02.11.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 02.11.2017
Updated: 03.11.2017

Update

👉 अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष की संगठन यात्रा
📍 नगांव - अणुव्रत कार्यशाला का आयोजन
👉 कांटाबांजी - अभातेमम के तत्वावधान में ओडिशा स्तरीय उन्नयन कार्यशाला का आयोजन
👉 बिड - मराठवाड़ा विदर्भ स्तरीय श्रावक-श्राविका सम्मलेन का आयोजन
👉 कांटाबांजी - तनाव- कारण और निवारण सेमिनार का आयोजन
👉 राजरहाट, कोलकत्ता - 108 आयम्बिल तप का प्रत्याख्यान
👉 कोलकत्ता - राजभवन से हुआ उन्नयन कार्यशाला शुभारंभ का आगाज
👉 कांटाबांजी - स्वस्तिक के आकार में हुआ भव्य भक्तामर स्त्रोत्र अनुष्ठान

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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Update

👉 अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष की संगठन यात्रा
📍 तेजपुर - अणुव्रत समिती का पुर्नगठन सुशीला दुगड़ अध्यक्ष चयनित
👉 नोहर: "तप अभिनंदन समारोह" का आयोजन
👉 मंडियां - जैन हस्तकला प्रदर्शनी का आयोजन
👉 राजसमंद/राजनगर: तेरापन्थ महिला मण्डल द्वारा "कौन बनेगा प्रज्ञावान?" प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सुजानगढ़: "रिश्तो को कैसे सँवारे" कार्यशाला एवं "प्रतिभा सम्मान समारोह" का आयोजन
👉 सोलापुर - महासभा अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया की संगठन यात्रा
👉 सोलापुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 कोयम्बत्तूर: सामूहिक सामायिक साधना - कार्यशाला का आयोजन
👉 भीलवाड़ा-जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 राजरहाट, कोलकत्ता - कोलकत्ता महिला मंडल श्री चरणों मे

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 188* 📝

*अर्हन्नीति-उन्नायक आचार्य उमास्वाति*

*जीवन-वृत*

प्रभावक आचार्यों की परंपरा में उमास्वाति ऐसे आचार्य हुए हैं जिनको दिगंबर और श्वेतांबर दोनों समान भावेन सम्मान देते हैं और इन्हें अपनी परंपरा का मानने में गौरव का अनुभव करते हैं।

दिगंबर परंपरा में उमास्वाति और उमास्वामी दोनों नाम प्रचलित हैं। श्वेतांबर परंपरा में केवल उमास्वाति नाम प्रसिद्ध है।

दिगंबर ग्रंथों में गृध्रपिच्छ उमास्वाति को तत्त्वार्थ का कर्ता बताया है। पंडित सुखलाल जी ने तत्त्वार्थ सूत्र की प्रस्तावना में वाचक उमास्वाति को तत्त्वार्थ सूत्र का कर्ता माना है। गृध्रपिच्छ उमास्वाति नाम के आचार्य अवश्य हुए हैं पर उन्होंने तत्त्वार्थ सूत्र या तत्त्वार्थाधिगम शास्त्र की रचना नहीं की थी। तत्त्वार्थ के कर्ता वाचक उमास्वाति थे। श्रवणबेलगोला के शिलालेख में उमास्वाति के बालकपिच्छ नामक एक शिष्य का उल्लेख भी है।

उमास्वाति ऐसे युग में पैदा हुए जब संस्कृत भाषा का मूल्य बढ़ रहा था। जैनेतर संघों में उच्च कोटि के संस्कृत ग्रंथों का सृजन हो रहा था। जैन शासन में जैन संस्कृत विद्वानों की अपेक्षा अनुभूत होने लगी थी। इस आवश्यकता की संपूर्ति में उमास्वाति जैसे उच्चकोटिक विद्वान् की उपलब्धि जैन संघ को हुई।

उमास्वाति का जीवन कई विशेषताओं से मंडित था। ब्राह्मण वंश में उत्पन्न होने के कारण संस्कृत भाषा का ज्ञान उनको प्रारंभ से ही था। जैन आगम का प्रतिनिधि ग्रंथ *'तत्त्वार्थ सूत्र'* उनके आगम ज्ञान की गहराई को प्रकट करता है तथा जैन आगमातिरिक्त न्याय, वैशेषिक, सांख्य, मीमांसक आदि भारतीय दर्शनों के गंभीर अध्ययन की सूचना देता है। उमास्वाति के वाचक पद को देखकर श्वेतांबर परंपरा पूर्वविद् (पूर्वों के ज्ञाता) के रूप में मानती है और दिगंबर परंपरा श्रुतकेवली तुल्य सम्मान प्रदान करती है।

आचार्य उमास्वाति बेजोड़ संग्राहक थे। जैन तत्त्व के संग्राहक आचार्यों में उमास्वाति सर्वप्रथम हैं। उनके तत्त्वार्थ सूत्र में जैन दर्शन के प्रायः सभी विषयों का अनुपम संग्रह है। आगम वाणी का यह अपूर्व संग्राहक ग्रंथ है।

आचार्य उमास्वाति की संग्राहक बुद्धि से प्रभावित होकर आचार्य हेमचंद्र ने कहा 'उप उमास्वाति संग्रहीतार' (जैन तत्त्व के संग्राहक आचार्यों में उमास्वाति अग्रणी हैं)।

जनश्रुति के अनुसार उमास्वाति चामत्कारिक भी थे। उन्होंने एक बार प्रस्तर प्रतिमा के मुख से शब्दोच्चारण करवाया। आचार्य उमास्वाति का व्यक्तित्व चामत्कारिक प्रयोगों से नहीं अपितु उनकी निर्मल प्रतिभा के आधार पर चमका।

*आचार्य उमास्वाति की ग्रंथ रचना* के बारे में पढेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 12* 📝

*पेमजी कोठारी*
*(सम्वत् 1782 से 1844)*

*प्रधान के पद पर*

वर्षों से उखड़ा कोठारी परिवार पुनः अपने स्थान पर जम गया। अधिकांश लोग तो उससे प्रसन्न ही हुए, परंतु लोढा परिवार को प्रसन्नता के स्थान पर खिन्नता हुई। वह कोठारी परिवार का प्रतिद्वंदी था। पीढ़ियों से उनमें घात-प्रतिघात चलते आए थे। गोरीदासजी की मृत्यु में लोढा परिवार की शिकायतें ही मुख्य कारण बनी थीं। इसलिए उन्हें भय था की पेमजी यहां पुनः जमेंगे तो अवश्य ही बदला लेने का प्रयत्न करेंगे। उन लोगों ने प्रारंभ से ही पेमजी की जड़ उखाड़ने के प्रयास प्रारंभ कर दिए, परंतु वे उसमें सफल नहीं हुए।

पेमजी अपनी कर्मठता और कार्यकुशलता के बल पर धीरे-धीरे उन्नति करने लगे। उन्हें जो भी कार्य सौंपा गया उन्होंने उसे अत्यंत सजगता और सुचारूता से संपन्न किया। रावतजी उनकी कार्य कुशलता से बहुत प्रसन्न हुए। सर्व कार्य निष्णात समझकर कालांतर में उन्होंने उनको अपना प्रधान नियुक्त कर लिया। पेमजी ने बड़े कौशल से उस कार्य को संभाला और शीघ्र ही वहां की सब स्थितियों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।

*पिता का बदला*

पेमजी राजपूती ढंग के व्यक्ति थे। विरोधी से बदला लिए बिना उनका मन संतुष्ट नहीं होता था। पांव पर पंसेरी दे मारने में भी वे नहीं चूकते थे। अपने पिता की मृत्यु को वे भूले नहीं थे। इसलिए लोढा परिवार पर उनकी आंख थी। वे उस परिवार के व्यक्तियों की प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान रखते। उनकी प्रत्येक त्रुटि का उपयोग वे रावतजी को उनके विरुद्ध कर देने में करते। गोरीदासजी के विरुद्ध जो पद्धति लोढा परिवार ने अपनाई थी, उसी का प्रयोग पेमजी ने उन पर किया। वे उसमें सफल भी हुए, थोड़े ही दिनों में रावतजी का मन लोढा परिवार के प्रति घृणा से भर गया। उसका फल यह हुआ कि उन्होंने उस परिवार को आमेट से निकाल दिया और उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया। पेमजी को यही चाहिए था। हत्या कर देने का उनका विचार नहीं था। वे चाहते थे कि वह परिवार स्थान च्युत होकर अभाव और घुटन का जीवन जीए।

*पेमजी के जीवन का एक प्रसंग 'झूला-कांड'* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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