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Published: 09.08.2017
Updated: 10.08.2017

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पंच निश्रा स्थान
-आगमवेत्ता साध्वी वैभवश्री ‘आत्मा’
आप्त पुरूषो की वाणी को सुन-समझ कर उसे सूत्र रूप गुम्फित करने वाले सत्पुरूशों को प्रणाम!!
सूत्रों की रचना से महान् अर्थ संक्षिप्त में प्रगट होते हैं और उनकी विवेचना से पुनः वे युगानुकूल समझ देने में सक्षम हो पाते हैं।
इस आलेख में हम बात कर रहे हैं - स्थानांगसूत्र के पंचम स्थान में आए ‘निश्रासूत्र’ की। सूत्र पाठ इस प्रकार है-
धम्मस्स णं चरमाणस्स पंच ठाणा निस्सिया पण्णत्ता-
छ काया, गणे, राया, धम्मायरिए, गाहावई।
सूत्रार्थ कहता है कि धर्म का आचरण करने वाले के लिए पाँच स्थानों के निश्राय अर्थात् आलम्बन बतलाए गए है-
1. छःकाय- छः काय अर्थात् पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय। हम धर्माचरण करें अथवा न करें, जीवन जीने मात्र के लिए ये छः काय आलंबन रूप है, न केवल इनका आलंबन बल्कि इनका आधार न हो तो जीवन मात्र ही अशक्य है। असंभव है। इन छहों का प्रतिपल आभार है, जिनके सहयोग से हम सतत् गतिमान है। धरती मातृवत् उपकारी है, आधार देती है, सहिश्णु है। पानी बहनवत् उपकारी है, प्यास बुझाता है, जीवन देता है, हर अशुद्धि को बहा ले जाता है। ‘अग्नि’ (तेजस्काय) भाई के समान तेजस्वी है, प्राण रक्षक है, पाचन योग्य सामग्री बनाता है। वायु मित्रवत् उपकारी है, श्वास आधार है, शीत-उश्ण स्पर्श द्वारा जीवन रक्षित करता है। ‘वनस्पति’ पितृवत् उपकारी है, वह हमें प्राणवायु, औशध-भोजन, वस्त्र-पात्र, ईंधन सामान, फूल-फल, सुगंधि, छाया सब कुछ देता है। त्रसकाय में समस्त तिर्यन्च पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, इंसान, देव-नारक सभी प्राणी समाहित है, जो हमारे चारों ओर है। हमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अनंत जीव सतत् सहयोगी हैं। हम इन सबके आधार व आलंबन से अपना जीवन जीते हैं। क्यों न हम सबके उपकारों के लिए सतत् आभारमय रहें, धन्यवादी रहें, सबके प्रति कृतज्ञ होकर मंगल कामना करते रहें कि ‘आप सबका कल्याण हो। मंगल हो। सभी को इष्ट सिद्धि हो। प्राण धारण करने में सहयोगी समस्त प्राणियों के प्राणों का उध्र्वगमन हो।’
ये छः ही काय निरपेक्ष रूप से सबके सहयोगी है। कोई इनकी value करे अथवा न करे, इनको thanks दे या न दे-ये तो सबको सहयोग करते ही हैं, बस फर्क इतना ही है, जो कोई इनके प्रति thankful होता है, वो अपना मार्ग सकारात्मक व सहयोगपरक बना लेता है। आत्मज्ञानी श्री विराट गुरूजी के गहन ध्यान से ‘शट्काय आभार मंत्र’ रचना प्रगट हुई, जिसे स्वयं आप्त पुरूशों ने अनुभव की और करवाई। यह शट्काय आभार प्रार्थना ‘शुभ प्रभात’ पुस्तक में है, साथ ही संक्षिप्त शैली में रचित लघु प्रार्थना यहाँ भी प्रस्तुत की जा रही है।
पृथ्वी को धन्यवाद, पानी को धन्यवाद
अग्नि को धन्यवाद, वायु को धन्यवाद।
हरितक को धन्यवाद, त्रस प्राणी धन्यवाद
धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद।।
सबका सहयोग मिला, आनन्द का भोग मिला
दिल में उजास खिला, सुन्दर-सा आज मिला।
दानी उत्साह के, गुरूवर को धन्यवाद
धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद।।
प्यारे माता-पिता, प्यारी संतान हो
बढ़िया हमदम रहे, सभ्यों में शान हो।
प्यारा पड़ौस हो, परिजन को धन्यवाद
धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद।।
सबमें सद्भाव हो, प्रेमी स्वभाव हो
दिल में भाई-सखा के, बढ़-बढ़ के प्यार हो।
सबके कल्याण के भावों को धन्यवाद
धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद।।
2. गण- गण अर्थात् समूह group। धर्माचरण करने वाले को गण की निश्रा होती है। सूत्रकार ऐसा कहते हुए गण अर्थात् संघ की महिमा प्रगट कर रहे हैं। वे जानते हैं कि साधक कई प्रकार के होते हैं। जो शैक्ष है, प्रारम्भिक साधक है, वह बिना सहयोगों के गति नहीं कर पाएगा। अतः उसके लिए गण प्रबल सहायक है। गण, संघ, परिवार, गच्छ या समुदाय-ये सब एकार्थक है। गण का कार्य परस्पर सहयोग भाव से जीना, एक-दूसरे के रिक्त स्थानों की पूर्ति करना, दोश परिहार साधना में प्रेरक बनना व गुणग्राम द्वारा योग्यताओं को निखारना है। हरेक साधक में कच्चावट तो है ही। किसी में क्रोध अधिक है तो किसी में लोभ, किसी में आलस बहुल है तो किसी में अधैर्य-ऐसे में सबके दोशों को, कमज़ोरियों को और सबमें रहे सद्गुणों को, योग्यताओं को स्वीकार भाव से, सहज भाव से लेकर चलना गण या संघ का कार्य है। गण किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा, तुलना या पक्षपात न करते हुए हर साधक को आत्म-विकास के अवसर देता है, अतः उसका हम पर उपकार है, हम उसके आभारी रहें। साथ ही अपना सकारात्मक सहयोग देने से भी कभी न चूकें।
3. राया- राया अर्थात् राजा। आज के युग में सरकार व शासन व्यवस्था, प्रत्येक साधक को प्रत्यक्ष किंवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी तो है ही। सरकारी तंत्र सुव्यवस्थित चलता है तो ग्राम, नगर, गली-मौहल्ला और शहरवासी सभी अपने-अपने विकास के भरपूर अवसर प्राप्त करते हैं अन्यथा युद्ध आदि के दौर में सभी लोग पीड़ित व प्रभावित हो जाते हैं। इस प्रकार हम महसूस करें कि प्रत्येक तंत्र हमारे जीवनचर्या के लिए आलंबन रूप है। सही सड़कों का निर्माण पदयात्रा कर रहे साधक को राज्यव्यवस्था की ही देन है। ऐसे अनगिनत सहयोगों के लिए ‘राजा’ के प्रति भी साधक को आभारी होना कल्पनीय है। राजा के प्रति साधु का दुआ भरा आशीर्वाद साधु समाज को राज्य का हितैशी व सच्चा मार्गदर्शक बनाता है।
4. धम्मायरिए- धम्मायरिए अर्थात् धर्माचार्य, जो कि गण का व्यवस्थापक होता है, संघ का अधिपति होता है, आचार व्यवस्था का प्रतिपादक होता है। उसकी निश्रा में ही एक साधक आत्म साधना करता हुआ आध्यात्मिक उत्कर्श को प्राप्त कर पाता है। धर्माचार्य की भूमिका एक परिवार में पिता की भूमिका के तुल्य होती है। जिस प्रकार पिता अपनी सभी संतान का संरक्षक होता है, आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, बिना भेदभाव किए सबका पालन-पोशण करता है, सबको योग्य बना कर उनको अपनी योग्यताओं के संपादन हेतु उचित कार्यक्षेत्र में नियोजित करता है, ठीक इसी तरह संघाचार्य प्रत्येक साधु-साध्वी के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास हेतु सतत् उद्यमरत रहता है, व्यवस्थाएँ जुटाता है व उनको उचित मार्गदर्शन देकर गतिमान करता है। ऐसे धर्माचार्य की आज्ञा में रहना संघस्थ साधकों का अपना विनय व आदर भाव है, जो उनकी आत्मिक उन्नति में सहायक है। एक धर्माचार्य, एक नाविक की भाँति है, ड्राइवर की भाँति है, जो अपनी नाव में, अपनी गाड़ी में बैठे समस्त यात्रियों को भली-भाँति यात्रा तय करवाता है, उन सबको अपनी-अपनी मंज़िल तक पहुँचाने में सहायक बनता है। अगर गाड़ी का चालक दुर्घटना कर बैठे तो सबकी जान जाएगी, इसीलिए धर्माचार्य की ज़िम्मेदारी बहुत अधिक है। वह सुरक्षित यात्रा कराने की ज़िम्मेदारी लेता है। वह सबको अपनी जोखिम खुद संभालने को कहता है, सबको सजग बनाता है और खुद उन सबकी ज़िम्मेदारी चुपचाप वहन कर लेता है। अतः धर्माचार्य की भूमिका प्रत्येक धर्माचारी को बहुत प्रभावित करती है। प्रत्येक साधक के लिए धर्माचार्य एक सुरक्षा का परकोटा है, जिसका आलम्बन लेकर वह अपना विकास करता है।
5. गाहावई-गाथापति अर्थात् गृहस्थ। साधु या साधक, जो अध्यात्म पथ का पथिक है, उसे दैहिक यात्रा के लिए गृहस्थ का सहयोग तो सतत् लेना ही होता है। आहार, विहार आदि समस्त चर्याएँ गृहस्थों के सहयोग से ही संभव हो पाती है। ऐसे में गृहस्थ के आलंबन को नकारा नहीं जा सकता। वह अपनी कमाई का कुछ अंश साधु व समाज की सेवा में लगाता है, साधु को उनका सहयोग मिलता है, अतः साधु को गाथापति का भी आलंबन है, यह बात ध्यान में रखते हुए गृहस्थ का भी आभारी होना। गृहस्थ के लिए, उसके निर्दोश सुख व आत्मिक कल्याण के लिए दुआ करना, आशीश देना। उसका तिरस्कार, अपमान या उपेक्षा न करना। साधक अपने मोक्षपथ में किसी भी तरह से सहायक प्रत्येक निमित्त का महत्व जाने, प्रत्येक निमित्त का आभारी बने। प्रत्येक आलंबन व निश्रा स्थान को स्वच्छ, स्वस्थ व संगीतपूर्ण बने रहने में सहयोगी बने।
आप धर्माचारी हो या नहीं, यदि अपने लिए सहयोगी प्रत्येक निमित्त के प्रति कृतज्ञ हैं तो अवश्य ही आपका आचरण धर्ममय ही कहा जाएगा। इत्यलम्!!
प्रेषकः- साधिका प्राग्भा विराट
जय गुरुदेव साहित्य

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हलचल/सेमीनार
विषय-केन्द्र /राज्य सरकार की ओर से Minority Scholarship ऑनलाइन आवेदन कैसे भरे,(प्रशिक्षण)
2 प्रतिनिधी को ट्रेनिंग दि जायेगी
दिन-समय -स्थल-दिनांक मंगलवार,15 अगस्त, सुबह 10 से 4 बजे तक
स्थान: BJS काॅलेज, बकोरी फाटा, नगर-पुना रोड, वाघोली-पुना
आयोजक-भारतीय जैन संघटना,महाराष्ट्र
संर्पक नोट-नाम रजिस्टेशन (अनिवार्य)
अमर गांधी-9822362837
महेंद्र मंडलेचा,चन्द्रपुर- 09822366601
[email protected]
बालचंद छाजेड,मालेगाव- 9422271099
सौ सिमा शिदे,पुणे- 9921300900

Update

सिद्ध भगवान की स्फटिक प्रतिमा गिनीज रिकार्ड में दर्ज
11 किवंटल की स्फटिक शिला,18 माह तराशी गई  तब बनी सिद्ध भगवान की प्रतिमा, दर्शन के लिए लगा है तांता,  Jain Star News Network | Augu...

सूरत में मासक्षमण
Jain Star News Network | August 09,2017
सूरत। सूरत शहर में पाल रोड स्थित कुशल वाटिका में चातुर्मासार्थ बिराजमान पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी पूजनीया गणिनी प्रवरा श्री सूर्यप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री विपुलप्रभाश्रीजी म. के मासक्षमण की महान् तपस्या सानन्द संपन्न हुई।
मासक्षमण तपस्या के उपलक्ष्य में 3 अगस्त को भव्य वरघोडे का आयोजन और 5 अगस्त को पारणा संपन्न हुआ।

उज्जैन: अवंती पाश्र्वनाथ तीर्थ प्रतिष्ठा हेतु समिति की स्थापना
Jain Star News Network | August 09,2017
उज्जैन: उज्जैन स्थित अतिप्राचीन श्री अवंती पाश्र्वनाथ तीर्थ का शास्त्र शुद्ध जीर्णोद्धार पिछले 8 वर्षों से पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा व उनकी निश्रा में अंतिम चरण में चल रहा है। प्रतिष्ठा के लक्ष्य से ही पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. पूजनीया बहिन म. डाॅ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. आदि ठाणा का चातुर्मास इस वर्ष उज्जैन नगर में हो रहा है।
पूजनीया बहिन म. डाॅ श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. की पावन निश्रा में श्री अवंती पाश्र्वनाथ जैन श्वे. तीर्थ मूर्तिपूजक मारवाडी समाज ट्रस्ट के तत्वावधान में उज्जैन के समस्त ट्रस्टों के पदाधिकारियों की विशाल बैठक हुई। जिसमें बडी संख्या में ट्रस्टी गण पधारे।
इस अवसर पर पूजनीया बहिन म. ने फरमाया- अवंती तीर्थ सकल श्री संघ का है। यह प्रतिष्ठा सकल श्री संघ की है। प्रतिष्ठा से सभी को जुडना है।
इस अवसर पर सकल श्रीसंघ की सहमति से पूजनीया बहिन म. ने मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री श्री पारसजी जैन को अवंती पाश्र्वनाथ तीर्थ प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के चेयरमेन एवं संघवी कुशल गुलेच्छा को संयोजक के रूप में घोषणा की।
इस घोषणा से सकल श्री संघ में हर्ष-हर्ष छा गया। पर्युषण महापर्व के पश्चात् सकल श्रीसंघ के साथ बीकानेर पूज्य गच्छाधिपति आचार्यश्री की सेवा में जाकर प्रतिष्ठा मुहर्त प्राप्त करेंगे।

बीकानेर: मासक्षमण संपन्न
Jain Star News Network | August 09,2017
बीकानेर नगर में पूज्य गुरुदेव प्रज्ञापुरूष आचार्य भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ठाणा 8 एवं पूजनीया साध्वी श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. ठाणा 6 की पावन निश्रा में पूजनीया पाश्र्वमणि तीर्थ प्रेरिका गणिनी प्रवरा श्री सुलोचनाश्रीजी म.सा. एवं पूजनीया वर्धमान तपाराधिका श्री सुलक्षणाश्रीजी म.सा. की शिष्या पूजनीया साध्वी श्री प्रियमुद्रांजनाश्रीजी म.सा. के मासक्षमण तपस्या के उपलक्ष्य में ता. 29 जुलाई 2017 शनिवार से श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ, बीकानेर के तत्वावधान में पंचाह्निका महोत्सव का आयोजन किया गया।
प्रथम दिन पाश्र्वनाथ पंचकल्याणक पूजा श्री राजेन्द्रकुमारजी रिषभकुमारजी लूणिया परिवार की ओर से पढाई गई।
दूसरे दिन पंच परमेष्ठी पूजा का लाभ श्री पन्नालालजी अजयकुमारजी अर्पित हर्षित खजांची परिवार ने लिया।
तीसरे दिन श्री गौतमस्वामी पूजा का लाभ श्री चांदरतनजी अशोककुमारजी अरूण अनिल पारख परिवार ने लिया।
चौथे दिन 1 अगस्त को भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
शोभायात्रा के पश्चात् तपस्वी अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। पू. तपस्वीजी के मासक्षमण के दिन बहुत श्रावक श्राविकाओं ने उपवास तप किया।
वरघोडे व अभिनंदन समारोह-
वरघोडे व अभिनंदन समारोह में तपागच्छ के पूज्य पंन्यास प्रवर श्री पुंडरीकरत्नविजयजी म. आदि ठाणा, पाश्र्वचन्द्र गच्छ के पूज्य मुनि श्री पुण्यरत्नचंद्रजी म., साधु साध्वी मंडल के साथ पधारे।
अभिनंदन समारोह का कुशल संचालन पूज्य मुनिराज श्री मनितप्रभसागरजी म. ने किया। इस अवसर पर पूज्य आचार्यश्री, पंन्यास प्रवर, पूज्य मुनिश्री पुण्यरत्नचंद्रजी म., पू. साध्वी श्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. आदि के प्रवचन हुए। पूज्य प्रवरों ने तपस्वी महाराज की भूरि भूरि अनुमोदना की। समारोह एक बजे तक चला। हजारों श्रद्धालु पूरे समारोह में उपस्थित रहे। शोभायात्रा में इतनी भीड पहली बार देखी गई।
बाल मुनि श्री मलयप्रभसागरजी म. ने अपनी माताजी महाराज के मासक्षमण की अनुमोदना करते हुए उनके उपकारों का वर्णन किया। उन्होंने भी लघु वय होने पर भी तेला तप करके मासक्षमण की अनुमोदना की।
पू. गणिनी प्रवरा श्री सुलोचनाश्रीजी म. के संदेश का वांचन किया गया।
पू. साध्वी श्री प्रियश्रेष्ठांजनाश्रीजी म. प्रियसूत्रांजनाश्रीजी म. ने भजन द्वारा अनुमोदना की।
इस अवसर पर श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ बीकानेर के महामंत्री श्री शांतिलालजी सुराणा, गौहाटी के संदीप खजांची, चेन्नई के महिपालजी कानूंगा आदि ने अपने वक्तव्यों द्वारा तपस्या की अनुमोदना की।
श्री मगनजी कोचर, श्री सुनीलजी पारख, श्री नमन, जिनेश, प्रियल, सौ. आशाजी एवं आरतीजी एवं विचक्षण महिला मंडल आदि द्वारा गीतिकाऐं प्रस्तुत की गई।
पू. तपस्वीजी महाराज के गुरु पूजन का लाभ श्री मोतीचंदजी नरेन्द्रकुमारजी राजेशजी खजांची परिवार ने तथा रत्न प्रतिमा अर्पण करने का लाभ श्री मूलचंदजी महावीरचंदजी खजांची परिवार द्वारा लिया गया। पूज्य आचार्य प्रवर ने भी रत्नमयी प्रतिमा तपस्वीजी म. को प्रदान की।
स्वामिवात्सल्य का लाभ श्री पानमलजी धनराजजी सरलादेवी सुरेन्द्र महेन्द्र नाहटा परिवार ने लिया।
दोपहर में पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. के मार्गदर्शन में श्री शांतिस्नात्र महापूजन आयोजित हुआ। जिसका लाभ तपस्वी महाराज के सांसारिक परिवार श्री बस्तीचंदजी महिपालजी नमन जिनेश कानूंगा परिवार फलोदी निवासी वर्तमान चेन्नई वालों ने लिया। रात्रि को संगीत सम्राट् श्री मगनजी कोचर एण्ड मंडली द्वारा भक्ति भावना का भव्य आयोजन किया गया।
ता. 2 अगस्त को तपस्वीजी महाराज का पारणा संपन्न हुआ। दादा गुरुदेव की पूजा पढाई गई जिसका लाभ श्री सुन्दरलालजी राजेन्द्रकुमारजी दस्साणी परिवार ने लिया। पूजा, वरघोडा आदि की व्यवस्थाओं में अ.भा. खरतरगच्छ युवा परिषद् बीकानेर की अनुमोदनीय सहभागिता रही।

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मुंबई:पेंटिंग के जरिए 2.5 लाख नमोकार मंत्रों" का दर्शन
*कमल जैन निर्मित आचार्य महाप्रज्ञाजी की पेंटिंग दर्शन 2 से 14 अक्टूबर
Jain Star News Network | August 09,2017
मुंबई से सटे भायंदर में रहने वाले कमल जैन ने आचार्य महाप्रज्ञाजी की एक ऐसी पेंटिंग निर्मित की, जो "2.5 लाख नमोकार मंत्रों" से, शब्दों के अप्रतिम चित्रों से सुसज्जित है,जिसे 4 फीट की दूरी से दर्शन करने पर, यह पेंटिंग पूर्णत जीवंत लगने लगेगी। सबको लगेगा कि आचार्य महाप्रज्ञा जी, अपनी जीवंत, दिव्य दृष्टि से संपूर्ण विश्व को अहिंसा का अत्यंत शुभ मंगलकारी, सर्व हितकारी,कल्याणकारी संदेश देने का मार्गदर्शन कर रहे हैं।उनके निर्वाण के उपरांत भी, उनकी सुगंध से सुवासित हैं,उनकी दिव्य ज्योति, यत्र-तत्र-सर्वत्र व्याप्त है।उनकी आल्हादकारी उपस्थिति का आभास आज भी भक्तों को बड़ी शिद्दत से महसूस होता है.. उनका अक्षुण्ण, दिव्य प्रभाव आज भी बरकरार है।
मुंबई के द ताज पैलेस होटल में दिनांक 2 से 14 अक्टूबर 2017 को सुबह 11 बजे से रात को 8 बजे तक चित्रकार और पत्रकार कमल जैन ने एक्जिबिशन पेंटिंग की प्रदर्शनी का ओयजन किया है।
कमल जैन की इस बेहतरीन पेंटिंग के दिव्य स्वरुप,अलौकिक, अद्भुत, अपूर्व, निराली, संपूर्ण विश्व में अपने ढंग की इकलौती, अनोखी कला को दर्शाया गया है।इच्छुक इस पेंटिंग प्रदर्शनी मे सुबह 11 बजे से रात को 8 बजे तक भाग ले सकते है ।

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