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प्रस्तुति: तेरापंथ नेटवर्क
संप्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..
दिनांक - 24/08/2017
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प्रस्तुति - 🌻 #तेरापंथ संघ संवाद 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 135* 📝
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
प्रभावक चरित्र ग्रंथ के अनुसार पादलिप्त सूरि की बुद्धि की परीक्षा हेतु विद्वान वृहस्पति ने उष्ण घृत से भरा कटोरा उनके सम्मुख भेजा। धारिणी विद्या के द्वारा पादलिप्त सूरि ने घृत में सुई को ऊर्ध्व स्थिति में स्थापित कर कटोरे को वापिस लौटा दिया। पादलिप्त सूरि की विस्मयकारी विद्या को जानकर विद्वान वृहस्पति हतप्रभ हो गया।
नगर प्रवेश के समय विद्वद्वर्ग सहित शातवाहन नरेश ने पादलिप्त सूरि का स्वागत किया एवं प्रवेश महोत्सव मनाया।
एक बार पादलिप्त सूरि ने तरंङ्गलोला (तरंगवती) नामक चम्पू काव्य की एक दिन में रचना कर राजा शातवाहन की विद्वद्सभा में उसका वाचन किया। काव्य पाठ सुनकर राजा तुष्ट हुआ। कवींद्र के नाम से पादलिप्त सूरि की ख्याति हुई। कवियों ने मुक्तकंठ से उनकी प्रशंसा की परंतु राजसम्मानिता गुणज्ञा गणिका ने उनकी स्तवना में एक शब्द भी नहीं कहा। राजा शातवाहन पादलिप्त सूरि से बोले "तत्क्रियतां येन स्तुतेः।" आप ऐसा उपक्रम करें जिससे यह गणिका भी आपके इस काव्य की स्तुति में हमारे साथ हो। प्रभावक चरित्र के अनुसार गणिका के स्थान पर पांचाल कवि का उल्लेख है। पादलिप्त सूरि के काव्य श्रवण से सब संतुष्ट थे पर असूर्याक्रांत पांचाल कवि प्रसन्न नहीं था। वह इस उत्तम काव्य में कई दोषों को आरोपित करता हुआ बोला
*मद्ग्रंथेभ्यो मुषित्वार्थबिन्दुं कंथेयमग्रथि।*
*बालगोपाङ्गनारङ्गसङ्गि ह्येतद्वचः सदा।।334।।*
*(प्रभावित चरित्र, पृष्ठ 39)*
मेरे ग्रंथों से अर्थ की चोरी कर कथा नहीं कन्था (गुदड़ी) रची है। प्राकृत के ये साधारण वचन बालगोपाल को प्रभावित करने में समर्थ हैं। इससे विद्वानों का चित्त आकृष्ट नहीं हो सकता।
पादलिप्त सूरि का चामत्कारिक विद्याओं पर भी प्रभुत्व था। वे उपाश्रय में गए एवं पवनजय मंत्र विद्या से श्वास की गति का अवरोध कर पूर्ण निश्चेष्ट हो गए। उनकी कपट मृत्यु यथार्थ मृत्यु की प्रतीति करा रही थी। सर्वत्र हाहाकार मच गया। वाद्यों की ध्वनि के साथ शवयान नगर के प्रमुख मार्गो से ले जाया जा रहा था। शवयात्रा पांचाल कवि के द्वार तक पहुंची। पादलिप्त सूरि को शवयान में देखते ही कवि पांचाल रो पड़ा और बोला
*आकरः सर्वशास्त्रणां रत्नानामिव सागरः।*
*गुणैर्न परितुष्यामो यस्य मत्सरिणो वयम्।।340।।*
*(प्रभावित चरित्र, पृष्ठ 39)*
रत्नाकर की भांति समग्र शास्त्रों के आकर महासिद्धि प्राप्त पादलिप्त सूरि थे। ईर्ष्यावश मैं उनके गुणों से परितुष्ट नहीं हुआ। मेरे जैसे असूयी व्यक्ति को कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। पादलिप्त सूरि उच्च कोटि के कवि थे।
*कवि पांचाल ने आचार्य पादलिप्त सूरि की प्रशंसा में और क्या कहा...? आचार्य पादलिप्त सूरि के जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 135📝
*व्यवहार-बोध*
*आत्मा*
(दोहा)
*77.*
बाबा! पीना दूध है, देख रहे क्या तत्त्व?
देख रहा नवनीत का, कहां दूध में सत्त्व?
*78.*
तपे जमे मन्थान से मन्थन फिर नवनीत।
यही सयाने! समझ ले, आत्ममिलन की रीत।।
*45. बाबा! पीना दूध है...*
एक पढ़ा-लिखा युवक था। उसका बौद्धिक ज्ञान प्रखर था, पर वह आध्यात्मिक ज्ञान से शून्य था। आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म में उसकी आस्था नहीं थी। उसके गांव में एक महात्मा आए। वे आत्मा के बारे में बहुत अच्छा प्रवचन करते थे। मित्रों से जानकारी पाकर वह युवक बोला— 'बाबा! आत्मा-आत्मा की रट लगा रखी है। किसने देखा है आत्मा को? यदि आप आत्मा को देखते हैं तथा दूसरों को दिखा सकते हैं तो मुझे आत्मा दिखाओ। अन्यथा आपका प्रवचन कोरा पाखण्ड है।
युवक के हावभाव और बोलने का तरीका देख महात्मा ने समझ लिया कि यह आदमी जिज्ञासु नहीं, आग्रही है। इसे तरीके से समझाना चाहिए। थोड़ी देर बाद इधर-उधर की बात कर महात्मा ने कहा— 'थोड़े-से दूध की अपेक्षा है। यहां उपलब्ध हो सकता है क्या?' युवक का दृष्टिकोण धार्मिक नहीं था, किंतु वह व्यावहारिक ज्ञान में पीछे नहीं था। वह बोला— 'बाबा! अभी दूध लाता हूं।'
युवक गया और एक प्याला भर दूध ले आया। दूध का प्याला हाथ में लेकर महात्मा उसे ध्यान से देखने लगे। युवक बोला— 'बाबा! दूध अच्छा है, पी लो। देखते क्या हो?' महात्मा ने कहा— 'लोग कहते हैं कि दूध में मक्खन होता है। मैं देखना चाहता हूं कि वह कहां है?' इस बात पर युवक खिलखिलाकर हंसा। वह बोला— 'आप तो भोले हैं। दूध में मक्खन ऐसे दिखता है क्या? पहले दूध को उबाला जाता है, फिर जमाया जाता है, फिर मथनी से मथा जाता है तब कहीं मक्खन निकलता है।'
युवक की बात सुन महात्मा ने एक रहस्य भरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा— 'वत्स! मैं कहता हूं कि शरीर में आत्मा है पर उसका न कोई रंग-रूप है और न वह ज्ञान या तर्क का विषय है। इसलिए वह हथेली में लेकर दिखाने की चीज नहीं है। पहले शरीर को तपाओ– तपस्या करो। मन को जमाओ– ध्यान करो। फिर चिंतन-मनन करो। आत्मा का ज्ञान हो जाएगा।' युवक को समाधान मिल गया। वह बोला— 'बाबा! आपने कमाल कर दिया। मेरे कथन से ही मेरे प्रश्न का उत्तर दे दिया।'
*महान साधक सन्त एकनाथ के जीवन से जुड़ा आत्मा के बारे में समझाने वाला एक प्रेरणादायी प्रसंग* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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24 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- भादवा शुक्ला तृतीया*
आत्मलीन हो करें पंच परमेष्ठी गुणों का स्मरण।
शेष रहे न कुछ पाना हो जाता जब अंतःस्फुरण।।
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