03.08.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 03.08.2017
Updated: 04.08.2017

Update

अमेरिका जैसे देश के Detroit शहर में मंदिर के दरवाजे पर लगा पोस्टर हमें सोचने को मजबूर कर रहा है कि हम आधुनिकता की दौड़ में किस ओर बढ़ रहे हैं। मंदिर जी में आजकल अशोभनीय, अमर्यादित वस्त्र पहन आने का चलन बढ़ रहा है। मंदिरजी में श्रीजी के दर्शन हेतु श्रावक (महिला, पुरुष, बच्चे) गरिमा पूर्वक शालीन वस्त्र पहनकर आयें। #USJains #AmericaJainMandir

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News in Hindi

#Nainagiri #AcharyaVidyasagar सागर से विहार करके आचार्य महाराज संघ-सहित नैनागिरी आ गए। वर्षाकाल निकट था, पर अभी बारिश आई नहीं थी। पानी के अभाव में गांव के लोग दु:खी थे। एक दिन सुबह-सुबह जैसे ही आचार्य महाराज शौच-क्रिया के लिए मन्दिर से बाहर आए तो हमने देखा कि गांव के सरपंच ने आकर अत्यन्त श्रद्धा के साथ उनके चरणों में अपना माथा रख दिया और विनत भाव से बुन्देलखण्डी भाषा में कहा कि ’’हजूर’ आप खों चार मईना इतई रेने हैं और पानू ई साल अब लों नई बरसों, सो किरपा करो, पानू जरूर चानें है ’’
आचार्य महाराज ने मुस्कराकर उसे आशीष दिया, आगे बढ़ गए। बात आई-गई हो गई, लेकिन उसी दिन शाम होते-होते आकाश में बादल छाने लगे। दूसरे दिन सुबह से बारिश होने लगी। पहली बारिश थी। तीन दिन लगातार पानी बरसता रहा । सब भीग गया। जल मन्दिर वाला तालाबढ भी खूब भर गया।
चौथे दिन सरपंच ने फिर आकर आचार्य महाराज के चरणों में माथा टेक दिया और गदगद कंठ से बोला कि ’’हजूर। इतनो नोई कई तो, भोत हो गो, खूब किरपा करी।"

आचार्य महाराज ने सहज भाव से उसे आशीष दिया और अपने आत्म-चिंतन में लीन हो गए। मैं सोचता रहा कि, इसे मात्र संयोग मानूं या आचार्य महाराज की अनुकम्पा का फल मानूं । जो भी हुआ, वह मन को प्रभावित करता है।
-नैनागिरि 1982 --स्वतंत्र जैन आमगांव

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The teaching of Tirthankara has divided into 4 sections to easy understand, here #MuniKshamasagar G explained जैन धर्म के चारों अनुयोगों को किस प्रकार एक उदाहरण के माध्यम से मुनि श्री क्षमा सागर जी ने बताया है 👌

एक माँ अपने छोटे से बच्चे को लेकर बाजार गई, बच्चा रास्ते में गिरा और ज़ोर से रोने लगा | वह माँ उसको चुप करने के लिये क्या उपाय करती है =

*पहला उपाय* - माँ कहती है की जब दीदी गिरी थी वो तो नहीं रोई, फिर तू क्यों रोता है, चुप हो जाओ - अतार्थ आचार्य भगवंत हमसे कहते हैं कि पूर्व में जो महापुरुष हुए हैं उनको भी उनके कर्म के उदय मैं कैसी कैसी विपत्तियां आईं वह तो अपने धर्म से विचलित नहीं हुए | इसलिए आचार्य भगवंत हमे समझाते हैं तुम क्यों विचलित होते हो, उनकी तरह तुम भी धर्म में लगो और पाप से बचो | *ये प्रथमानुयोग की पद्धत्ति है*|

*दूसरा उपाय* - माँ कहती है कि सुबह दीदी से झगड़ा किया था इसलिए तुम्हे लगी! अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते हैं कि जैसे पूर्व में परिणाम किये थे अब उसका फल भी भोगो | ये *करणानियोग की पद्धत्ति है* आचार्य भगवंत हमें बताते हैं कि अपने परिणाम सम्हालो इन्ही के सम्हालने से प्राणी अपना कल्याण कर सकता है |

*तीसरा उपाय* - माँ कहती है देख कर तो चलते नहीं हो अब गिर गये तो रोते हो - अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते है कि बाह्य आचरण को सम्हालो अतार्थ व्रत, नियम, संयम, तप आदि एवं अंतरंग में वीतराग भाव धारण करोगे तो तुम्हारा कल्याण होगा ये *चरणानियोग की पद्धत्ति है*

*चौथा उपाय* - माँ बच्चे को गोद में लेती है और कहती है वो तो घोड़ा गिरा था तू तो मेरा राजा बेटा है तुझे थोड़े ही चोट लगती है अतार्थ आचार्य भगवंत हमें समझाते हैं कि कहाँ तुम इस देह में आपा मान रहे हो वो तो पर्याय हैं | इन पर्याय में हर्ष विषाद नहीं करना चाहिए मुझे तो अपना स्व-भाव् देखना चाहिए! *ये द्रव्यानुयोग की पद्धत्ति है*|

इस तरह हम किसी भी अनुयोग के माध्यम से अपने दुःख को दूर करने का एवं अपने जीवन को अच्छा बना सकते हैं! मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज के प्रवचनों से

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