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👉 मंडी आदमपुर - मास खमण तप अभिनन्दन
👉 बालोतरा - बाड़मेर जिला स्तरीय अणुव्रत नैतिक गीत गायन प्रतियोगिता
👉 मोमासर: अणुव्रत समिति के तत्वावधान में "तुलसी विद्या विहार" विद्यालय में "रक्षाबंधन" का कार्यक्रम आयोजित
👉 सिलीगुड़ी: तेरापंथ महिला मंडल ने 'मेयर' श्रीमान अशोक जी भट्टाचार्य को राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्योंहार मनाया
👉 सरदारशहर - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह
👉 चुरू - स्वच्छ भारत- स्वस्थ भारत अभियान
👉 सिंधनुर - "जीवन रक्षा संघ सुरक्षा" कार्यक्रम
👉 अहमदाबाद - राखी का त्योहार वृद्धाश्रम में आयोजित
👉 श्रीडूंगरगढ़ - तेम.म. का शपथ ग्रहण समारोह
👉 नोहर - प्रेक्षाध्यान शिविर का आयोजन
👉 कोयम्बत्तूर - स्वस्थ तन स्वस्थ मन का दर्पण आभामण्डल कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 120* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्षमाधर आचार्य खपुट*
गतांक से आगे...
आचार्य खपुट जैन संघ को आश्वस्त करने हेतु उपद्रव शांत हो जाने के बाद भी कुछ दिन तक वहीं रहे। इधर भृगुपुर में एक विचित्र घटना घटी। मुनिद्वय भृगुपुर से आचार्य खपुट के पास पहुंचे। उन्होंने निवेदन किया "आर्यदेव! आपके द्वारा निषेध करने पर भी आपकी कपर्दिका को भुवन शिष्य ने खोला। उससे उसे आकृष्टि विद्या प्राप्त हो गई है। वह इस विद्या का दुरुपयोग कर रहा है।
*"तत्प्रभावाद् वराहारमानीय स्वदतेतराम्।"*
प्रतिदिन गृहस्थों के घर से आकृष्टि विद्या के द्वारा सरस आहार को लाकर उसने उसका उपभोग करना प्रारंभ कर दिया। रस-लोलुप भुवन को स्थविरों ने कई बार रोका। वह उसे सहन नहीं कर सका। स्थिति विकट हो गई। जैन संघ से अपना संबंध विच्छेद कर विद्या के गर्व से गुर्राता हुआ भुवन बौद्धों के साथ जा मिला। वहां इसी विद्या के आधार पर आकाश मार्ग से पात्रों को बौद्ध उपासकों के घर भेजता है और भोजन से परिपूर्ण होने के बाद उन्हें वापस खींच लेता है। इस चामत्कारिक विद्या के प्रभाव से अनेक जैन बौद्ध होने लगे। सारी स्थिति आपके ध्यान में ला दी है। *"यदुचितं तत्कुरुध्वम्"* "अब जैसा उचित हो वैसा करें।" आचार्य खपुट मुनियों द्वारा समग्र घटना को सुनकर वहां से चले और भृगुपुर पहुंचे। प्रच्छन्न रूप से स्थित होकर आर्य खपुट ने शिष्य भुवन के विद्या के द्वारा आकाश मार्ग से समागत भोजनपूरित पात्रों को शिला प्रहार से खंड-खंड कर दिया। भग्न पात्रों से मोदक आदि नाना प्रकार का स्वादिष्ट भोजन लोगों के मस्तक पर गिरने लगा। शिष्य भुवन ने समझ लिया, उसके प्रभाव को प्रतिहत करने वाले आचार्य खपुट आ गए हैं। वह नाना प्रकार के कल्पित भय से घबराकर वहां से भाग गया। आचार्य खपुट का जय-जयकार होने लगा।
पाटलीपुत्र में जैन संघ के सामने भयंकर राजकीय संकट उपस्थित हुआ। वहां के राजा का जैन श्रमणों को आदेश मिला वे ब्राह्मण वर्ग को नमन करें अन्यथा उनका शिरच्छेद होगा। राजा की इस घोषणा से जैन संघ में चिंता हुई। यह जीवन संकट का प्रश्न नहीं, धर्मसंकट का प्रश्न था।
*"देहत्यागान्न नो दुःख शासनस्याप्रभावना।"*
देहत्याग से उन्हें दुख नहीं था, पर शासन की अप्रभावना पीड़ित कर रही थी।
अतिशय विद्या संपन्न आचार्य खपुट और उनका शिष्य मंडल ही इस संकट से जैन संघ को बचा सकता है।
*आचार्य खपुट ने इस संकट से जैन संघ को कैसे बचाया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 120📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
*29. उत्थान कर्म पौरुष प्रधान...*
गतांक से आगे...
महावीर ने सद्दालपुत्र को प्रतिबोध देते हुए कहा— सद्दालपुत्र! तुम कहते हो कि पात्र बनाने वाला कोई नहीं है। सब भाव नियत हैं। तो इन्हें फोड़ने वाला कौन है? अग्निमित्रा के साथ बलात्कार करने वाला कौन है? और उस पर आक्रोश करने वाले या मारने वाले तुम कौन हो? क्योंकि तुम्हारे सिद्धांत के अनुसार जो होना है, वही होता है।'
महावीर सर्वज्ञ थे, सर्वदर्शी थे। वे जानते थे कि सद्दालपुत्र की आस्था नियतिवाद में है। उन्होंने उसको यौक्तिक ढंग से समझाया। काल, स्वभाव नियति, भाग्य और पुरुषार्थ– इन पांच समवायों का स्वरूप बताया। तत्त्व समझने के बाद आजीवक मत की नियतिवादी व्यवस्था से सद्दालपुत्र की आस्था हिल गई। उत्थान, कर्म, बंध, वीर्य, पुरस्कार और पराक्रम को प्रधान मानने वाले जैन धर्म के प्रति उसकी आस्था जागृत हुई। उसने महावीर के पास सम्यक्त्व दीक्षा स्वीकार की और वह व्रतधारी श्रावक बन गया। अपनी पत्नी अग्निमित्रा को भी उसने महावीर के दर्शन करने की प्रेरणा दी। अग्निमित्रा ने दर्शन किए। महावीर से प्रतिबोध पाकर वह भी श्राविका बन गई। महावीर वहां से विहार कर चले गए।
इधर गोशालक को सद्दालपुत्र के आस्था परिवर्तन का संवाद मिला। वह बेचैन हो गया। उसने सोचा— मेरे संघ का सारा दारोमदार सद्दालपुत्र पर है। वह विपरीत हो गया तो संघ में खलबली मच जाएगी। उसे समझाना चाहिए। अपनी सोच को क्रियान्वित करने के लिए गोशालक पोलासपुर गया, कुंभकारशाला के निकट गया, किंतु सद्दालपुत्र ने उसके सामने तक नहीं देखा। गोशालक को ऐसी आशा नहीं थी। उसे अब यह चिंता सताने लगी कि इस घटना की जानकारी लोगों को मिलेगी तो वे क्या समझेंगे। यह उसे एक बार अपनी कुंभकारशाला में ठहरा ले तो उसकी इज्जत बच सकती है।
सद्दालपुत्र को अनुकूल बनाने के लिए गोशालक अपने महावीर का गुणानुवाद करते हुए कहा— 'सद्दालपुत्र! तुम्हारे यहां महामहान आए थे, महागोप आए थे, महासार्थवाह आए थे, महानिर्यामक आए थे और महान् धर्मकथी आए थे।' इस प्रकार गोशालक द्वारा किए गए गुणगान के बाद सद्दालपुत्र बोला— 'गोशालकजी! मेरे मन में आपके प्रति न कोई श्रद्धा है और न आपके विचारों से मेरी सहमति है। आपने मेरे धर्माचार्य के गुणगान किए हैं, इस कारण मैं आपको ठहरने के लिए स्थान देता हूं।
गोशालक कुंभकारशाला में ठहरा। उसने सद्दालपुत्र को समझाने का बहुत प्रयत्न किया। किंतु उस पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह पक्का पुरुषार्थवादी बन गया। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा— 'नियतिवाद का सिद्धांत सर्वथा ऐकांतिक है। इसमें मेरी किंचित् भी आस्था नहीं है। आप मेरी आशा छोड़ दें।'
*समय नियोजन का एक सूत्र है अप्रमाद और दूसरा सूत्र है नियमितता...* इसे रोचक उदाहरण द्वारा समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 #चेन्नई: मासखमण "#तप #अभिनंदन" समारोह का आयोजन
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07 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- सावन शुक्ला #पूर्णिमा*
तन को तो कराते, कभी कराएं मन को भी स्नान ।
करें स्वीकार निज भूलों को, दूजों को दें हृदय से क्षमादान ।।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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