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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
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👉 दिल्ली - अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष श्री संचेती का कार्यालय में प्रथम बार आगमन पर अभिनंदन
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 156* 📝
*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी*
*दुष्काल का पुनः आगमन और अनशन*
गतांक से आगे...
बाल मुनि की उत्तम साधना को जैन धर्म की प्रभावना का निमित्त मान देव महोत्सव के लिए आए। देवागमन देखकर वज्रस्वामी ने श्रमण संघ को सूचित किया। तीव्र परिणामों से भीषण ताप को सहन करता हुआ लघुवय मुनि का अनशन पूर्ण हो गया। लघु मुनि का अनशन पूर्ण होने की बात सुनकर एक ही लक्ष्य में उद्यत सभी श्रमण क्षणभर के लिए विस्मित हुए। उनके भावों की श्रेणी चढ़ी। चिंतन चला "बाल मुनि ने स्वल्प समय में परमार्थ को पा लिया है। चिरकालिक संयम प्रव्रज्या को पालन करने वाले क्या हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे?" उत्तरोतर उनके भागतरंगे तीव्रगामी बन रही थी। एक रात्रि के समय प्रत्यनीक देवों का उपसर्ग हुआ। उस स्थान को अप्रतीतिकारी जानकर ससंघ वज्रस्वामी अन्य गिरिशृंग पर गए। वहां पर दृढ़ संकल्प के साथ अपना आसन स्थिर किया। मृत्यु और जीवन की आकांक्षा से रहित उच्च भावों में लीन श्रमण प्राणों का उत्सर्ग देकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।
अनशन की स्थिति में समाधि के साथ वज्रस्वामी का स्वर्गवास हुआ।
पांच सौ श्रमणों सहित आचार्य वज्रस्वामी की समाधिस्थली गिरिमंडल के चारों ओर रथारूढ़ इंद्र ने रथ को घुमाकर प्रदक्षिणा दी, अतः उस पर्वत का नाम रथावर्त पर्वत हो गया।
आचार्य वज्रस्वामी जैन शासन के सबल एवं महान प्रभावी आचार्य थे। उनके स्वर्गगमन के साथ दसवें पूर्व की ज्ञान संपदा एवं चतुर्थ अर्धनाराच संहनन की क्षति हुई।
कालिक सूत्रों की अपृथक्तत्व व्याख्यान पद्धति (प्रत्येक सूत्र का चरणकरणानुयोग आदि चारों अनुयोगों से विभागशः विवेचन) भी आचार्य वज्रस्वामी के बाद अवरूद्ध हो गई।
वज्रस्वामी दशपूर्वधर थे। पदानुसारी लब्धि, क्षीरस्रावलब्धि आदि के धारक थे। गगनगामिनी विद्या के उद्धारक थे। नाना रूप निर्मात्री विद्या के स्वामी थे। दशपूर्वों की विशाल ज्ञानराशि के अंतिम संरक्षक आचार्य थे। उनके बाद ऐसी क्षमता किसी को प्राप्त नहीं हुई। महानिशीथ सूत्र के तृतीय अध्ययन में प्राप्त उल्लेखानुसार पंचमंगल श्रुतस्कंध को मूल सूत्रों के साथ नियोजित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया। इससे पहले पंचमंगल महाश्रुतस्कंध (नमस्कार महामंत्र) एक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित था। इस सूत्र की व्याख्या में कई निर्युक्ति, भाष्य और चूर्णि ग्रंथ थे। कालक्रम से ये लुप्त हो गए।
गगनगामिनी विद्या वज्रस्वामी के पास थी पर भविष्य में अधृतिवश कोई इसका गलत उपयोग न कर ले, यह सोच वज्रस्वामी ने यह विद्या अन्य किसी को प्रदान नहीं की।
वज्रस्वामी कुशल व्याख्याता थे। उनके प्रवचनों में जिनवाणी का अमृत बरसता था। दिन भर लोगों का तांता जुड़ा रहता। व्याख्यान के समय भारी भीड़ उमड़ती। धर्म प्रचार की दृष्टि से वज्रस्वामी का शासनकाल विशेष प्रभावक एवं प्रेरक रहा। वज्रस्वामी 9 वर्ष तक गृहस्थ में रहे, जन्म के बाद उनका छह मास का समय मां के संरक्षण में बीता। उसके बाद उनका पालन पोषण गुरु नेश्राय में शय्यातर के घर पर हुआ। उन की कुल आयु 88 वर्ष थी। मुनि पर्याय के 80 वर्ष में लगभग 36 वर्ष तक उन्होंने युगप्रधान पद पर रहकर धर्म संघ का संचालन किया। विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी वीर निर्वाण 548 (विक्रम संवत 114, ईस्वी सन् 57) में स्वर्गवासी हुए।
विद्याओं के धनी विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्र जैन धर्म के आधार स्तंभ थे।
*आचार्य-काल*
(वीर निर्वाण 548-584)
(विक्रम संवत 78-114)
(ईस्वी सन् 21-57)
*अक्षयकोष आचार्य आर्यरक्षित का प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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