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जिस प्रकार भगवान शांतिनाथ के तीर्थंकर पद प्रवर्तन के बाद से इस बसुधा से धर्म का ह्रास नही हुआ ठीक उसी प्रकार राजस्थान में जगत पूज्य मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज के प्रवेश करने के बाद से उनके द्वारा पुनः सम्यक क्रियाओं से मिलने वाले पुण्य को परिभाषित किया गया और भटक रहे साधर्मी भाइयो को पुनः संघटित कर जिन मार्ग में पुनर्स्थापित करने के लिये शांतिधारा का आलम्बन लेने को कहा गया तभी से लेकर आज तक राजस्थान से चलते हुए सारे भारत मे आज शांतिधारा एक ऐसा सिद्धि मन्त्र एवं क्रिया बन कर उभरी है जिस का फायदा प्रत्येक वर्ग के लोगो को दिखाई दे रहा है
_जगत पूज्य ने शांतिधारा करने वालो को शर्त यह दी है कि कभी पाप के फल की इक्छा करते हुए शांतिधारा को मत करना वरना यह उस समय तो फल देगी किन्तु बाद में इसका अतिशय शून्य हो जाएगा मुनि श्री कहते है आप अपने पाप के फल को तो साता से भोगे किन्तु जब सम्पन्नता हो सुख हो तो शांति धारा करते हुए प्रभु का स्मरण करे और ऐसा करने से पक्का है कि आप के पूर्व के पाप भी कटेंगे ओर नए पाप करने के भाव भी नही होंगे_
आज श्रावक संस्कार शिबिर में मंत्रित शांतिधारा के गंधोदक से सभी शिविरार्थियों के मस्तिष्क को अपने हाथों से पवित्र करते हुए उनके मंगल की काँमना की, यह वह अलौकिक दृश्य होता है जिसे देख सभी भाव बिभोर हो जाते है और यह पल सारे शिविर का एक मात्र वह पल होता है जब समस्त शिविरार्थियों के बिलकुल नजदीक में गुरु जी खड़े होते है और प्रत्येक के सिर पर हाथों का स्पर्श भी करते है शायद ही यह आत्मीयता कही और दिखाई देती है जो एक गुरु शिष्य के मध्य शिविर के मध्य में आज के विशेष दिन दिखाई देती है कही ना कही शिविरार्थीओ के मन मे बजी आज के दिन का इंतजार भी बना रहता है जब उनके गुरु के दर्शन उन्हें इतनी निकटता से होवे ओर आशीर्वाद भी प्राप्त हो*
_जगत पूज्य के कल्याणकारी भावो का प्रभाव भी इतना जबरदस्त होता है कि एक बार मंत्रित शांतिधारा सहित हाथों का स्पर्श पा सभी शिविरार्थी अपने आप को स्वस्थ,निरोगी ओर पूर्णतया सुरक्षित शरण मे मानने लगते है दसलक्षण पर्व में लगने वाले इस विशालतम विशाल शिविर में शिविरार्थीओ की संख्या ने अब तक के सभी रिकार्डो को पीछे कर तो दिया किन्तु जगत पूज्य ने सभी के पास स्वयं पहुच कर यह सिद्ध कर दिया कि शिविरार्थियों की संख्या कितनी भी बढ़ जाये किन्तु उनका आशीर्वाद आज भी प्रत्येक के पास अलग अलग और सभी को एक साथ सदा बना रहेगा यह भी आज के युग का एक बहुत बड़ा अतिशय ही है जो हमे ऐसे सच्चरित्र गुरु का समागम प्राप्त हो रहा है जिनकी साधना कठिनतम कठिन है किंतु दर्शन सहजतम सहज -श्रीश ललितपुर
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आज Ice-Cream का त्याग करे.. जो भी 1 दिन का नियम लेना चाहते हैं, comment में 'त्याग हैं' लिखे, वंदना करूँ मैं गणिनी ज्ञानमती की, 20वीं सदी की प्रथम बालसती की 😊 #AryikaGyanmati
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News in Hindi
आप सभी से एक विनम्र निवेदन 11 दिन से पर्युषण पर्व चल रहे थे... 🤔🤔 #AcharyaVidyasagar
आज पारणे के पश्चात अधिकांश जैन लोग रात्रिभोजन एवं जमीकंद का पुनः प्रयोग प्रारम्भ कर देंगे । कुछ लोग बाज़ार में भी पावभाजी चाट भेलपुरी पानीपुरी आदि का सेवन करेंगे । इसमें कोई तकलीफ वाली बात नहीं है परंतु इसके साथ सबके सामने ये कहना की ले भाई अब मस्त प्याज़ डाल कर भेल या पावभाजी बना.. दस दिन से नहीं खाया है... आदि
आपने ये सब धर्म के लिए किया है आपके शब्द अन्य धर्मावलंबियो के सामने आपकी हीनता और अश्रद्धा को व्यक्त करेंगे । कृपया इस तरह के शब्दों का प्रयोग करके अपने धर्म की तौहीन न करें । ये दस दिन आपके सज़ा के नहीं थे । ये हमारे सद्कर्मो का फल है की हमे जैन धर्म जैसा महान धर्म विरासत में मिला है ।
यदि हम अपने धर्म को आदर देंगे तो ही अन्य भी देंगे इसलिए आप कुछ भी करें पर बोलने का विवेक रखें । धन्यवाद एवं क्षमायाचना ।
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