17.10.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 17.10.2017
Updated: 19.10.2017

Update

👉 सूरत - तेमम द्वारा सघन रूप से प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 कोलकत्ता - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 सूरत - आचार्य श्री महाप्रज्ञ चिकित्सालय में जैन संस्कार विधि से पूजन
👉 हिसार - अणुव्रत समिति द्वारा अतिशबाजी को कहे ना अभियान
👉 बेहाला (कोलकाता) - ते.म.म. द्वारा धनतेरस के पावन अवसर पर जप अनुष्ठान का आयोजन
👉 कोलकत्ता - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 बेंगलोर - आतिशबाजी को कहें ना पर जागृती अभियान कार्यक्रम का आयोजन
👉 अहमदाबाद - महिला मण्डल द्वारा जप अनुष्ठान का आयोजन
👉 राउरकेला - जैन जीवन शैली कार्यशाला का आयोजन
👉 केलवा - बंदनवार प्रतियोगिता का आयोजन
👉 जोरहाट - महिला मंडल द्वारा प्रदूषण मुक्त दीपावली पर कार्यक्रम
👉 विशाखापत्तनम - रजत जयंती वर्ष का शुभारंभ व दीपावली पर्व पर कार्यक्रम


प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📚 *'नींव के पत्थर'* 📚

📜 *श्रंखला -- 1* 📜

*चतरोजी पोरवाल*

*प्रभावशाली व्यक्ति*

राजनगर को तेरापंथ की बीज-भूमि होने का गौरव प्राप्त है। स्वामी भीखण जी को आचार-क्रांति विषयक दृढ़ निश्चय करने की प्रेरणा सर्वप्रथम संवत 1815 के राजनगर चातुर्मास में ही प्राप्त हुई। वहां के श्रावकों में चतरोजी पोरवाल तथा बछराजजी ओसवाल आदि मुख्य थे। वे अच्छे तत्वज्ञानी होने के साथ ही समाज के प्रभावशाली व्यक्ति भी थे। राजनगर का श्रावक-वर्ग तो उनके नेतृत्व को मानता ही था, आसपास के चोखलों में भी उनका अच्छा प्रभाव था। वे लोग अनेक वर्षों से तात्कालीन साधु-समाज के शिथिलाचार से बड़े खिन्न थे। उनके नेतृत्व से राजनगर के श्रावक-वर्ग ने शिथिलाचार के विरुद्ध एक वातावरण बना रखा था। जो भी संत राजनगर में चातुर्मास करने तथा शेषकाल में रहने के लिए आते उनसे वे इस विषय में अवश्य चर्चा करते। वे चाहते थे कि आचार-शैथिल्य मिटे और मुनिजन आगमानुमोदित मार्ग पर चलें। अनेक प्रभावशाली तथा शास्त्रज्ञ मुनियों के सम्मुख उन्होंने अपने विचार रखे। कई मुनि हां-हूं करके बात को टाल देते तो कई रुष्ट हो कर उन्हें भी बुरा-भला कहने लगते। धीरे-धीरे राजनगर एक ऐसा क्षेत्र बन गया जहां साधारण मुनि तो जाने से कतराते ही थे, विशिष्ट मुनि भी जाने से पूर्व पांच बार सोचने को बाध्य होने लगे।

*एक शास्त्रार्थ*

उन्हीं दिनों मुनियों का एक 'सिंघाड़ा' वहां आया। उन के अग्रणी मुनि स्वयं को अच्छा शास्त्रज्ञ तो मानते ही थे, उन्हें अपने तर्क-बल पर भी बड़ा विश्वास था। राजनगर के श्रावकों से चर्चा कर उन्हें मार्ग पर ले आने का उनका मानसिक संकल्प था। उन्होंने सभी व्यक्तियों को प्रश्न पूछने तथा संदेह-मुक्त होने के लिए आह्वान किया। अनेकों को व्यक्तिगत रुप से भी बातचीत करने के लिए कहा। श्रावक-जन तो चाहते ही थे कि मुनिजन या तो हमें समझाएं कि उनका आचार-व्यवहार शास्त्रानुमोदित है या फिर उसमें यथावश्यक परिवर्तन करें। मुनियों के आह्वान पर उन्हें प्रसन्नता ही हुई और वे निर्दिष्ट समय पर धर्मस्थान में एकत्रित हो गए। कुछ व्यक्तियों ने साधु-चर्या के विषय में प्रश्न प्रस्तुत किया। मुनिजी ने उसका समाधान दिया तो श्रावकों ने उसके लिए आगम का प्रमाण मांगा। मुनिजी ने दशवैकालिक सूत्र का पाठ निकाला और बीच का कुछ अंश छोड़कर अपने कथन के समर्थन में उसका अर्थ पढ़कर सुनाया। उनके पढ़ने के प्रकार तथा वाक्यावलि के आधार से श्रावकों को वहां कुछ अंश छोड़ दिए जाने का आभास हो गया। चतरोजी के पौत्र जवेरचंदजी आदि कुछ व्यक्तियों ने तब वह पाठ स्वयं पढ़कर देखना चाहा। पत्र मांगा तो मुनिजी क्रुद्ध हो गए। उन्होंने आवेश में कहा— "मैंने जो पढ़कर सुनाया है, क्या उसका विश्वास नहीं है?" जवेरचंदजी ने कहा— "हम भी तो श्रावक हैं, क्या आपको हमारा विश्वास नहीं है? हम पत्र को कहीं ले नहीं जाएंगे, यही पढ़कर आपको वापस सौंप देंगे।" मुनिजी ने पत्र देना नहीं चाहा, श्रावकों ने लेना चाहा। इसी रस्साकसी में पत्र थोड़ा सा फट गया। मुनिजी को अपनी लाज ढकने का इससे बढ़िया अवसर और कौन सा मिल सकता था, उन्होंने आक्रोश पूर्वक हल्ला कर दिया— "देखो-देखो, इन लोगों ने शास्त्र का पत्र फाड़ दिया। ये मिथ्यात्वी हैं, अनंत संसारी हैं आदि।"

*आगे क्या घटित हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

News in Hindi

👉 पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"राजरहाट", कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में

👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..

👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..

दिनांक - 17/10/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

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👉 टिटिलागढ़ - दीपावली के अवसर पर ज्ञानशाला में प्रतियोगिताओं का कार्यक्रम
👉 टिटिलागढ - स्वच्छ पर्यावरण व नशामुक्त जीवन एवं पटाका रहित दीपावली पर कार्यक्रम
👉 केसिंगा (ओड़िशा) - जैन संस्कार विधि से दीपावली पूजन कार्यशाला का आयोजन
👉 भीलवाड़ा - जैन विधा कार्यशाला आयोजित
👉 विल्लीपुरम (तमिलनाडु) -Ecofriendly diwali पर स्कूल में कार्यक्रम
👉 केसिंगा (ओड़िशा) - प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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👉 जोधपुर - गुरु इंगित सामायिक कार्यशाला का आयोजन
👉 मदुरै (तमिलनाडु) - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 सांताक्रुज - दीवाली पूजन जैन संस्कार विधि द्वारा पर कार्यशाला का आयोजन
👉 कोलकत्ता - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 बारडोली - विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन
👉 विजयवाड़ा - पर्यावरण सुरक्षा के अन्तर्गत आतिशबाजी को कहें ना पर कार्यशाला का आयोजन
👉 हुबली: ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा भगवान महावीर के ऊपर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
👉 राजरहाट, कोलकत्ता - कोलकत्ता महिला मंडल द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 गांधीनगर, बैंगलोर: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा "प्रदूषण मुक्त दीपावली" अभियान का प्रचार-प्रसार
👉 नोएडा - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 लुधियाना - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 नागपुर - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 कोलकत्ता - प्रदुषण मुक्त दीपावली महाअभियान की गूंज पहुंची राजभवन में

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 177* 📝

*प्रबुद्धचेता आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि*

पुष्पदंत और भूतबलि मेधा संपन्न आचार्य थे। उनकी सूक्ष्म प्रज्ञा आचार्य धरसेन के ज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम सिद्ध हुई। उन्होंने अगस्त्य ऋषि के सागर-पान की परंपरा को श्रुतोपासना की दृष्टि से दुहरा दिया।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि के शिक्षा गुरु धरसेन थे। धरसेन आचार्य ने महिमा नगरी में होने वाले धार्मिक महोत्सव में सम्मिलित आचार्यों के पास पत्र भेजा। उस पत्र में दो मुनियों को अध्ययनार्थ प्रेषित करने की मांग की। इसी पत्र के अनुसार दक्षिणापथ के आचार्यों ने मेधा संपन्न श्रमण पुष्पदंत और भूतबलि को धरसेन आचार्य के पास भेजा। दोनों ने विनयपूर्वक धरसेन आचार्य से षट्खंडागम का तथा सैद्धांतिक तत्वों का गंभीर अध्ययन किया। अतः पुष्पदंत और भूतबलि धरसेन आचार्य के विद्या शिष्य थे। श्रवणबेलगोला 105 संख्यक अभिलेख में पुष्पदंत और भूतबलि को अर्हद्बलि का शिष्य बताया है।

*जीवन-वृत्त*

पुष्पदंत श्रेष्ठिपुत्र थे और भूतबलि सौराष्ट्र के नहपान नामक नरेश थे। गौतमपुत्र शातकर्णी से पराजित होकर नहपान नरेश ने श्रेष्ठिपुत्र सुबुद्धि के साथ दिगंबर श्रमण दीक्षा ग्रहण की। धरसेन आचार्य के पास सौराष्ट्र के गिरिनगर की चन्द्रगुफा में उन्होंने अध्ययन किया। शिक्षा संपन्न होने के बाद आचार्य धरसेन से आशीर्वाद पाकर पुष्पदंत और भूतबलि वहां से विदा हुए। दोनों ने एक साथ अंकलेश्वर में चातुर्मास किया। वर्षावास समाप्त होने के बाद पुष्पदंत और भूतबलि ने दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। दोनों सानंद करहाटक पहुंचे। करहाटक में श्रमण पुष्पदंत जिनपालित से मिले। जिनपालित योग्य बालक था। पुष्पदंत ने उसे मुनि दीक्षा प्रदान की ओर से नवदीक्षित मुनि जिनपालित को साथ लेकर वनवास देश में गए। भूतबलि द्रविड़ देश की मथुरा नगरी में रुके। उत्तर कर्णाटक का प्राचीनतम नाम वनवास बताया गया है।

*साहित्य*

दिगंबर परंपरा में कषाय प्राभृत के रचनाकार आचार्य गुणधर के बाद साहित्य रचना के क्षेत्र में आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि का अनुदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। षट्खंडागम की रचना इन दोनों आचार्यों के सम्मिलित प्रयत्न का परिणाम है। षट्खंडागम रचना का घटना प्रसंग इस प्रकार है—

आचार्य पुष्पदंत ने वनवास देश (उत्तर कर्णाटक) में रहते हुए आचार्य धरसेन द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर वीसदिसुत्त के अंतर्गत सत्प्ररूपणा के 177 सूत्रों की रचना की। जिनपालित को उन सूत्रों का प्रशिक्षण दिया और उन्हें भूतबलि के पास भेजा। भूतबलि ने पुष्पदंत आचार्य रचित वीसदिसुत्त को पढ़ा और आचार्य पुष्पदंत के जीवन का संध्याकाल जानकर भूतबलि ने सोचा "महाकर्म प्रकृति प्राभृत की श्रुतधारा का कहीं विच्छेद नहीं हो जाए।" अतः उन्होंने 'वीसदिसुत्त' के सूत्रों सहित छह सहस्र सूत्रों में ग्रंथ के 5 खंडों की रचना की। छठे महाबंधक नामक खंड में 30 हजार सूत्र रचे। इस ग्रंथ का नाम षट्खंडागम है। इस घटना से स्पष्ट है आचार्य भूतबलि महाकर्म प्रकृति के ज्ञाता थे। षट्खंडागम के प्रारंभिक सूत्रों की रचना पुष्पदंत आचार्य द्वारा वनवास (उत्तर कर्णाटक) में हुई। अवशिष्ट ग्रंथ सूत्रों की रचना आचार्य भूतबलि द्वारा द्रविड़ देश में हुई। षट्खंडागम रचना का यह समय ईस्वी सन् 75 माना गया है।

*षट्खंडागम ग्रंथ का संक्षिप्त परिचय* प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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*अतिशबाजी को कहे ना*

अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी *अतिशबाजी को कहे ना* अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। सलंग्न लिंक को आप अधिक से अधिक प्रसारित करे और इस अभियान में सहभागी बने।

📍 *क्या आप पर्यावरण सुरक्षा में अपना योगदान देना चाहते है?*

📍 *क्या आपने यह फॉर्म भरा?*

📍 *स्वयं भी भरे । पारिवारिकजन व मित्रों से भी भरवाए।*

📍 *आप द्वारा दिया हुआ 2 मिनट का समय पर्यावरण सुरक्षा में अति महत्वपूर्ण हो सकता है।*

📍 *आइये इस पुनीत कार्य मे सहभागी बने व बनाये।*

http://anuvratmahasamiti.com/Diwali.aspx

*ऊपर दिये गए लिंक को ओपन करे एवं उसमे दिये हुए फॉर्म को ऑनलाइन भरकर भेजे। एवं प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाने व पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान करे।*

प्रस्तुति - *अणुव्रत महासमिति*

प्रसारक - तेरापंथ *संघ संवाद*

Diwali

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  1. Diwali
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