01.11.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 01.11.2017
Updated: 02.11.2017

Update

वाह.. रामटेक से विहार के बाद रोज़ लग रहे हैं 50 से अधिक चोक़े.. आचार्य श्री के लिए भक्ति 🙂🙂

जहा आचार्यश्री ससंघ विराजित होते है वहा के व्यवस्थापकों के सामने एक मात्र सबसे बड़ी चुनोती यह होती है कि सभी स्थानीय एवम बाहर के श्रावको को चौके का स्थान कैसे उपलब्ध कराया जावे क्योकि जितनी भी संख्या में चौको की व्यवस्था की जाती है फिर भी कमी बनी रहती है श्रावको को चौके सुलभ नही हो पाते। बात यहा तक हो तो ठीक है

_*लेकिन जब से आचार्यश्री आचार्यश्री ने रामटेक से छतीसगढ़ की ओर विहार किया है तबसे चौको की दिनोदिन संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है राजस्थान के अजमेर, बागीदौरा कर्नाटक, महाराष्ट्र के मुम्बई से मध्यप्रेदश तक के बढ़ते चौके से व्यवस्थापक चिंतित है वे सभी से हाथ जोड़ रहे है कि वर्तमान में 50 से ज्यादा चौके चल रहे है आप नए चौके लेकर न आए। विहार के समय मे बड़ी बड़ी स्कूलों के एक कक्ष में कई चौके लगने के बाद भी स्थान कम पड़ रहा है। कई बार तो कई चौको के श्रावको को पड़गाहन भी नही मिल पाता क्योकि वर्तमान में आचार्यश्री संघ में 37 सिर्फ मुनिराज है।*_

_*लेकिन इसके बावजूद आचार्यश्री के अनन्य भक्त श्रावक है कि मानते ही नही प्रतिदिन चौको की संख्या बढ़ते जा रही है। जबकि विहार के समय मौसम में बेहद उतार चढ़ाव होता है। चौके वाले थोड़े से स्थान पर सो जाते है ज़रा सी जगह में स्नान आदि से निवृत हो जाते है प्रातः चौके में भी इतनी भक्ति इतने परिश्रम से भोजन बनाने के बाद भी जब सभी श्रावक चौको के सामने पड़गाहन हेतु खड़े होते है तब उनके चेहरों गज़ब चमक होती है।*_
_*कई बार श्रावको के चौके खाली रहते है लेकिन उन्हें तसल्ली रहती है कि पड़गाहन के समय आचार्यश्री उनकी ओर मुस्कुराते हुए एकदम समीप से आगे अन्य चौको की ओर निकल जाते है।*_
_*उनके इतने पास से दर्शन करने से ही वे गदगद हो जाते है।*_

_*जैसा मैंने विहार के समय देखा वैसा शब्द अंकन*_

*_राजेश जैन भिलाई_*
🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈

Source: © Facebook

Update

Who is right? Let’s think about it @

How many times have we come across situations where we argue among ourselves and hurt others. Have we ever thought that someone else can be right? If we try to understand what someone else is saying many of our problems can be resolved.

Let’s see it with an example which is very well known:

Anil asked his sister, Rita, to get him a coke at dinner. Rita only gave him half a glass as a joke. Anil was very mad and threw a fit saying the glass was half empty. The word empty annoyed Rita, and she screamed back, "No glass is half full." Soon they started fighting. Anil and Rita told their parents why they were screaming. Their mother said, "Both of you are right. Anil is looking at the empty aspect and Rita is looking at its filled aspect." They were both happy when they realized that they were both right.

If we accept the fact that someone else can be right, we can avoid many quarrels. Lord Mahavira said that everything can be seen from seven different aspects (Saptabhangi Naya, we will discuss about this in future posts), and there is truth in every aspect. Lord Mahavira's thinking is called Anekäntaväda (Non-absolutism, Refer post No #5 for more detail) or multiplicity of viewpoints. When we accept this style of thinking, we become tolerant of other views and our life is much happier. This lets different people with different ideologies live together with respect for one other.

So the next time your friend says something which you do not agree with then instead of telling him, "You do not anything," give him a chance to tell his side of the story. You may be surprised and think, "He is right too in some way!"

Source: © Facebook

☄ _किसी वस्तु-व्यक्ति से लगाव होना राग है, परंतु उसके पीछे पागल हो जाना मोह है।_

☄ _जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा सीमेंट आदि से कदापि नहीं बनाना चाहिए। और अगर कहीं बन रही है तो यह बहुत गलत है। *जैनागम के अनुसार सिर्फ अखंड पाषाण की ही प्रतिमा बनाने का प्रावधान है। समाज को इसका विरोध करना चाहिए, और मन वचन काया से उस कार्य में अनुमोदना नहीं करनी चाहिए।*_

☄ _भगवान के समक्ष जो भी संकल्प लें, उसे निश्चित समय में पूर्ण करना ही चाहिए। परंतु यदि इसमें कोई विलंब हो जाए तो गुरू के समक्ष प्रायश्चित लेकर वह कार्य कर लेना चाहिए।_

☄ _*स्वप्रशंसा की चाह रखना अच्छी बात नहीं है।यह निंदनीय व नीच गोत्र का बंध कराती है। अगर आपके कार्य अच्छे हैं तो आपकी सदा ही प्रशंसा होगी ही।*_

☄ _यश और धन का आपस में कोई सम्बन्ध नही। धन तो पापी के पास भी होता है, परंतु पीठ पीछे लोग उसकी निंदा ही करते हैं। जबकि *यशस्वी व्यक्ति की सदा प्रसंसा ही होती है। यशस्वी व्यक्ति के पास जब धन आ जाता है, तो वह अपने लोक परोपकार के कार्यों से अपने यश में चार चांद लगाता है, जैसे अशोक पाटनी, आरके मार्वल।*_

☄ _*जो साधु रत्नाकर धारण करने के बाद भी भ्रष्ट हो गया है, उसे आगम में ग्रहस्थ से भी गया-बीता माना गया है। ऐसे में उन साधुओं के स्थितिकरण करने की जिम्मेदारी श्रावकों की ही है। जो श्रावक साधुओं को मोबाइल, लैपटॉप, गाड़ी या अन्य सुविधाओं के साधन देते हैं, वह नियम से कुभोग भूमि का ही बन्ध करते हैं।*_

☄ _*हमारे यहां की वैचारिक हिंसा उस मां के समान है जो अपने बेटे पर क्रोध तो करती है, परंतु उस का भाव बेटे को सुधारने का होता है।* परंतु विदेशियों की वैचारिक अहिंसा शेर, कुत्ते बिल्ली के समान है, जो अपने बच्चों को तो पालता है, परंतु दूसरे जीवों को अपना आहार बनाता है।_

☄ _*यदि पति सक्षम हो, और स्वयं कमाता हो तो घर की महिलाओं को कदापि बाहर काम करने नहीं जाना चाहिए। विपरीत परिस्थितिवस जहां पुरुष फीका पड़ जाए या पुरुष की चलती ना हो, वहां महिलाओं को आगे आने में कोई बुराई नहीं।*

-मुनि सुधासागर जी #AcharyaVidyasagar #MuniSudhasagar

Source: © Facebook

Video

Source: © Facebook

तुम हो त्रिशला कुँवर.. जन्मे कुंडलनगर.. वीर प्यारे.. Wah.. रोंगते खड़े करदेने वाले Lyrics 😊😊

तुमने सन्मार्ग आकर दिखाया.. जग से अंधकारतम को हटाया.. तुम ना आते अगर कौन लेता ख़बर.. 🙂🙂

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Mahavira
          2. Naya
          3. Non-absolutism
          4. Saptabhangi
          5. अशोक
          6. आचार्य
          7. दर्शन
          8. भाव
          9. महाराष्ट्र
          10. राजस्थान
          Page statistics
          This page has been viewed 435 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: