16.08.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 16.08.2017
Updated: 17.08.2017

Update

👉 *अणुव्रत महासमिति के अहिंसा समवाय प्रभारी डॉ. बी.एन. पाण्डयेे (93 वर्षीय, स्वतंत्रता सेनानी) का हुआ सम्मान..*
👉 *महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद, तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी* ने किया *श्री बी.एन.पाण्डये (अहिंसा समवाय प्रभारी, अणुव्रत महासमिति)* को *समान्नित..*

दिनांक: 09/08/2017

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 129* 📝

*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

आचार्य पादलिप्त की कई इतिहास प्रसिद्ध चमत्कारिक घटनाए ओंकारपुर में घटित हुईं।

एक बार आचार्य पादलिप्त के बौद्धिक बल से प्रभावित होकर लाट देश के पंडितों ने उनसे पूछा

*पालित्तय! कहसु फुडं सयलं महिमंडलं भमंतेण।*
*दिट्ठो सुओ व कत्थ वि चंदणरससीयलो अग्गी*
*।।109।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 31)*

आर्य! महिमण्डल पर भ्रमण करते हुए आपने कहीं अग्नि को चंदन रस के समान शीतल देखा या सुना है?

पादलिप्त सूरि ने त्वरा से काव्यमयी भाषा में उत्तर दिया

*"अयसाभियोगसंभिदूमियस्स पुरिसस्स सुद्धहियस्स।*
*होइ वहन्तस्स फुडं चंदणरससीयलो अग्गी*
*।।111।।"*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 32)*

अपने अकीर्तिजन्य दुःख से व्यथित व्यक्तियों को अग्नि भी चंदन रस के समान शीतल अनुभूत होती है।

आचार्य पादलिप्त की प्रत्युत्पन्न प्रतिभा के सामने पंडितों के मस्तक झुक गए।

एक बार आचार्य पादलिप्त ने शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा की। उसके बाद भी मानखेटपुर गए। मानखेट में उस समय नरेश कृष्ण का राज्य था। राजा कृष्ण ने आचार्य पादलिप्त का भक्तिपूर्वक सत्कार किया। मानखेटपुर में उस समय प्रांशुपुर से रुद्रदेव सूरि और विलासपुर से श्रमणसिंह सूरि आए। विलासपुर में उस समय राजा प्रजापति का शासन था। रुद्रदेव सूरि योनिप्राभृत के ज्ञाता थे एवं जीवोत्पत्ति के विषय का उन्हें अधिकृत ज्ञान था। श्रमणसिंह सूरि ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने नरेश प्रजापति के सामने ज्योतिष विद्या के कई आश्चर्यकारी रहस्य उद्घाटित किए। इन दोनों विद्वानों के साथ आचार्य पादलिप्त के मिलन संबंधी संकेत प्रभावक चरित्र ग्रंथ में नहीं है।

आचार्य पादलिप्त के बुद्धिबल एवं विद्याबल से नरेश कृष्ण और उसकी सभा के विद्वान् अत्यधिक प्रभावित थे। राजा के आग्रह से आचार्य पादलिप्त लंबे समय तक मानखेटपुर नगर में विराजे। एक बार भरौंच के श्रावकों की प्रार्थना पर आचार्य पादलिप्त ने उन्हें कार्तिक पूर्णिमा को वहां पहुंचने का वचन दिया।

*आचार्य पादलिप्त भरौंच कैसे पहुंचे और वहां पर क्या विशेष घटित हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 129📝

*व्यवहार-बोध*

*संस्कृति सुरक्षा*

*73.*
लोक-प्रशिक्षण में उतरें तो,
चितरंजन को याद करें।
छोड़ दासता दुर्बलता की,
शांतिपूर्ण सिंहनाद करें।।

*42. लोक प्रशिक्षण में उतरें...*

चितरंजनदास बंगाल के प्रसिद्ध वकील थे। चालीस-पचास हजार उनकी मासिक आय थी। भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी ने आंदोलन शुरु किया। चितरंजन बाबू उससे प्रभावित हुए। उन्होंने सर्विस छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का निर्णय ले लिया। अपने निर्णय के अनुसार वे गांधीजी के आश्रम में जा कर रहे।

चितरंजन बाबू चाय और सिगरेट पीते थे। गांधी आश्रम में दोनों चीजें मिलने की संभावना नहीं थी। उन्होंने मन को समझाया और दोनों चीजें छोड़ दीं। वर्षों की आदत एक झटके से कैसे बदलती। वे बेचैन हो गए। उन्हें नींद नहीं आई। काम में पूरा मन नहीं लगा। बार-बार उन्हीं चीजों की याद आती रही।

दो दिन बाद चितरंजन बाबू की बहन उनसे मिलने आई। भाई की हालत देख वह घबरा गई। वह सीधी गांधीजी के पास जाकर बोली— 'महात्माजी! मेरे भाई ने सब कुछ छोड़ दिया। संपत्ति छोड़ी, सुख सुविधा छोड़ी और अपना जीवन आप को समर्पित कर दिया। आप उस पर थोड़ी सी कृपा करें और उसे सिगरेट पीने की छूट दें। देखिए, दो दिनों में इसकी कैसी हालत हो गई है?'

चितरंजन बाबू वहीं बैठे थे। गांधीजी कुछ कहें, उससे पहले ही वे बोल उठे— 'बहन! तुम मेरी बेचैनी देखकर घबरा गई। पर तुम जानती हो कि मैं लोकशिक्षण के क्षेत्र में उतरा हूं। लोगों को प्रशिक्षण देना हमारा दायित्व है। हम स्वयं नशा करेंगे तो लोगों को क्या शिक्षण देंगे? स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक व्यसनों के गुलाम रहेंगे तो काम कैसे करेंगे? मेरे लिए ऐसी बात कभी मत कहना। मैं कभी सिगरेट नहीं पिऊंगा।' भाई की शांतिपूर्ण सिंह गर्जना सुनकर बहन मौन हो गई।

*प्रकृतिपरिष्कार* के बारे में आगे पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 *महाश्रमण चरणों में...*
👉 *साध्वी प्रमुखा श्री जी..*
👉 *राजरहाट, कोलकत्ता से..*
👉 *आज प्रातःकाल के सुनहरे दृश्य..*

दिनांक: 16/08/17

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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 128* 📝

*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

सुप्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में मुरुण्ड राजा और आचार्य पादलिप्त से संबंधित एक घटना का उल्लेख किया है। वह इस प्रकार है—

एक बार नरेश मुरुण्ड ने आचार्य पादलिप्त से प्रश्न किया "हमारे वेतन भोगी कर्मचारी वेतन के अनुसार कार्य करते हैं। भिक्षावृत्ति के आधार पर जीने वाले आपके शिष्य वेतन के प्रलोभन के बिना आपके कार्य को करने के लिए तत्पर रहते हैं। इसका क्या रहस्य है?" प्रत्युत्तर में पादलिप्त बोले "राजन्! उभयलोक की हित भाव से प्रेरित होकर ये शिष्य गुरु के कार्य को करने के लिए सदा तैयार रहते हैं।" पादलिप्त के इस उत्तर से मुरुण्ड के मन को संतोष नहीं हुआ। अपनी बात अधिक स्पष्ट करते हुए राजा मुरुण्ड ने कहा "लोक व्यवहार का प्रमुख आधार धन होता है। हर व्यक्ति धन के प्रलोभन से काम करता है। यह अनुभव सिद्ध है। इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।" राजा की बात सुनकर पादलिप्त सूरि मुस्कुराए। कुछ समय तक दोनों में इस विषय पर चर्चा होती रही। अपनी-अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए राजा ने मंत्री को और आचार्य पादलिप्त ने अपने नव दीक्षित शिष्य को आदेश दिया। वे जांच कर बताएं "गंगा किस दिशा की ओर बह रही है?" मंत्री की मति बरगला गई उसने सोचा "बाल मुनि के साथ में रहने से राजा की बुद्धि भी बालक जैसी हो गई है। इस साधारण प्रश्न का उत्तर महिलाएं भी दे सकती हैं।" इस प्रकार बुदबुदाता हुआ मंत्री राजा के आदेशानुसार वहां से चला। मंत्री जुए का व्यसनी भी था। अपने दोस्तों के साथ जुआ खेलने में समय बिताकर मंत्री राजा के पास लौटा और निवेदन किया "राजन्! गंगा पूर्वाभिमुख बह रही है।" मंत्री ने राजाज्ञा का पालन ईमानदारी से नहीं किया। इस बात की विश्वस्त सूचना राजा को गुप्तचरों द्वारा पहले ही ज्ञात हो गई। इधर पादलिप्त सूरी का नव दीक्षित शिष्य गंगा के तट पर गया। पूरी जांच की। लोगों से पूछा। प्रामाणिक जानकारी प्राप्त कर गुरु के पास आया और विनम्र शब्दों में गंगा के पूर्वाभिमुख बहने की बात कही। स्थिति का यथार्थ ज्ञान होने पर शिष्य के विनम्र व्यवहार से नरेश मुरुण्ड अत्यधिक प्रसन्न हुआ।

पाटलीपुत्र से विहार कर आचार्य पादलिप्त मथुरा गए तथा वहां से लाट प्रदेशांतर्गत ओंकारपुर पहुंचे। ओंकारपुर में उस समय राजा भीम का राज्य था। विद्वान आचार्य पादलिप्त को नरेश भीम ने बहुमान प्रदान किया।

*आचार्य पादलिप्त की कई इतिहास प्रसिद्ध चमत्कारिक घटनाए ओंकारपुर में घटित हुईं... उनमें से कुछ घटनाओं* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 128📝

*व्यवहार-बोध*

*संस्कृति सुरक्षा*

*72.*
क्यों छोड़ें सिद्धान्त स्वयं के,
क्यों अपनी आस्था बदलें।
आशुतोष ज्यों ठोस घोष कर,
संस्कृति-संरक्षक पद लें।।

*41. क्यों छोड़ें सिद्धान्त...*

आशुतोष मुख़र्जी कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे। बंगाल विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे। वे बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनकी विदेशयात्रा करने की इच्छा थी। उसके लिए उन्होंने अपनी मां से बात की। मां बोली— 'बेटा! देश से बाहर जानेवाले व्यक्ति अपना खान-पान सही नहीं रख पाते। उनके रहन-सहन पर भी वहां का असर आ जाता है। वे अपनी संस्कृति को भूल जाते हैं। तुम्हें विदेश नहीं जाना है।' मुखर्जी बाबू मातृभक्त थे। मां के आदेश को उन्होंने आदर के साथ स्वीकार किया और विदेशयात्रा का विचार छोड़ दिया।

लार्ड कर्जन भारत के गवर्नर जनरल थे। एक बार वे कलकत्ता आए। उन्होंने वहां के संभ्रांत और विशिष्ट लोगों की एक मीटिंग बुलाई। आशुतोष मुख़र्जी भी उसमें उपस्थित थे। लार्ड कर्जन ने कहा— 'मुखर्जी बाबू! आप विदेश नहीं गए?'

मुखर्जी बोले— 'जाने की इच्छा थी, किंतु मां ने मना कर दिया इसलिए नहीं गया।' यह बात सुन लार्ड कर्जन ने कहा— 'मां से कहो कि भारत के गवर्नर जनरल ने विदेश जाने की आज्ञा दी है। इस कारण विदेश जाना जरूरी है।' लार्ड के निर्देश पर आशुतोष बाबू बोले— 'आशुतोष मातृभक्त है। वह हर कीमत पर मां की बात मानेगा। मां की इच्छा के विपरीत कोई कुछ भी कहे, वे भले गवर्नर जनरल ही क्यों न हो, नहीं मानेगा। यह अहंकार नहीं, हमारी संस्कृति है। मैं अपनी संस्कृति को कैसे छोड़ सकता हूं?'

*स्वयं की दुर्बलता की दासता छोड़, लोक प्रशिक्षण के क्षेत्र में उतरने वाले बंगाल के प्रसिद्ध वकील चितरंजन दास के जीवन के एक प्रसंग* के बारे में आगे पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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  1. आचार्य
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