01.11.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 01.11.2017
Updated: 02.11.2017

Update

Source: © Facebook

दिनांक 01-11-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..

प्रस्तुति - अमृतवाणी

सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

Update

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 187* 📝

*अर्हन्नीति-उन्नायक आचार्य उमास्वाति*

गतांक से आगे...

मैसूर नगर ताल्लुका के 46 नंबर के शिलालेख में एक श्लोक आया है—

*तत्त्वार्थसूत्र कर्तारमुमास्वातिमुनीश्वरम्।*
*श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम्।।*

इस श्लोक में 'श्रुतकेवलिदेशीय' विशेषण आचार्य उमास्वाति के लिए प्रयुक्त हुआ है। यही विशेषण यापनीय संघ के अग्रणी वैयाकरण शाकटायन के साथ भी है। इस आधार से उमास्वाति यापनीय संघ की परंपरा से संबंधित सिद्ध होते हैं।

श्वेतांबर विद्वान धर्मसागरजी की पट्टावली से प्रज्ञापना सूत्र के रचनाकार श्यामाचार्य के गुरु हारितगोत्रीय स्वाति को ही तत्त्वार्थ रचनाकार उमास्वाति मान लिया है। यह उमास्वाति के नाम के अर्धांश की समानता के कारण पैदा हुई भ्रांति संभव है।

उमास्वाति और स्वाति दोनों का गोत्र भी एक नहीं है। स्वाति हारितगोत्रीय थे। उमास्वाति का गोत्र कोभीषण माना गया है। स्वाति के पूर्ववर्ती वाचनाचार्य बलिस्सह थे जो महागिरि के उत्तराधिकारी थे। उमास्वाति के गुरु का नाम घोषनंदि बताया गया है।

तत्त्वार्थाधिगम भाष्य को श्वेतांबर विद्वानों ने एकमत से उमास्वाति की रचना माना है। इस भाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की गुरु परंपरा के साथ उच्चनागर शाखा का उल्लेख है। कल्पसूत्र स्थविरावली में भी उच्चनागर शाखा का उल्लेख है। कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आचार्य सुहस्ती के शिष्य सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध, उनके शिष्य इंद्रदिन्न, इंद्रदिन्न के शिष्य दिन्न एवं दिन्न के शिष्य शांति श्रेणिक थे। शांति श्रेणिक से उच्चनागरी शाखा का उद्भव हुआ था।

भाष्य प्रशस्ति में उच्चनागर शाखा के उल्लेख से आचार्य उमास्वाति की गुरु परंपरा श्वेतांबराचार्य सुहस्ती की परंपरा के साथ सिद्ध होती है।

*आचार्य उमास्वाति के जीवन-वृत* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺

त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 11* 📝

*पेमजी कोठारी*
*(सम्वत् 1782 से 1844)*

*पारिवारिक विपत्ति*

पेमजी कोठारी आमेट के एक प्रसिद्ध श्रावक थे। उनका जन्म सम्वत् 1782 के लगभग हुआ। उनके पिता गोरीदासजी आमेटपति रावत प्रतापसिंह के प्रधान थे। वे बहुत संपन्न और प्रभावशाली व्यक्ति थे। स्थानीय लोढा परिवार भी बहुत संपन्न और पहुंच वाला था। किसी कार्य को लेकर गोरीदासजी से लोढा परिवार की अनबन हो गई। लोढा परिवार के मुखिया ने अवसर देखकर एक बार रावतजी को सुलगा दिया कि आपके प्रधान ही आपकी जड़ काटने में लगे हुए हैं। उन्होंने उसी समय कई कार्य गिना दिए और कहा कि इनको यदि अमुक-अमुक प्रकार से किया जाता तो आपको अधिक लाभ मिलता। परंतु कोठारीजी तो अपने लाभ को प्राथमिकता देते हैं। उसमें आपको हानि भी पहुंचे तो उन्हें कोई चिंता नहीं होती। रावतजी उनके कथन में आ गए। उन्होंने गोरीदासजी को कैद कर लिया और फिर हत्या करवा डाली। उनकी सारी संपत्ति भी छीन ली। कोठारी परिवार के लिए वह भयंकर पारिवारिक विपत्ति का समय था।

गोरीदासजी की पत्नी का नाम बीरू बाई था। वह राजनगर के सहलोत परिवार की पुत्री थी। साहस और कार्यकुशलता की विशेषता उसने बाल्यकाल से ही थी। उक्त गुणों ने विपत्ति के अवसर पर उसे और उसके परिवार को बचा लिया। पति की हत्या और संपत्ति का अपहरण बहुत दुःखद घटनाएं थीं, फिर भी अत्यंत साहस और समझदारी से काम लिया। समय की नाजुकता को पहचान कर वह तत्काल अपने पीहर चली गई। पुत्र पेमजी तथा पुत्री चंदू बाई उस समय बाल्यावस्था में ही थे। उनका पालन-पोषण ननिहाल में ही हुआ।

*पुनः आमेट में*

आमेट में रावत प्रतापसिंह के पश्चात् उनका उत्तराधिकार चतरसिंहजी ने संभाला। यहां राणा के चाकरी में उदयपुर जाते-आते समय वे एक पड़ाव राजनगर में किया करते थे। बीरू बाई के भाइयों ने अपने भाणेज पेमजी के हित में उस अवसर का लाभ उठाने का निर्णय किया। उन्होंने बीरू बाई से कहा कि अबकी बार रावतजी यहां रुकेंगे तब पेमजी को 'नजराना' करने के लिए भेज देंगे। दूध से जला छाछ को भी फूंक मारता है, अतः पति की दुःखद मृत्यु से पीड़ित बीरू बाई ने वैसा करने से इनकार कर दिया। उसका तर्क था कि पूर्ववर्ती रावतजी के समान यदि इनके मन में भी आक्रोश हुआ तो संभव है पुत्र के लिए भी खतरा उत्पन्न हो जाए। भाइयों ने समझाया कि यह आमेट नहीं, राजनगर है। अपने राज्य में वे चाहें सो कर सकते हैं, पर यहां नहीं। हमें उनकी भावनाओं का पता लगाना चाहिए। हो सकता है बड़े रावतजी ने जो किया उससे ये सहमत न हों। उनके द्वारा किए गए कार्य का यदि इनके मन में किंचित् भी अनुताप होगा तो अवश्य ही ये पेमजी को छाती से लगाएंगे और कोई न कोई काम सौंपकर पूर्वकृत अन्याय का प्रायश्चित करेंगे।

बीरू बाई को भाइयों की बात जंच गई। कालांतर में रावतजी आए तब उसने पेमजी को 'नजराना' करने के लिए भेज दिया। 'नजराना' करने पर रावतजी ने परिचय पूछा। जब उन्हें बतलाया कि ये स्वर्गीय प्रधान गोरीदासजी के पुत्र हैं, तो रावतजी ने बड़ी आत्मीयता से उन्हें अपने पास बिठाया, बातचीत की और वापस आकर काम करने तथा बसने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा— 'तुम तो कल ही मेरे साथ चलो। वहां स्थान आदि की व्यवस्था के पश्चात् अपनी मां आदि को भी बुला लेना। पेमजी तब उनके साथ ही आमेट चले गए। रावतजी ने वहां उनको कार्य दिया, भूमि दी और बसने के लिए उपयुक्त स्थान दिया। जब सारा कार्य व्यवस्थित रूप से जम गया तब बीरू बाई को भी वहां बुला लिया गया।

*गोरीदासजी के परिवार का पुनः अपने स्थान पर व्यवस्थित रूप से जम जाने का लोढा परिवार पर क्या असर हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺

News in Hindi

👉 अहमदाबाद - संथारा पूर्वक देवलोक गमन शासन श्री साध्वी श्री शुभवती जी का संक्षिप्त परिचय

📍 बेंकुठि यात्रा आज दिनांक 1 नवम्बर को दोपहर 12:10 पर 202, आम्रकुंज सोसायटी, शाहीबाग से शाहपुर जाएगी।

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

👉 अहमदाबाद - शासन श्री साध्वी श्री शुभवती जी का तिविहार संथारा पूर्वक देवलोक गमन

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. अमृतवाणी
  2. आचार्य
  3. आचार्य महाप्रज्ञ
  4. भाव
Page statistics
This page has been viewed 312 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: