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"संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष"
पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानो अपने गुरु की ही धारा में बहता था... साये की तरह आचार्य श्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक आत्मान्वेषी में संकलित किया...
प्रस्तुत है संस्मरण "आत्मीयता"
शीतकाल में सारा संघ अतिशय क्षेत्र बीना-बारहा(देवरी) में साधनारत रहा। आचार्य महाराज के निर्देशानुसार सभी ने खुली दालान में रहकर मूलाचार व समयसार का एक साथ चिन्तन-मनन व अभ्यास किया। आत्म साधना खूब हुई। जनवरी के अंतिम सप्ताह में कोनी जी अतिशय क्षेत्र पर आना हुआ।
कोनी जी पहॅुंचकर दो-तीन दिन ही हुए कि मुझे व्याधि ने घेर लिया। पीड़ा असह्य थी, पर मेरी हर वेदना के एकमात्र सहारे आचार्य महाराज थे, सो वेदना के क्षणों मे उनकी और देखकर अपने को सॅंभाल लेता था। एक दिन दोपहर का समय था, वे मूलाचार का स्वाध्याय कराने जाने वाले थे । मेरी पीड़ा देखकर थोड़ा ठहर गए और बोले - तुमने समयासार पढ़ा है, उसे याद करो। आत्मा की शक्ति अनन्त है, इस बात को मत भूलो। देखो, व्याधि तो शरीराश्रित है, अपनी आत्मा में जागृत व स्वस्थ रहो। मूलाचार का स्वाध्याय करके हम अभी आते हैं।
एक अकिंचन शिष्य के प्रति उनका इतना सहज और आत्मीय-भाव देखकर मैं भीतर तक भीग गया। शिष्यों पर अनुग्रह करने में कुशल ऐसे धर्माचार्य बारम्बार वंदनीय हैं।
-मुनि क्षमासागर (कोनी जी1982)
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जय जिनेंद्र
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यंग जैना अवार्ड (सन् 2001 से 2016) पाने वाले सभी जैन छात्र-छात्राएँ पिछले वर्षों में प्राप्त होने वाली अपनी उपलब्धियों से हमें अवश्य अवगत कराए।
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*जय जिनेन्द्र।*
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*संपर्क सूत्र-*
07665758017
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