05.10.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 05.10.2017
Updated: 07.10.2017

Update

👉 ईरोड - प्रेक्षा ध्यान एवं हास्य थेरेपी कार्यशाला का आयोजन
👉 चेन्नई (पल्लावरम) - नशामुक्ति पर एक दिवसीय शिविर का आयोजन
👉 गंगाशहर - कन्या सुरक्षा अभियान पर कार्यक्रम आयोजित
👉 नोहर - ज्ञानशाला रजत जयंती वर्ष समापन समारोह के उपलक्ष में कार्यक्रम आयोजित
👉 नोहर - ज्ञानशाला रजत जयन्ती वर्ष समापन समारोह के उपलक्ष में रात्रि धम्म जागरण का कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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👉 संगठन समाचार - बरवाला अणुव्रत समिति का गठन

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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अक्टूबर माह का प्रकल्प -
*आतिशबाजी को कहे ना*

👉 निवेदन इस दीपावली पर *आतिशबाजी को कहे ना* का अभियान चलाकर प्रदूषण मुक्त दीवाली मनाने में सहयोग करे। सभी संस्थाओ, समितियो से अनुरोध है कि वह इस अभियान में सहभागी बने।
👉 अभियान के अंतर्गत जो भी समिति/संस्था *आतिशबाजी को कहे ना* का बेनर बनवाकर अपने नाम से प्रसारित करना चाहे तो उसकी CDR फ़ाइल अणुव्रत महासमिति कार्यालय से ईमेल द्वारा मंगवा सकते है।
ईमेल - [email protected]
सम्पर्क सूत्र - 011-23233345, 23239963

प्रस्तुति - *अणुव्रत सोशल मीडिया*

प्रसारक -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

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*पुज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 *चार कारणों से जीव करता है मनुष्य गति का बंध: आचार्यश्री महाश्रमण*

👉 *मनुष्य गति प्राप्त करने के चार कारणों का महातपस्वी आचार्यश्री ने किया वर्णन*

👉 *-‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान शृंखला के अंतर्गत आचार्य भारमलजी के शासनकाल को किया व्याख्यायित*

👉 *-आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ‘जीवन-विज्ञान सेमिनार’ का हुआ शुभारम्भ*

👉 *-आचार्यश्री ने प्रदान किया आशीर्वाद, सेमिनार से जुड़े लोगों ने भी दी भावाभिव्यक्ति*

👉 *-शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी ने भी किए आचार्यश्री के दर्शन*

दिनांक - 05-10-17

प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 168* 📝

*दुरितनिकन्दन आचार्य दूर्बलिका पुष्यमित्र*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र शिष्यों को आगम वाचना देते। गोष्ठामाहिल उस में सम्मिलित ना होकर विंध्य द्वारा दी जाने वाली आगम वाचना में उपस्थित रहता और उनसे अर्थागम-वाचना ग्रहण करता। कर्म प्रवाद पूर्व की वाचना देते समय मुनि विंध्य ने कर्म बंध की बद्ध, स्पृष्ट और बद्ध-स्पृष्ठ इन तीनों अवस्थाओं का वर्णन किया तथा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश के बंध की व्यवस्था के साथ बंध, सत्ता, उदय, उदीरणा, उद्धर्तना, अपवर्तना, संक्रमण, उपशम, निधत्ति, निकाचना इन कर्म की दस अवस्थाओं का एवं भेद-प्रभेदों का विभिन्न प्रकार से बोध दिया।

मोहकर्म की प्रबलता एवं उग्र अहंकार के कारण गोष्ठामाहिल में मिथ्या अभिनिवेश उत्पन्न हुआ। वह कर्म बंधन की प्रक्रिया को पढ़ते समय उलझ गया। गोष्ठामाहिल का अभिमत था– आत्म प्रदेशों के साथ कर्म का स्पृष्ट अवस्था का ही बंध होता है। बद्ध और बद्ध-स्पृष्ट जैसा सघन बंध (कर्म प्रदेशों का आत्म प्रदेशों के साथ एकीभूत हो जाना) कभी नहीं होता।

प्रशिक्षण जागरूक, निष्पक्ष, निराग्रही, पापभीरु, आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र ने नाना प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया, पर पूर्वाग्रह ग्रस्त गोष्ठामाहिल ने अपना मत नहीं बदला।

इक्षु में रस, तिल में तेल, पय में नवनीत की भांति कर्म की आत्म प्रदेशों के साथ बद्ध अवस्था को स्वीकार नहीं करने के कारण गोष्ठामाहिल द्वारा वीर निर्वाण 584 (विक्रम संवत 114, ईस्वी सन् 57) में अबद्धिक मत की स्थापना हुई। जैन परंपरा में गोष्ठामाहिल सातवां निह्नव माना गया। उसका समय जैन इतिहास में वीर निर्वाण 609 के पश्चात स्वीकृत है। 'विचार श्रेणी' युगप्रधान पट्टावली के अनुसार दुर्बलिका पुष्यमित्र का आचार्यकाल वीर निर्वाण 597 से प्रारंभ होता है। आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के शासनकाल के प्रारंभ के समय गोष्ठामाहिल द्वारा अबद्धिक मत की स्थापना हुई, अतः वल्लभी युगप्रधान पट्टावली के आधार पर अबद्धिक मत की स्थापना का समय 584 मानना भी विमर्शनीय है तथा दुर्बलिका पुष्यमित्र के शासनकाल को लक्षित कर वीर निर्वाण 597 मानना भी अनुसंधान मांगता है।

आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के जीवन में ज्ञान, दर्शन, चरित्र तीनों का संगम था। उनके अध्यात्म जीवन की सफलता का प्रमुख निमित्त उनकी ध्यान साधना थी। बौद्ध उपासकों को भी आचार्य दुर्बल का पुष्यमित्र की साधना से अंतःतोष प्राप्त हुआ। जैन शासन की आचार्य परंपरा में आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र विशिष्ट ध्यान योगी के रूप में विश्रुत हैं।

*समय-संकेत*

आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र लगभग 17 वर्षों तक गृहस्थ जीवन में रहे। संयम पर्याय के 50 वर्षीय काल में 20 वर्ष तक उन्होंने आचार्य पद के दायित्व का कुशलतापूर्वक वहन किया। विशिष्ट ध्यान साधना से आत्मा को भावित करते हुए वीर निर्वाण 617 (विक्रम संवत 147, ईस्वी सन 90) में वे स्वर्ग संपदा के स्वामी बने।

*आचार्य-काल*

(वीर निर्वाण 597-617)
(विक्रम संवत 127-147)
(ईस्वी सन् 70-90)

*विवेक-दर्पण आचार्य वज्रसेन का प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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👉 कोयम्बटूर - "खुशियों के दीप जलाएं" कार्यक्रम
👉 सूरत - प्रेक्षा ध्यान व प्रदूषण मुक्त दीवाली पर कार्यक्रम
👉 राजरहाट, कोलकत्ता - साध्वी प्रमुखा श्री जी का कोलकत्ता महिला मंडल को प्रेरणादायी उद्बोधन
👉 सूरत - निःशुल्क ब्लड प्रेशर व शुगर चेक अप शिविर
👉 बिड - स्कूल के विद्यार्थियों के बीच अणुव्रत व नैतिक शिक्षा पर कार्यक्रम
👉 भीलवाड़ा - नशामुक्ति दिवस पर कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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👉 राजारहाट, कोलकाता से..
👉 जीवन विज्ञान सेमिनार - प्रथम दिवस
👉 सान्निध्य: आचार्य श्री महाश्रमण
👉 प्रथम सत्र: उद्धघाटन - प्रेरणा सत्र
👉 जीवन विज्ञान अकादमी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गौतम कुमार सेठिया, राष्ट्रीय संयोजक श्री राकेश खटेड, मुख्य अतिथि श्री अतुल कोठारी ने रखे विचार..
👉 पूज्य गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
दिनांक: 05/10/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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