to Bata Showroom, Bommasandra. Bengaluru - 99.
होसा रोड से विहार प्रातः 6 बजकर 05 मिनट पर
☎8884219884.8050281468,8105066401,
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*Gherilal Ji Katariya*
Nakoda nivas
Gannagara Street
Pandavpura taluk
Mandya Dist
☎9964524973
,8792614459
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*Jain terapanth bhawan*
Chitappa avenue
Rayapuram extn
*Tirupur -1*
☎ 8107033307,
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*डॉ. मुनि श्री अमृतकुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*रास्ते मे*
*वानरोड*
☎9500300212
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा 2* का प्रवास
*”Karapgam Collage से प्रातः 6:40 बजे विहार करके "J G Complex,SBI,Navakarai"Coimbatore पधारेंगे*
☎ 7200690967
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितिय' ठाणा ५* का प्रवास
*वसन्तनगर-श्री महावीरजी धाेका*
के यहां से विहार कर
*फ्रेजर टाउन स्थित श्री नरेन्द्र जी धोका* के यहां पधारेंगे ।
विहार प्रातः 8 बजे
☎8890788494,9341241680
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा ५* का प्रवास
*G C Nahata*
#880 Near Pristine Hospital
Modi Hospital Road
Bangalore
☎9972381111,23226064
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री सत्यवती जी ठाणा 4* का प्रवास
*नरसिंगी कोलेज*
*हैदराबाद- नागपुर रोड*
☎9959037737
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास
*समता भवन*
168, G. A. ROAD Tondiairpet chennai.
☎ 9380752141,9884200325
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*नौरतनमल डागा*
का निवास स्थान
४५, वैलायुदम रोड(VSV नगर)
मेहता स्कूल के पास,
*सिवाकासी*
☎91 9443327831
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धीश्री जी ठाणा 3* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*हिरियुर*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*सिंघनुर*
☎7230910977,8830043723
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मघुस्मिता जी ठाणा 7* का प्रवास
*शंकर जी पटेल के निवास स्थान*
*तेरापंथ भवन*
*हासन*
☎7798028703
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*आचार्य श्री महाश्रमणजी* की सुशिष्या *समणी निर्देशिका चारित्रप्रज्ञाजी* एवं सहवर्तिनी समणीवृन्द का प्रवास
Sri jain swethamber Terapanth trust (S H G Terapanth bhavan)
38/ New No 50 Singarachari street near Krishna sweets Triplicane chennai -5
☎ 9840143333
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प्रस्तुति:- 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 अहमदाबाद - तेरापंथ महिला मंडल सम्मानित
👉 अहमदाबाद - नए युग मे करे प्रवेश कार्यशाला का आयोजन
👉 विशाखापट्टनम - जैन संस्कार विधि के बढ़ते कदम
👉 मुम्बई - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

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Update

*पुज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 *श्री अमृत आश्रम से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने की अमृतवाणी की बरसात*

👉 *-अमृतवाणी का श्रवण कर कृतार्थ हुए रानीगंजवासी, मानों प्राप्त कर लिया जीवन की अमूल्य निधि*

👉 *-काजोरा स्थित आर्ट आॅफ लिविंग आश्रम से दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे रानीगंज*

👉 *-प्रवर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण अहिंसा यात्रा के साथ आसनसोल जिले की सीमा में किया पावन प्रवेश*

👉 *-रानीगंज के अमृत आश्रम में आचार्यश्री का हुआ पावन प्रवास*

👉 *-रानीगंजवासियों ने अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी हर्षित भावाभिव्यक्ति*

दिनांक - 21-11-2017

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 203* 📝

*जैन आगम निधि-संरक्षक*
*आचार्य देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण*

आचार्य देवर्द्धिगणी का नाम जैन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। उन्होंने प्रकीर्ण आगमज्ञान को स्थायित्व प्रदान करने के लिए श्रुत लेखन का महत्त्वपूर्ण कार्य मौलिक सूझबूझ से किया। उस कार्य को समय की घनी परतें भी ढक न सकेंगी।

*गुरु-परंपरा*

नंदी सूत्र में लोहित्याचार्य की समीचीन शब्दों में प्रशस्ति हुई है। सूत्रार्थ के सम्यक् धारक, पदार्थस्थ नित्यानित्य स्वरूप के विवेचक एवं शोभन भाव में स्थित लोहित्याचार्य को बता कर उनके प्रति देवर्द्धिगणी ने हार्दिक सम्मान प्रकट किया है। इस उल्लेख से प्रतीत होता है देवर्द्धिगणी के दीक्षा गुरु लोहित्याचार्य थे।

चूर्णिकार जिनदास महत्तर ने देवर्द्धिगणी (देव वाचक) को दूष्यगणी का शिष्य माना है। देवर्द्धिगणी के शब्दों में आचार्य दूष्यगणी आगमश्रुत के ज्ञाता थे, समर्थ वाचनाचार्य थे, प्रकृति से मधुर भाषी थे, तप, नियम, सत्य, संयम, विनय, आर्जव, मार्दव, क्षमा आदि उत्तम गुणों से सुशोभित थे एवं अनुयोगधर युगप्रधान थे। उनके चरण प्रशस्त लक्षणों से युक्त सुकोमल तलवों वाले थे।

आचार्य देवर्द्धिगणी द्वारा आचार्य दूष्यगणी की ज्ञान-संपदा के साथ शरीर-संपदा का सूक्ष्म विवेचन दोनों का गुरु शिष्य जैसा नैकट्य स्थापित करता है।

टीकाकार मलयगिरि, चूर्णिकार जिनदास महत्तर और विद्वान मेरुतुङ्ग के द्वारा इसी मत का समर्थन किया गया है। मलयगिरि की टीका के अनुसार नंदी स्थविरावली आचार्य महागिरि की परंपरा है। देवर्द्धिगणी सुहस्ती की परंपरा के, नंदी आचार्य महागिरि परंपरा के हैं।

मेरुतुङ्ग ने वृद्ध संप्रदाय का आधार देकर आचार्य महागिरि की परंपरा को मुख्य माना है। उनके अभिमत से देवर्द्धिगणी 27वें पुरुष हैं। नंदी स्थविरावली देवर्द्धिगणी की गुरु परंपरा है। प्रस्तुत स्थविरावली में दूष्यगणी और देवर्द्धिगणी का क्रमशः उल्लेख है। अतः इस नंदी स्थविरावली को देवर्द्धिगणी की गुरु परंपरा मान लेने पर देवर्द्धिगणी दूष्यगणी के शिष्य हैं।

*दूष्यगणी और देवर्द्धिगणी* दोनों का गणी पदांत नाम गुरु-शिष्य होने की संभावना प्रकट करता है। जिनदास महत्तर गणी की चूर्णि और मलयगिरि की टीका में देववाचक नाम है। देववाचक देवर्द्धिगणी का ही नामांतर है।

*आचार्य देवर्द्धिगणी की गुरु-परम्परा के बारे में कुछ अन्य विद्वानों के अभिमत* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 27* 📝

*हरचंदलालजी सिंधड़*

*होनहार बिरवा*

लाला हरचंदलालजी का जन्म दिल्ली के समीपस्थ एक छोटे गांव हट्टपुरा में लाला किशनचंदजी के पुत्र के रूप में हुआ। उनकी जाति श्रीमाल और गोत्र सींधड़ था। किशनचंदजी जवाहरात का व्यवसाय किया करते थे। परंतु उस व्यवसाय में उन्होंने कोई विशेष उन्नति नहीं की। अतः घर की आर्थिक स्थिति साधारण ही रही। जब हरचंदलालजी जी माता के गर्भ में थे, उन दिनों अचानक ही उन का व्यापार चमक उठा। उन नौ महीनों में उन्होंने लगभग तीन लाख रुपयों का लाभ प्राप्त किया। उन्होंने उस समय समग्र लाभ को बच्चे का ही चमत्कार समझा। उस भाग्यशाली व्यक्ति के आगमन से परिवार की चतुर्मुखी प्रगति हुई। पारिवारिकों ने उस होनहार बिरवे के पत्तों की चिकनाई प्रारंभ से सुस्पष्ट देखी और प्रसन्नता से झूम उठे।

*जयपुर में निवास*

कालांतर में किशनचंदजी ने व्यावसायिक सुविधा के लिए जयपुर को अपना निवास स्थान बना लिया। ऐसा भी कहा जाता है कि जवाहरात के सिलसिले में जयपुर महाराजा जयसिंह से उनका परिचय हो गया। उन्होंने जयपुर बसाने के बाद उसे व्यापारियों का आकर्षण केंद्र बनाने के लिए अनेक व्यवसाय निपुण व्यक्तियों को वहां सुविधाएं देकर बसाया। उनमें एक लाला किशनचंद भी थे।

*जौहरियों के बादशाह*

हरचंदलालजी की शिक्षा जयपुर में ही हुई। बाल्यावस्था से ही वे अपने पिता के कार्य में रुचि लेने लगे। बहुत थोड़े समय में ही वे जवाहरात के काम में निपुण हो गए। उन्होंने अपने व्यवसाय को बहुत तीव्रता के साथ आगे बढ़ाया। भाग्य साथ में था, साहस की कोई कमी नहीं थी, बुद्धि और विवेक ने विश्वस्त व्यक्तियों के चुनाव में कभी धोखा नहीं दिया। व्यवस्था कर सकने के आत्मविश्वास ने उन्हें आगे बढ़ने का निमंत्रण दिया। उस युग में उन्होंने अपना व्यापार भारत के प्रायः सभी मुख्य नगरों में फैला दिया। जयपुर में तो उनकी मुख्य दुकान थी ही, उसके अतिरिक्त आगरा, दिल्ली, कलकत्ता, बम्बई, हैदराबाद और मद्रास में भी उनकी दुकानें थीं। उनकी कुल दुकानें बारह थीं। उनमें से सात तो उपर्युक्त सात नगरों में थीं, शेष पांच अन्य विभिन्न नगरों में थीं, उनका नाम उपलब्ध नहीं है। आवागमन के स्वल्प साधनों वाले उस युग में इतने दूर-दूर के नगरों में चलने वाले व्यवसाय की सुव्यवस्था करना अवश्य ही एक व्यवस्था विशेषज्ञ व्यक्ति का काम कहा जा सकता है। वह अपने युग में जौहरियों के बादशाह कहे जाने लगे थे।

*पूर्व धार्मिकता*

धार्मिक दृष्टि से उनके पूर्वज खरतर गच्छीय संविग्न आम्राय के थे। उनके पिता लाला किशनचंदजी का न केवल जैन समाज में ही अपितु अन्य समाजों में भी अच्छा सम्मान और प्रभाव था। धार्मिक क्षेत्र में लोग उनकी चर्या को अनुकरणीय माना करते थे। देव दर्शन तथा देव पूजा आदि उनकी दैनिक प्रवृत्ति के अनिवार्य अंग थे। उन धार्मिक कार्यों को संपन्न कर लेने के पश्चात् ही वे अन्य किसी गृह कार्य में प्रवृत्त होते थे। लाला हरचंदलालजी में भी पारिवारिक परंपरा के रूप में वैसे ही सुदृढ़ धार्मिक संस्कार थे।

*लाला हरचंदलालजी स्वामीजी के चरणों में कैसे उपस्थित हुए...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi

👉 अहिंसा यात्रा के बढ़ते कदम

👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "रानीगंज" पधारेंगे

👉 आज का प्रवास - रानीगंज

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

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