26.10.2017 ►Muni Anushasan Kumar ►Sweetness in speech: The power of life

Published: 26.10.2017

Hindi:

सादर प्रकाशनार्थ

बोली में मिठास: जीवन का उजास

- ‘‘नचिकेता’’ मुनि अनुषासन कुमार

कहते हैं जब दुकान का ताला खुलता है तभी पता लगता है कि दुकान कैसी है और जब
मुह का ताला यानि मुह खुलता है तभी पता लगता है व्यक्ति कैसा है। सही है यह जीभ का ही
कमाल है जो बड़े से बड़े अनर्थ करा देती है लेकिन इसका संयमित और विवेकपूर्वक प्रयोग किया
जाए तो यह दिलों को मिला देती है। मनुष्य की जीभ अमूल्य है। यूं तो पशु भी गर्जना करते हैं,
हिनहिनाते हैं परन्तु जीभ होने के बावजूद वे केवल ध्वनि ही करते हैं पर मनुष्य शब्दों के द्वारा अपनी
सुख-दुःख की भावनाएं व्यक्त कर पाता है। जरूरत है शब्दों की महत्ता समझने की। बन्दुक की
गोली का घाव ठीक हो सकता है पर बोली की चोट किसी को लग जाये तो वो भीतर का घाव
भरना अत्यंत कठिन है।

घर में अतिथि आया। स्वागत करते हुए मेजबान ने कहा - स्वागतम् स्वागतम्! आज तो धन
भाग हमारे जो आपका पधारना हुआ। अब आप आये हैं तो भोजन ग्रहण करके ही जाना भोजन
तैयार है। अतिथि ने कहा - नहीं में घर से भोजन करके ही निकला था। क्षुधा नहीं है, मनुहार के
लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेजबान ने पुनः कहा कि ऐसे कैसे आप भोजन ग्रहण नहीं
करेंगे। आखिर आप हमारे अजिज मित्र हो, इतने दिनों के पश्चात् मिले हो भोजन तो करना ही
होगा। इतनी मनुहार देखकर अतिथि ने हा भर दी। तब मेजबान ने कहा अच्छा हुआ आप भोजन
कर रहे हो नहीं तो हम ये अपने कुत्ते को खाने के लिए दे रहे थे। देखिए - एक तरफ पहले जहां
इतने मिठे शब्दों से उसने मेजबानी की वहीं कुत्ते वाली बात कहकर सारा गुड गोबर कर दिया।

मनुष्य का ये व्यवहार विचित्र है कि कई बार अच्छे कार्यों के पश्चात् भी वह अपने वचनों के कारण
मात खा जाता है। आवश्यक है कि भगवान् महावीर की वाणी हमारे जीवन में उतरे। वचन गुप्ति का
उन्होंने जो विश्लेषण किया है उसे समझे और आचरण में लाये। परम् पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी
फरमाते हैं - ‘‘बोलना बड़ी बात नहीं है, मौन रहना भी बड़ी बात नहीं है। बोलने और न बोलने का
विवेक रखना बड़ी बात है।’’ बोलने से पूर्व चिंतन आवश्यक है। हम क्या बोल रहे हैं, क्यों बोल रहे
हैं, शब्दों का चयन तो ठीक है न! कहीं कुछ अनावश्यक तो नहीं बोल रहे हैं। भगवान महावीर ने
सूत्र दिया - ‘‘अणुचिंतिय वियागरे’’ सोचकर बोलो। क्योंकि वाणी ही व्यक्ति की पहचान है। मनुष्य2 द्य च् ं ह म
का व्यवहार उसके शब्दों में प्रतिबिंबित होता है। मिठी वाणी बोलने वाले के साथ सभी रहना चाहेंगे
और अपशब्द बोलने वाले को कोई नहीं चाहता। कोवा उड़ता हुआ जा रहा था। मार्ग में कोयल
मिली। बोली - कहां जा रहे हो। इतनी तीव्र गति से उड़ते हुए। कोवे ने उदास होते हुए कहा क्या
कहूं बहन इस नगर के लोग बढ़िया नहीं हैं किसी को शांति से जीवन जीने नहीं देते, मैं अब यहां
से परेशान होकर जा रहा हूं। कोई नया नगर खोजूंगा। जहां के लोग अच्छे हों। कोयल ने कहा -
बात क्या हुई। आखिर यहां के लोगों ने तुम्हारा ऐसा क्या बिगाड़ दिया जो तुम यह नगर छोड़ रहे
हों। कोवा बोला - यहां मुझे कोई चाहता नहीं है। जहां भी बैठता हूं लोग उड़ा देते हैं, कुछ बोलूं
तो पत्थर मारते हैं। तब कोयल ने कहा - यह लोगों की दिक्क्त नहीं तुम्हारी दिक्कत है। वाणी जब
तक तुम्हारी कर्कश रहेगी, कहीं भी चले जाओ लोग उड़ा देंगे, पसंद नहीं करेंगे। कौवे और कोयल
का यह संवाद काल्पनिक हो सकता है। परन्तु सच्चाई यही है। बोली में मिठास जीवन का उजास
लाता है। इसलिए शब्दों की गरिमा को समझें और वचनों को सुधारें। विवेकपूर्ण संयमित भाषा का
प्रयोग करें।

है निरवद्य मधुर मिल वाणी,
कार्यसाधिका कल्याणी।
विष-भावित तलवार जीभ है1,
वही सुधा की सहनाणी2।।
- आचार्य तुलसी

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