23.07.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 23.07.2017
Updated: 24.07.2017

Update

#MahavirJi चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज " ने एक बार जब हैदराबाद (जहाँ मुसलमान शासन था) की तरफ विहार किया तब वहाँ के निजाम ने आचार्य श्री की चर्या सुनकर अपनी बेगमों के साथ उनकी आरती उतारी! और कुछ लोगों के आपत्ति करने पर निजाम ने जो उत्तर दिया वो इतिहास बन गया! #AcharyaShantisagar #MuniPramansagar

उन्होंने कहा की - " हमारे देश में नंगों पर प्रतिबन्ध है, फरिश्तों पर नहीं और ये एक फ़रिश्ते हैं "!

-मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज

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भारत विकासशील नहीं विकसित देश है #MuniSamaySagar #ऽhàrë

भारत विकासशील नहीं विकसित देश है क्योंकि इस देश में धर्म का पालन होता है धर्म का जीवन में महत्व है धन को जीवन में सर्वोच्च स्थान नहीं दिया।यहां धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया गया है फिर भी हम सभी क्षेत्रों में समान रूप से आगे बङ रहे हैं उक्त आशय के उदगार सुभाष गंज मैदान में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री समय सागर जी महाराज ने व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि दया के भाव आपके भीतर नहीं आयेगे तो आप दुसरो की रक्षा नहीं कर सकते।दुसरो की रक्षा आप तव ही कर सकते हैं जव दया के भाव आपके अन्दर से आयेगेसिर्फ अहंकार को प्रकट करने से हृदय में करूगा उतपन्न नहीं होगी। उन्होंने कहा कि मानव जीवन वहुत दुर्लभता से मिला है इसकी कीमत समझे हमारे अभिमान के कारण किसी की जान चली जाये यह ठीक नहीं होगा हमे कोशिश करना चाहिए कि कोई भी जीव अकाल में मरण को प्राप्त ना हो।

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जीवन को वनाये रखने के लिए मौलिक वस्तु की आवश्यकता है स्वर्ण कीमती वस्तु है किन्तु वह मौलिक वस्तु नहीं है उसके विना भी काम चल सकता है किन्तु जो मौलिक चीज है वह है प्राणवायु जिसके विना जीवन चल नहीं सकता आपके पास पैसा है आप भले ही वेन्टीलेटर पर चले जायें तो वह भी आक्सीजन का ही उपयोग होगा प्रकृति ने जो दिया है वहीं मौलिक है । आप जो आनंद का अनुभव कर रहे हैं वह मोलिकाता के कारण आ रहा है। आत्मा अमर है पर्याय वदलती है।मुनि श्री ने कहा किआत्मा कभी मरती नहीं है आत्मा अजर अमर है पर्याय का ही नाश होता है जिस प्रकार समुद्र में उठने वाली लहरे समाप्त होती रहती है किन्तु समुद्र यथावत वना रहता है उसी प्रकार आत्मा हमेशा वनी रहती शरीर का ही नाश होता है इसलिए हम शरीर के लिए कार्य ना करें जो भी करना है आत्मा के लिए करे।आप मरण से वच नही सकते किन्तु ऐसा कोई काम न करें जिससे अकाल मृत्यु हो जाये।कई बार दुर्घटना हमारी असावधानी से हो जाती है हम विवेक ही नहीं लगाते और बाहन आदि के द्वारा ऐक्सिडेंट के शिकार हो जाते हैं सावधानी रखने पर जिनसे वचा जा सकता था।विवेक के साथ सावधानी रखेगे तो अपनी भी सुरक्षा होगी और दुसरो की भी रक्षा होगी अपने जीवन को अच्छा वनाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

नीति न्याय से धनोपार्जन करे मुनि श्री ने कहा कि परिग्रह संसार का कारण है आ नैतिक रूप से कमाया धन संसार मैं ही भटकाने वाला है मान लो आपने पाच रूपय मूल्य की वस्तु के पच्चीस रूपय ले लिये लेने वाले की तो मजवुरी है किन्तु उसकी जो वदुआ आपको पतन की ओर ले जायेगी । अताधिक धन संग्रह अकाल मृत्यु का कारण बन जाता है । इस लिये द्रव्य न्याय नीति से ही कमाना चाहिये यह वहुत फलता भी है और दुसरो को प्रेरणा देने में भी कारण वनता है।

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#LIVE...वरना अपने बच्चों को लगता हैं हमारे जैन बस पूजा-पाठ ओर महाराज में ही लगे हैं ओर कुछ नी आता इनको -आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज 😊😊 #AcharyaGyansagar #share

10 mint पहले की क्लिप वहलना अतिशय क्षेत्र से भेजी हैं विशाल जैन, अनाज वालों ने:)) -thanks

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