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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
सुगति के अनुरूप जीवन, वैश्विक समस्याओं का समाधान: आचार्यश्री महाश्रमण
-जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय द्वारा ‘वैश्विक समस्याओं का समाधानः जैन दर्शन’ कार्यक्रम आयोजित
-महातपस्वी की सन्निधि में वैश्विक समस्याओं के समाधान में जैन दर्शन को विद्वतजनों ने बताया आवश्यक
-भारतीय संस्कृति और संतों के माध्यम से ही भारत ही कर सकता है वैश्विक समस्याओं का समाधान
-आचार्यश्री ने विद्वतजनों को प्रदान किया आशीर्वाद, कहा सुगति के अनुरूप आचरण ही समाधान
14.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जन-जन का कल्याण करने वाले, जन-जन के मानस को पावन बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुरुवार को भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संगठनों से जुड़े विद्वतजन जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘वैश्विक समस्याओं का समाधान: जैन दर्शन’ विषयक में प्रतिभाग करने को पहुंचे। आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में सुगति के अनुरूप जीवन जीने से ही वैश्विक समस्याओं के समाधान हो जाने के रास्ते को प्रदर्शित किया तो समस्त विद्वतजन भी प्रणत होकर आचार्यश्री द्वारा सुझाए गए मार्ग को ही समस्याओं का समाधान बताया। सभी विद्वतजनों ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी और अपनी कृति भी आचार्यश्री के चरणों में अर्पित की। आचार्यश्री ने सभी को पावन आशीर्वाद और पथदर्शन प्रदान किया।
गुरुवार को अध्यात्म जगत् के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वतजन उपस्थित था। अवसर था जैन विश्वभारती द्वारा आयोजित ‘वैश्विक समस्याओं का समाधान: जैन दर्शन’ विषयक गोष्ठी का। गोष्ठी का शुभारम्भ आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। उसके उपरान्त जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलपति श्री बच्छराज दुगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। हिमाचल प्रदेश के केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति श्री कुलदीप अग्निहोत्री ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व की 40 संस्कृतियों में से अब 39 नष्ट हो चुकी हैं, मिट चुकी हैं, केवल पूरी दुनिया में एकमात्र भारतीय संस्कृति ही अपनी निरंतरता के साथ गतिमान है। जैन दर्शन की बात इसलिए कही जा सकती है कि इसमें अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है। भारतीय संस्कृति के मूल में अहिंसा है और जैन दर्शन का ज्यादा जोर अहिंसा पर है, इसलिए विश्व की समस्याओं का समाधान हमारे भारत और जैन दर्शन से संभव हो सकता है। पूर्व कुलपति श्री महावीर गेलड़ा ने भी विषय पर आधारित अपने विचार व्यक्त किए और आचार्यश्री के समक्ष स्वरचित पुस्तक ‘जैन आगमों का सामान्यज्ञान’ श्रीचरणों में लोकार्पित की।
इसके उपरान्त आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन द्वारा पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ‘ठाणं’ आगम के चैथे स्थान में चार सुगतियों-सिद्ध सुगति, देव सुगति, मनुज सुगति और सुकुल प्रत्याजाति सुगति का वर्णन किया। आचार्यश्री ने कहा कि जहां आत्मा को कोई कष्ट-दुःख न हो, आत्मा को सबकुछ प्राप्त हो, वह सुगति होती है। सुगति प्राप्ति के लिए आदमी को गलत कार्यों से बचने का प्रयास करना चाहिए और सदाचार के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए। सुगति को ध्यान में रखकर आदमी अपने आचरण को अच्छा बनाने का प्रयास करे, यथार्थ के प्रति श्रद्धा, यथार्थ दृष्टिकोण हो तो सुगति प्राप्त हो सकती है।
आचार्यश्री ने विद्वतजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि राजा केवल अपने राज्य में पूजा जा सकता है, किन्तु विद्वानों की सर्वत्र पूजा होती है। विद्वान लोग अपने ज्ञान का दान दें और दूसरों को भी ज्योतित बनाने का प्रयास करें। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ का भी सरसशैली में आख्यान दिया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त प्रोफेसर दयानंद भार्गव ने जैन पंरपरा के संत जिस तरह से प्रकृति के प्रति सजग रहते हैं, उनके अनुसार चलने से समस्त समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाएगा। उन्होंने आचार्यश्री के समक्ष स्वरचित पुस्तक ‘कंट्रीब्यूशन आॅफ आचार्य महाप्रज्ञ टू इंडियन कल्चर’ अर्पित की। कर्नाटक से आचार्य प्रोफेसर शुभचंद्र जैन ने भी विषय पर आधारित अपने बातों की अभिव्यक्ति दी।