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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 130* 📝
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
आचार्य महेंद्र के मंत्रविद्या प्रयोग से अभिभूत पाटलिपुत्र के ब्राह्मणों को आचार्य खपुट ने भरौंच में जैन दीक्षा प्रदान की। तब से जाति वैर के कारण भरौंच के ब्राह्मण जैन समाज के प्रतिकूल हो गए। उस समय का वैमनस्य जैन और ब्राह्मण समाज में विग्रह का कारण बन गया। आचार्य पादलिप्त का भरौंच में यह पदार्पण ब्राह्मणों द्वारा उत्पन्न विग्रह को शांत करने के उद्देश्य से हो रहा था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रभात के समय राजा कृष्ण को विहार की योजना बताकर पादलिप्त सूरि ने वहां से प्रस्थान किया। गगन मार्ग से भरौंच पहुंचे।
विलक्षण शक्ति संपन्न महाप्रभावी आचार्य पादलिप्त के आगमन से जैन समाज में हर्ष की लहर दौड़ गई। पादलिप्त सूरि की गगनगामिनी विस्मयकारक क्षमता से भयभीत होकर विग्रह उत्पन्न करने वाले व्यक्ति वहां से चले गए थे। सारे शहर में पादलिप्त सूरि की यशोगाथा गूंजने लगी।
भरौंच नरेश भी पादलिप्त सूरि के दर्शन करने आया और निवेदन किया
*"राजाह सुकृती कृष्णः पूज्यैर्यो न विमुच्यते।"*
मानखेटपुर नरेश कृष्ण भाग्यशाली हैं जिनको आपका सान्निध्य निरंतर प्राप्त होता है। अब हमें भी आपके दर्शनों का एवं उपासना का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त होना चाहिए।
पादलिप्त सूरि बोले "राजन्! मैं आज अपराह्न में मारखेट पहुंचने के लिए नरेश कृष्ण से वचनबद्ध हूं। मुझे कई स्थानों पर तीर्थ यात्राएं भी करनी है, अतः शीघ्र ही यहां से अब प्रस्थान करना अत्यंत जरुरी है।" भरौंच नरेश की प्रार्थना पर भी पादलिप्त सूरि नहीं रुके। वे दिन के पश्चिम भाग में आकाश मार्ग से मानखेट नगर में पहुंच गए। वहां से पदयात्री बनकर तीर्थयात्रा प्रारंभ की। तीर्थयात्रा के इस क्रम में वे सौराष्ट्र प्रदेशांतर्गत टंका नामक महापुरी में पहुंचे। वहीं उन्हें नागार्जुन शिष्य की उपलब्धि हुई। नागार्जुन संग्रामसिंह क्षत्रिय का पुत्र था। उसकी माता का नाम सुव्रता था।
*आचार्य पादलिप्त को नागार्जुन शिष्य की उपलब्धि के प्रसंग* को पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 130📝
*व्यवहार-बोध*
*प्रकृतिपरिष्कार*
(लावणी)
*74.*
खोड़ीली चौकी प्रकृति गीत जय-विरचित,
पढ़ते-पढ़ते हो जाएं पूरे परिचित।
मानव मन का वैज्ञानिक विश्लेषण है,
अनुशीलन अपने परिष्कार का क्षण है।।
(दोहा)
*75.*
अपनी दुर्बलता कमी, स्खलना और प्रमाद।
पहचानें पूछें करें परिष्कार अविवाद।।
*43. खोड़ीली चोखी प्रकृति...*
जयाचार्य ने मनोविज्ञान नहीं पढ़ा। पर वे सहज सिद्ध मनोवैज्ञानिक थे। वे मानव मन के सुक्ष्म भावों को भी समझते थे। उन्होंने राजस्थानी भाषा में विपुल साहित्य का सृजन किया। उनके साहित्य में दो गीत हैं—
*(1)* खोड़ीली प्रकृति नों धणी।
*(2)* चोखी प्रकृति नों धणी।
मनुष्य के बुरे और अच्छे स्वभाव का विश्लेषण करते हुए उन्होंने अपनी भावधारा का जो चित्र खींचा है, वह उसके निषेधात्मक और विधायक भावों का चित्र है। इन दोनों गीतों का बार-बार अनुशीलन करने वाला अपनी प्रकृति का परिष्कार कर सकता है। वे दोनों गीत आंशिक रूप में यहां दिए जा रहे हैं। पूरे गीत पढ़ें— *'तेरापंथ मर्यादा और व्यवस्था'* शिक्षा री चोपी ढाल 2, 3।
*खोड़ीली चोखी प्रकृति नों धणी।।*
*1.*
करे चालंतां बात,
कहै कोइ ते भणी।
ठीक न कहै बोले ओर,
खोड़ीली प्रकृति नों धणी।।6।।
*2.*
आहार करतां पूरी जायणा नांहि,
करै को जतावणी।
तो पाछौ ओड़ो दै जाण,
खोड़ीली प्रकृति नों धणी।।8।।
*3.*
चूकै पडिलेहण करंत,
दीयै सीख ते भणी।
फेरै मुंह नों नूर,
खोड़ीली प्रकृति नों धणी।।9।।
*4.*
इक दिन में चूकां बहू बार,
करै को जतावणी।
कहै लागो म्हारी लार,
खोड़ीली प्रकृति नों धणी।।13।।
*"खोड़ीली प्रकृति नों धणी" ढाल के पद्य* आगे और पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update
👉 पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"राजरहाट", कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
दिनांक - 17/08/2017
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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻
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17 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- भादवा कृष्णा दशमी*
स्वच्छ और शुद्ध हो जब खानपान ।
तो सुख - शांति की बजती मधुर तान ।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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