10.08.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 10.08.2017
Updated: 11.08.2017

Update

यह पैर क्या चलते, पहाड़ तो इरादों ने चढ़े हैं"

दोपहर 1:15 बजे आचार्य श्री उठे, और बिहार किया। पेंड्रा की मंदिर से आगे बढ़े और वर्षा प्रारम्भ हो गई। क्या किया जाए? लोगों से कहा- एक बड़ी प्लास्टिक को आचार्य श्री के ऊपर तानकर रखो। उनको पानी नहीं लग पाए। ऐसा ही किया। आचार्य श्री धीरे-धीरे चल रहे थे।_

_हम सभी मुनि श्री समयसागर आदि 24 महाराज लोग जो कच्चे रास्ते से जाने वाले थे, आचार्य श्री को नमोस्तु करके आगे बढ़े।_
हमने बोला- आचार्य श्री हम लोग जा रहे हैं।
*आचार्य श्री हंसते हुए बोले- "अच्छा तो हम फिर मिलेंगें"*
हमने कहा- महाराज फिर नहीं बहुत जल्दी मिलेंगे।
*आचार्यश्री जोर से हंस पड़े।*
_पीछे और महाराज लोग आ रहे थे, उनसे भी यही कहा। *"अच्छा तो फिर मिलेंगे"* लग नहीं रहा था, आचार्य श्री के पैर में दर्द है। चेहरे पर ऐसी मुस्कान बिखेर रहे थे, अगर कोई गृहस्थ होता, तो इतने दर्द में रोता।_
_हम सभी 24 महाराज मुनि श्री समय सागर जी के साथ 19 किलोमीटर चलकर पकरियाया ग्राम पशु प्रजनन केंद्र के खाली भवन में रुके। *तभी समाचार मिला, कि आचार्यश्री तो 11 किलोमीटर चल गए। सोचा जहां 2-4 किलोमीटर चलना संभव नहीं था, 11 किलोमीटर कैसे चल दिए? कितनी सहनशीलता! इतना दर्द होते हुए भी बिना रूके, बिना बैठे, 11 किलोमीटर चल गए और तरई ग्राम में रुके।* पहले सोचा 5 किलोमीटर चलेंगे। बाद में सुबह भी इतना चलकर आहार करेंगे। आचार्य श्री के साथ 13 महाराज थे। तेराई ग्राम में विश्राम हुआ। सुना रात्रि में पैर का दर्द बहुत बढ़ गया था।_

*15 जुलाई 2000 (शनिवार)*
_हम लोग प्रातः काल पकरिया से बिहार करके सुबह 9:45 बजे के करीब 18 किलोमीटर चलकर अमरकंटक पहुंच गए। वहीं आहारचर्या हुई। *आचार्यश्री का सुना की 8 किलोमीटर चलकर, क्वेची नामक ग्राम में आहार हो रहा है। आहार के पूर्व में चातुर्मासिक प्रतिक्रमण आचार्य श्री एवं साथ वाले महाराज लोगों ने किया।*_

_बिलासपुर वाले एक डॉक्टर जो पेंड्रा भी आए थे, उन्होंने सुना कि महाराज ने पैदल बिहार कर दिया। उन्होंने वहाँ कहा- असंभव। इतने दर्द में कैसे बिहार किया होगा? वह नहीं माने और प्रातः काल क्वेची आये।_
_*आचार्य श्री को देखा और रोने लगे। महाराज! आप कैसा कर रहे हैं? अगर कुछ हो गया, यह हरपीज रोग और बढ़ गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा। आपका चलना ठीक नहीं है। पर आचार्यश्री हंसते रहे और धीरे से बोले- "क्या करें? चातुर्मास की स्थापना भी तो करना है।*_

_आहारचर्या हुई। सामायिक के बाद फिर बिहार हुआ। *आज के बिहार में तो और गजब ही कर दिया। क्वेची से सीधा आमडोवा ग्राम आ गए, जो 15 किलोमीटर था। वह भी बिना कहीं बैठे, बिना रुके। 15 किलोमीटर चलकर सीधे आमडॉवा के विश्राम गृह में रुके। जबकि लोगों ने 7-8 किलोमीटर पर व्यवस्था की थी।* यहां दूसरे दिन की आहार चर्या होना थी। हम लोग अमरकंटक सर्वोदय तीर्थ बैठे-बैठे सुनकर आश्चर्य करते थे। आखिर कैसे चलते होंगे? आज चतुर्दशी थी। हम लोगों ने चातुर्मासिक प्रतिक्रमण भी किया।_

*16 जुलाई 2000 रविवार*

_*प्रातः काल 9:00 बजे समाचार मिला कि 10 किलोमीटर चलकर आचार्य श्री कबीर चबूतरा आ गए। वहां के रेस्ट हाउस में आहारचर्या हो रही है। दोपहर में यहां सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक में आचार्य श्री प्रवेश करेंगे। आज गुरु पूर्णिमा और रविवार था* अजैन लोग इस दिन बड़ी संख्या में नर्मदा कुंड में स्नान के लिए आते हैं। गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्व है।_
_*आचार्य श्री कबीर चबूतरा से 5-6 किलोमीटर चलकर दोपहर 3:40 के करीब सर्वोदय तीर्थ पहुंचे। हम सभी महाराज लोग बैंडबाजे और भव्य जुलूस के साथ आचार्य श्री को लेने गए।* आचार्यश्री आए, मंदिर में भगवान के दर्शन किए, और प्रवचन हॉल में बैठी जनता के सामने मंच पर आकर बैठ गए। आसन पर एक पैर थोड़ा आगे करके बैठे थे। इसके बाद आचार्य श्री के प्रवचन हुए। इस दौरान एक विशेष काव्यपंक्ती लोगों को सुनाई।_

*" ये पैर क्या चलते, पहाड़ तो इरादों ने चढ़ाए हैं"*
_सभी ने खूब तालियां बजाई। इसके बाद गुरु कृपा और जीवन में गुरु का क्या महत्व है, इसको लेकर करीब 20-25 मिनट का प्रवचन हुआ।_

*आचार्य श्री के प्रवचनांश*

_*प्रभु दर्शन के साथ गुरु कृपा हमारे लिए बहुत जरुरी है। आज गुरु पूर्णिमा है। इंद्रभूति के लिए आज गुरु मिले, हमारे लिए जगत गुरु की बात को बताने के लिए गणधर रूपी गुरु मिले। दीक्षा का संकल्प जो होता है वह आत्म कल्याण के लिए होता है। आज इंद्रभूति ने दीक्षा ली और कल वीर शासन जयंती के दिन प्रभु की दिव्यध्वनि खिरी थी। आज का दिन हाथ में पुरुषार्थ का दिन है। जब हम आत्म पुरुषार्थ की ओर लक्ष्य रखते हैं तो समीचीन संकल्प की ओर दृष्टि चली जाती है। वर्द्धमान स्वामी के चरणों में बैठकर वर्द्धमानचरित्री बनकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए कदम बढ़ाऐं। प्रभु के द्वारा सब कुछ काम हो सकता है, लेकिन सब उन्हीं के द्वारा हो यह नियम नहीं है। जैसे हम किसी घड़े से पानी पीना चाहते है तो घर से नहीं पीते, लोटा आदि के माध्यम से ही पीते हैं। वैसे ही वीर भगवान का ज्ञान घड़े के समान था, लेकिन गणधरों ने उनके अनअक्षरी ज्ञान को धारण किया फिर हमारे लिए दिया, जिसे पाकर हम अपने कदमों को कल्याण पथ पर बढ़ा सकें।*_

*यहां से दो-चार दिन के लिए गए थे, लेकिन 12-14 दिन इस पैर के कारण लग गए। पैर तो मना करता था पर इरादा यहां आने का था, जो आज आ गए । इसलिए तो कहा है-*

*"यह पैर क्या चलते, पहाड़ तो इरादों ने चढ़े हैं"*

_प्रवचन के बाद आचार्यश्री ऊपर चले गए। पैर की सिकाई आदि हुई।_
_*इस दौरान आचार्य श्री ने कहा- भैया हम तो अब 20 तारीख को चातुर्मास की स्थापना करेंगे और इसकी घोषणा कर दी गई।*_
_आज ही भाग्योदय तीर्थ सागर मध्य प्रदेश से ब्रह्मचारी दरबारी लाल जी एक छुलल्क जी जिनका नाम नित्यानंद था। जो करीब 75-80 वर्ष के वृद्ध थे, जो सल्लेखना हेतु आए थे। आचार्य श्री ने देखा, और उस समय तो यही कहा- ब्रहमचारी जी! यहां का मौसम अभी सल्लेखना का नहीं है। 2 दिन छुलल्क जी रहे, फिर वापस ले गए।_
_आज रात्रि में पैर में दर्द था। 9:00 बजे फिर सिकाई आदि उपचार किया।_

*प्रस्तुति- दिलीप जैन शिवपुरी, 9425488836*

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Update

प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ-ऋषभदेव भगवान् (ये प्रतिमा अतिशय क्षेत्र भुतकुली की है)

जिनेश्वर आप...कही गए नहीं बस...आज से करोडो वर्ष पहले.. आठो कर्मो को तोड़.....सिद्ध शिला पर अनंत काल के लिए विराजमान हो गए...आप इस युग की अपेक्षा से सर्व प्रथम थे हर बात में चाहे जनता को जीना सिखाना हो..उनको मोक्ष मार्ग दिखाना हो.... सबसे पहले केवलज्ञान रूपी ज्योति आपको ही आदिदेव श्री वृषभदेव स्वामी को प्राप्त हुई..क्योकि उनसे पहले तो मुनि परंपरा थी ही नहीं..उनको केवलज्ञान हुआ...फिर उनके उपदेश से जीवो ने मुनि पद को अंगीकार किया... आदिनाथ भगवान का प्रथम आहार राजा श्रेयांस के यहाँ पर हुआ था..आदिनाथ भगवान् 6 महीने के बाद तो आहार के लिए निकले..लेकिन...आहार विधि कोई नहीं जाने के कारण उनका आहार 7 महीने 8 दिन के बाद ही हुआ...कारण - उनका पूर्व कृत कर्म उदय जो उन्होंने गाय के मुख पर छींका बाँधने का उपदेश दिया था...जिसके कारण से गाय को भूखा रहना पड़ा था....तो आपने तप व् सहन शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया और साथ में कर्म कितने कठोर हो सकते है की आपको भी नहीं छोड़ा...सन्देश किया...हे ऋषभदेव आप तो अनंत गुण के धारक हो...कहा तक कहू मैं आपके गुण...बस आपके जैसा होना चाहता हूँ...लेकिन कर कुछ नहीं पाता हूँ... और निराश हो जाता हूँ लेकिन फिर आपको देख कर...कुछ ख़ुशी होती है...और मन में बात आती है...कैसे मेरे कर्म काटेंगे..मैं ये सोचु और घबराऊ....जब मैंने तुझे को पाया...घ्यान ये आया....तेरी स्तुति करने वाला...एक तेरे सामान बनेगा....एक दिन भी मेरे कर्म काटेंगे...अब मैं ये सोचु और हरषाऊ....

मुझे भी शक्ति मिले.....और आपके पद-चिन्हों पर चल पडू....और ऐसा चलू की बस चलता रहू....और आपके पास आ जाऊ..अनंत काल के लिए....आप साथ सिद्ध शिला पर..... और आपका परिवार तो और भी कमाल था...एक बेटा कामदेव बाहुबली...चक्रवर्ती को ही हरा दिया.....एक वर्ष तपस्या खड़े होकर तप...वाह! दूसरा बेटा और भी कमाल...चक्रवर्ती भरत...सिर्फ 48 मिनट में केवलज्ञान!! सारे पुत्र केवलज्ञान धारी हो मोक्ष चले गए...! आपके पोत्र और भी कमाल..मतलब भरत चक्रवर्ती के 623 पुत्र सीधा निगोद से आये और बोले ही नही..और चल दिए....मोक्ष.....आपकी पुत्री...ब्राह्मी और सुंदरी....भी कमाल आर्यिका दीक्षा लेली...आपका परिवार एक से बढ़कर एक महान व्यक्तियों के गुणों से भरा पड़ा है.....ऐसा परिवार तो इतिहास के पन्नो में देखने में नहीं आया....जय हो....

जन्म अयोध्या में प्रभु लीना, नाभिराए घर आये, मरूदेवी के उर से जन्मे, वृषभदेव कहलाये!
वृषभदेव सा राजा पाकर, धन्य हुआ ये देश, राजनीति और न्यायनीति से बदला था परिवेश!
नृत्य करण को आई अप्सरा, अंजन खूब लगाया, नीलांजना की मृत्यु देखि, मन वैराग्य जगाया!
त्याग दिया घर-बार प्रभु ने, चले शिखर कैलाश, अष्टापद तेरे चरण कमल का, अब तक वहा प्रकाश!
प्रथम पूज्य है आदि जिनेश्वर, तीर्थंकर बन आये, मोक्ष परम पद प्राप्त किया प्रभु, मोक्ष मार्ग खुलवाये!

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मेहनत की कमाई पाप में लगाने से विनाश होगा- मुनि सुधा सागर महाराज #MuniSudhaSagar

मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि हिंसा सकंल्पी, आरम्भी, उद्योगी व विरोधी होती है। जीनवाणी व जैन दर्शन के अनुसार आरम्भ व उद्योगी हिंसा गृहस्थ के लिए निषेद नही करनी चाहिए। हिंसा, पाप, ­झुठ, माया से कमाया धन को पाप में खर्च नही धर्म में करना चाहिए। सकंल्पी हिंसा का त्याग कराया जा सकता है। साधु हिंसा के त्यागी है परन्तु आरम्भी व उद्योगी हिंसा की छुट देते है लेकिन श्रावक को संकल्प करना होगा कि गलत तरिके से कमाया धन पाप कार्य में उपयोग नही करेगें।

मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में गलत व पाप कार्य करने वाले को सजा मत दो उसे एहसास कराओं कि उसके द्वारा किए गए कार्य गलत है। स्वयं की कमाई स्वयं के काम आए तो पुण्य कम तथा दूसरे के काम आए तो पुण्य ज्यादा मिलता है। मेहनत की कमाई पाप में लगाने से विनाश होता है। पाप की कमाई को पाप में लगाने सबसे बडा पाप है। साधु के मन में करूणा जाग जाए तो उसे ब्रह्मांड भी नही पलट सकता। जीवन में दान देना चाहिए लेकिन उस दान का गलत उपयोग होता है तो दान सार्थक नही है। मजदूर वर्ग नशा छोड दे तो भारत धन व बुद्धि में विश्व में नम्बर एक बन जाएगा। जीवन को सफल करना है तो पाप में पैसा खर्च मत करो। कमाने का पाप माफ हो सकता है लेकिन धन को पाप में खर्च करने की गलती माफ करने लायक नही है। शुभकार्य में चरित्र हिन को बुलाना अमंगल करना होता है। जीवन में जो मिला है उस पर अंहकार नही करना चाहिए। अपनी श्रद्धा से ही भगवान बोलते है। जीवन को सफल करना है तो पाप में पैसा खर्च मत करो।

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श्री 1008 रिषभ देवाय नमः!!
तेरी बिगड़ी देंगे बनाये कहे जा ॐ नमः जिनाये!!
ऊपर लिखी पंख्तियाँ प्रसिद्ध संगीतकार श्री रविन्द्र जैन जी के भजन की, जो बिलकुल सत्य बोलती है प्रभु के नाम का सुमिरन करने सारे दुःख, दर्द मिट जाते हैं। ऐसे परम पिता परमात्मा देवादि देव धरती के उन्नायक सबके मालिक भगवान् श्री आदिनाथ जी के चरणों में हमारा बरम बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु!!

Picture श्री बावनगजा जी!!

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