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प्रवचन सुनने जाय तो पर्स और मोबाइल लेकर नही जाए।
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सांपों को भी दूध पिलाना भारतीय संस्कृति
लक्ष्मी आने पर मानव के जीवन की शांति समाप्त हो जाती
धर्मसभा में सलाहकार दिनेश मुनि ने कहा
पूना - 28 जुलाई 2017।
दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो कि गलत है। मानव जीवन में मानव को दूसरों का हमेषा हाथ मिलाकर चलना चाहिए। हाथ मिलाकर चलने में ही मानव जीवन सफल है एवं मानव प्रगति कर सकता है। ‘हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो’ ये तीन बातें मानव को हमेषा अपने जीवन में याद रखनी चाहिए। उपरोक्त विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने गुरुवार दिनांक 28 जुलाई 2017 पूना शहर के कात्रज स्थित ‘आनंद दरबार’ में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
नागपंचमी पर प्रवचन करते हुए बताया कि नाग पूजा का इतिहास छः हजार वर्ष प्राचीन है। जैन धर्म में नाग का महत्व व किस किस महापुरुषों की रक्षा सांपों द्वारा की गई सव्याख्या बताते हुए कहा कि सांपों को भी दूध पिलाना भारतीय संस्कृति है। जैन शास्त्र भगवती सूत्र में सांपों का जीवन वृत सुनाते हुए बताया कि प्रत्येक नाग विषधर नहीं होता है। भगवान् पार्ष्वनाथ के जीवन वृत का उल्लेख करते हुए बताया कि पूर्वभव में उन्होंने एक लकड़ में से संाप का जोडा अग्नि में से सुरक्षित निकाला उसके फलस्वरुप भगवान् पार्ष्वनाथ के साधना समय में धरणेन्द्र और माता पद्मावती ने उनकी रक्षा की।
नागपंचमी का सद्भावना संदेश -
यह उत्सव प्रकृति-प्रेम को उजागर करता है । हमारी भारतीय संस्कृति हिंसक प्राणियों में भी अपना आत्मदेव निहारकर सद् भाव रखने की प्रेरणा देती है । नागपंचमी का यह उत्सव नागों की पूजा तथा स्तुति द्वारा नागों के प्रति नफरत व भय को आत्मिक प्रेम व निर्भयता में परिणत करने का संदेश देता है।
सलाहकार दिनेश मुनि ने आगे कहा कि शांति एवं लक्ष्मी एक दूसरे के शत्रु हैं। लक्ष्मी आने पर मानव के जीवन पर शांति समाप्त हो जाती है। सारा दिन उसका ध्यान तिजौरी पर रखे हुए पैसे पर रहता है तथा उसी के बारे में सोचने लगता है। लक्ष्मी कम होने से जीवन में शांति रहती है तथा मानव तनाव रहित जीवन जीता है। मानव जीवन में संतुष्ट नहीं होता। मानव की आवष्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। हमें ऋण लेते समय बहुत आनन्द मिलता है, लेकिन उसे चुकाते समय पसीना आ जाता है। वर्तमान में दूध का स्वरुप ही खत्म हो गया है। पैसे में भी सही दूध नहीं मिलता। वहीं किसी जमाने में बिना पैसे का मिलने वाला पानी आज बोतल में पैसों में बिक रहा है। दूध और पानी का महत्व ही खत्म हो गया है।
डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने कहा कि इस मतलबी दुनिया को ध्यान से नहीं, धन से मतलब है। भजन से नहीं, भोजन से व सत्संग से नहीं, राग-रंग से मतलब है। सभी पूछते हैं कि घर, परिवार व व्यापार कितना है। कोई नहीं पूछता कि भगवान से कितना प्यार है। आगे कहा कि चिंता एक तरह से आदमी की ताकत को निचोड़ती है जबकि चिंतन, शक्ति के सही दिशा में उपयोग का रास्ता बता सकता है इसलिए जिंदगी में चिंता छोड़ चिंतन करना शुरू करें।
श्री संघ के सदस्य पंकज बाफना ने जानकारी देते हुए बताया कि आज तृतीय शुक्रवार को भगवान् पार्ष्वनाथ - माँ पद्मावती के एकासन का आयोजन संपन्न हुआ है। जिसमें श्राविकाऐं बढचढ़ कर हिस्सा ले रही हैं, श्री जितेन्द्र जी निखिल जी बोहरा (पुष्कर मार्बल) व श्रीमती दिव्या पंकज बाफना परिवार द्वारा प्रभावना वितरित की गई। इसी क्रम में कल शनिवार 29 जुलाई प्रातः 9 बजे से सजोड़े भक्तामर स्त्रोत्र की 45 वीं गाथा का सामूहिक महाजाप का आयोजन भी रखा गया है। धर्मसभा में आज श्री प्रकाष बोरा ने तीन उपवास के पच्क्खाण ग्रहण किये।
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