16.10.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 16.10.2017
Updated: 17.10.2017

Update

👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा शाखा मण्डलो के लिए आचार्य श्री तुलसी की अभ्यर्थना में आयोजित होने वाले कार्यक्रम सम्बन्धित सूचना*

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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News in Hindi

👉 छापर: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा "प्रदूषण मुक्त दीपावली" अभियान
👉 जींद - जैन संस्कार विधि कार्यशाला
👉 राजाजीनगर, बैंगलोर: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा "प्रदूषण मुक्त दीपावली" कार्यक्रम आयोजित
👉 नागपुर - रंगोली प्रशिक्षण व प्रतियोगिता काआयोजन
👉 बालोतरा - जीव अजीव कार्यशाला का समापन समारोह
👉 बीकानेर: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा जैन जीवन शैली व वंदनमाला प्रतियोगिता का आयोजन तथा कन्यामंडल द्वारा इको फ्रेंडली दिवाली के पोस्टर का प्रचार
👉 बीकानेर: "ज्ञानशाला रजत जयंती वर्ष" समारोह का आयोजन
👉 भायंदर, मुम्बई - प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 भायंदर, मुम्बई - महिला मण्डल द्वारा विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सुजानगढ़: "ज्ञानशाला रजत जयंती वर्ष" समारोह का आयोजन
👉 विजयवाड़ा - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 176* 📝

*धैर्यधन आचार्य धरसेन*

गतांक से आगे...

आचार्य धरसेन की परीक्षा में उभय मुनि उत्तीर्ण हुए और विनयपूर्वक श्रुतोपासना करने लगे। उनका अध्ययन क्रम शुभनक्षत्र, शुभदिन में प्रारंभ हुआ। आचार्य धरसेन की ज्ञान प्रदान करने की अपूर्व क्षमता एवं युगल मुनियों की सूक्ष्मग्राही प्रतिभा का मणिकांचन योग था। अध्ययन का क्रम द्रुतगति से चला। आषाढ़ शुक्ला एकादशी के पुर्वाह्वकाल में वाचना कार्य संपन्न हुआ। कहा जाता है, इस महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्नता के अवसर पर देवताओं ने भी मधुरवाद्य ध्वनि की। इस प्रसंग पर धरसेन आचार्य ने एक का नाम भूतबलि और दूसरे का नाम पुष्पदंत रखा।

निमित्त ज्ञान से अपना मृत्यु काल निकट जानकर धरसेन आचार्य ने सोचा 'मेरे स्वर्गगमन से इन्हें कष्ट न हो' इसलिए उन्होंने दोनों मुनियों को श्रुत की उपसंपदा प्रदान कर सकुशल उन्हें विदा किया।

आगम निधि सुरक्षित रखने का यह कार्य आचार्य धरसेन के दूरदर्शी गुणों को प्रकट करता है। जैन समाज के पास षट्खंडागम जैसी अमूल्य कृति है, उसका श्रेय आचार्य धरसेन को है।

*समय-संकेत*

आचार्य धरसेन अर्हद्बली के समसामयिक थे। नंदी संघ की प्राकृत पट्टावली में अर्हद्बली के लिए वीर निर्वाण 565 (ईस्वी सन् 38) का उल्लेख है। अर्हद्बली का काल 28 वर्ष का है। तदनंतर माघनंदी और धरसेन के समय का उल्लेख है। माघनंदी का काल 21 वर्ष का है। माघनंदी के बाद धरसेन का समय वीर निर्वाण 614 से प्रारंभ होता है। धरसेन का काल 19 वर्ष का माना गया है। इस आधार पर दूरदर्शी आचार्य धरसेन का समय वीर निर्वाण 614 से 633 (विक्रम संवत 114 से 133) तक सिद्ध होता है। यह समय-संकेत नंदी संघ की पट्टावली के आधार पर है।

इंद्रनंदी के श्रुतावतार में अर्हद्बली के पश्चात धरसेन आदि आचार्यों का उल्लेख है, पर इनके काल के संबंध में उल्लेख नहीं है।

हरिवंश पुराण के अनुसार धरसेन अर्हद्बलि से उत्तरवर्ती होने के कारण उनका काल वीर निर्वाण 783 के बाद का संभव है।

नंदी संघ पट्टावली में आचार्य धरसेन से संबंधित समय सूचक पद्य इस प्रकार है—

*पंचसये पणसठे अंतिम-जिण-समयजादेसु।*
*उप्पण्णा पंचजणा इयंगधारी मुणेयव्वा।।15।।*
*अरहबल्लि माघनंदि धरसेणं पुप्फयंत भूदबली।*
*अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस वीस वास पुणो*
*।।16।।*
*(नंदी संघ प्राकृत पट्टावली)*

नंदी संघ की पट्टावली के अनुसार धरसेन वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी के आचार्य थे।

हरिवंश आदि ग्रंथों के अनुसार आचार्य धरसेन का समय वीर निर्वाण की आठवीं शताब्दी संभव है।

*प्रबुद्धचेता आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबली के प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पायेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

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