News in Hindi:
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
महातपस्वी आचार्य ने की आचार्य के प्रकारों का वर्णन
- कुछ आचार्य आंवले की तरह मिठे तो कुछ शर्करा ही तरह
- आचार्यश्री ने आचार्यों की शैली का किया विवेचन,
- आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को कराया विशेष मंत्र का प्रयोग
22.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः
भारत के दूसरे बड़े महानगर कोलकाता में स्थापित नवीन तीर्थस्थल से नियमित प्रवाहित होन वाली ज्ञान गंगा का प्रभाव मानों पूरे देश में हो रहा है, और हो भी क्यों आखिर ज्ञानगंगा की कोई सीमा तो है नहीं, जहां-जहां तक लोगों के हृदय तक पहुंचेगी जो भी आत्मसात करेगा, उसका प्रभाव वहीं स्पष्ट नजर आने लगेगा।
वर्ष 2017 का चतुर्मास कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में परिसम्पन्न कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि का लाभ लेने के लिए देश भर से श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ रहा है। आने वाले श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन, निकट सान्निध्य, सेवा, उपासना के अलावा उनके की मंगल प्रवचन का भी लाभ उठा रहे हैं और अपने जीवन को एक नई आध्यात्मिक दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं आचार्यश्री भी अपने भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करने के लिए नित नए आध्यात्मिक प्रयोग भी कर रहे हैं।
इसी क्रम में चल रहे शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन से ही आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन से कुछ समय पूर्व लगभग पन्द्रह मिनट तक आचार्यश्री श्रद्धालुओं को कुछ विशेष मंत्रों का जप करा रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में बैठकर आचार्यश्री के साथ मंत्रों का जप कर श्रद्धालुओं में मानों एक नवीन ऊर्जा का संचार हो रहा है। शुक्रवार को भी आचार्यश्री ने मुख्य प्रवचन से पूर्व श्रद्धालुओं को मंत्रों का जप कराया।
उसके उपरान्त अपने मंगल प्रवचन में ठाणं आगम में वर्णित आचार्यों के प्रकारों का वर्णन करते हुए कहा कि आगम में चार प्रकार के आचार्य बताए गए हैं। कुछ आचार्य आंवले के फल के समाने कुछ मिठे होते हैं तो कुछ आचार्य द्राक्षा फल के समान उससे कुछ मिठे होते हैं। वही कुछ आचार्य दूग्ध मधुर फल के समान होते हैं तो कुछ आचार्य बिल्कुल शर्करा की तरह मिठे होते हैं।
आचार्यश्री ने आगे विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि आचार्य वर्तमान में जिस स्वरूप में हैं, वे अपने संघ के अनुशास्ता भी होते हैं। वे आचार के क्षेत्र में नियामक होते हैं और ज्ञान के क्षेत्र में भी नियामक होते हैं। उनका काम संघ में अनुशासन व व्यवस्था को ठीक रखना होता है। साधु-साध्वियों की सार-संभाल के अलावा अपनी सीमा में श्रावक-श्राविकाओं का भी सार-संभाल करना होता है। आचार्य शासन-अनुशासन के द्वारा व्यवस्था को ठीक चलाने का प्रयास करते हैं। अनुशासन एक काम है और दूसरा काम वे ज्ञान के विकास भी प्रयास करते हैं। वे स्वयं में भी ज्ञान का विकास करते हैं और धर्मसंघ में ज्ञान का कितना विकास हो सके, स्वाध्याय अच्छा हो सके, लोगों में विद्वता आए, इसका भी प्रयास करते हैं। इसके आचार्य जितना हो सके, दूसरों को भी पढ़ाने स्वाध्याय कराने का प्रयास करते हैं। आचार्य आचार को भी यथासंभव अच्छा रखने की जिम्मेदारी होती है। इन कारणों से कोई आचार्य ज्यादा उलाहना देने वाले, झिड़क देने वाले होते हैं तो कुछ आचार्य थोड़ा कम उलाहना देने वाले होते हैं, वे शांत व उपशांत होते हैं। कुछ आचार्य इतने सरल होते हैं कि वे किसी को कभी उलाहना ही नहीं दे पाते, उनकी इतनी सरलता होती है। प्रत्येक आचार्य की अपनी-अपनी शैली होती है। वे उस हिसाब से कार्य को आगे बढ़ाते हैं। आचार्यश्री ने प्रवचन के अंत में तेरापंथ प्रबोध के आख्यान का भी अनवरत सरसशैली में श्रद्धालुओं को श्रवण कराया।