14.07.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 14.07.2017
Updated: 14.07.2017

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 103* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*अहमिन्द्र आचार्य इन्द्रदिन्न*
*आचार्य दिन्न*
*आचार्य सिंहगिरि*

*आचार्य सिंहगिरि*

आचार्य सिंहगिरि के चार शिष्य थे। आचार्य समित, आचार्य धनगिरि, आचार्य वज्र आचार्य और पद्धत इनमें आचार्य वज्र का जीवन आगे के प्रबंध में विस्तार से प्रस्तुत होगा। आचार्य सिंहगिरि के चारों शिष्यों में आचार्य वज्र अधिक प्रभावक थे। आचार्य समित और धनगिरि, आचार्य वज्रस्वामी के निकट संबंधी (ज्ञातिजन) थे। आर्य धनगिरि वज्रस्वामी के पिता और आचार्य समित वज्रस्वामी के मामा थे। दोनों ने आचार्य वज्रस्वामी से पहले आचार्य सिंहगिरि से दीक्षा ग्रहण की। आचार्य समित के जीवन की एक प्रभावक घटना है।

अचलपुर नगर के परिपार्श्व में कृष्णा और पूर्णा नामक दो नदियां बहती थीं। दोनों के मध्यवर्ती स्थान में 500 तापस रहते थे। वह स्थान ब्रह्मद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था। ब्रह्मद्वीप निवासी तापसों में एक पादलेप विद्या का विशेषज्ञ था। वह पैरों पर औषधि का लेप लगाकर नदी के पानी पर चलता हुआ पारणे के दिन अचलपुर में भोजन ग्रहण करने आया-जाया करता था। यह चमत्कार किसी मंत्र विद्या का नहीं था। औषधि विशेष का लेप लगाने के कारण ऐसा संभव था। सामान्यजन इस दृश्य को देखकर बहुत प्रभावित थे। वे तापस के इस चमत्कार को तपस्या का फल मानकर प्रशंसा करते थे। कई लोग कहते थे कि ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति अन्य धर्म में नहीं है और जैन शासन में भी नहीं है।

*न हि वो दर्शने कोऽपि प्रभावोऽस्ति यथा हि नः।*
*श्रमणोपासकानेवं प्रजहास स *तापसः।।73।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 12)*

इस प्रकार तापस की चमत्कारिक शक्ति के सामने जैन शासन का उपहास किया जा रहा था।

एक दिन संयोग से वज्रस्वामी के मातुल योगसिद्ध महातपस्वी समित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अचलपुर में पधारे। जैन श्रमणोपासकों ने जैन शासन की अपवादकारी स्थिति की अवगति आचार्य समित को दी। आचार्य समित बोले

*नास्य काऽपि तपः शक्तिस्तापस्य तपस्विनः।*
*केनाप्यसौ प्रयोगेण प्रतारयति वोऽखिलान्।।77।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 11, पृष्ठ 100)*

श्रमणोपासकों यह चमत्कार तप का नहीं, पादलेप का है। जल से पाद प्रक्षालन करने के बाद ऐसा चमत्कार तापस के द्वारा संभव नहीं है। स्थिति को विश्वस्त रुप से जान लेने के लिए किसी एक श्रावक ने तापस को अपने घर में निमंत्रण दिया। स्वागत में आग्रह पूर्वक उनके पाद प्रक्षालित किए। उसके बाद भोजन की क्रिया संपन्न हुई। नदी के पास जाते समय कई लोग साथ गए।

*क्या तापस अपना चमत्कार दिखा सका...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 103📝

*व्यवहार-बोध*

*मुक्ति*

(दोहा)

*21.*
अनासक्ति निर्लोभता, निस्पृहता है मुक्ति।
कपिल कहानी आगमिक, सुना रही वर सूक्ति।।

*10. अनासक्ति निर्लोभता...*

अनासक्ति मुक्ति है और आसक्ति बंधन है। आसक्ति में बंधा हुआ व्यक्ति उपलब्धियों के शिखर पर पहुंच कर भी तृप्त नहीं होता, इस सच्चाई को प्रमाणित करती है कपिल की कहानी। इस विषय में जैन आगम उत्तराध्ययन का आठवां अध्ययन पठनीय है। उसमें कपिल मुनि की अनुभवपूत वाणी का संकलन है। कपिल की कहानी इस प्रकार है—

कौशांबी नगरी। जीतशत्रु राजा। उसकी सभा में चौदह विद्याओं का पारगामी ब्राह्मण था। उसका नाम था काश्यप। उसकी पत्नी का नाम यशा था। उसके कपिल नाम का एक पुत्र था। काश्यप अचानक काल-कलवित हो गया। उस समय कपिल छोटा बालक था। राजा ने काश्यप के स्थान पर दूसरे ब्राह्मण को नियुक्त कर दिया। वह राजदरबार में जाते समय घोड़े पर आरूढ़ हो छत्र धारण कर जाता था। यशा उसे देखती और अपने पति की स्मृति कर रोने लगती।

कपिल कुछ बड़ा हो गया। उसने अपनी मां को रोते देख एक दिन पूछा— 'मां! तुम रोती क्यों हो?' यशा बोली— 'पुत्र! तुम्हारे पिता भी इसी तरह छत्र धारण कर राजदरबार में जाते थे। उनके बाद यह स्थान दूसरे को मिल गया।' कपिल ने जिज्ञासा की— 'मां! पिता जी का स्थान मुझे क्यों नहीं मिला' यशा बोली— 'पुत्र! वे विद्याविशारद थे। तुम तो पढ़े नहीं। तुम्हें उनका स्थान कैसे मिल सकता है?' कपिल ने पढ़ने का आग्रह किया। यशा बोली— 'यहां तुम्हें कोई नहीं पढ़ाएगा। तुम पढ़ना चाहते हो तो श्रावस्ती चले जाओ। वहां तुम्हारे पिता के परम मित्र इंद्रदत्त ब्राह्मण रहते हैं। वे तुमको पढ़ाएंगे।

कपिल के मन में पढ़ने की तड़प थी। वह श्रावस्ती में इंद्रदत्त ब्राह्मण के पास पहुंच गया। इंद्रदत्त उसका परिचय पाकर और उसके आने का उद्देश्य जान कर उससे प्रभावित हुआ। उसने शालीभद्र नामक वैभवसंपन्न सेठ के यहां उसके भोजन की व्यवस्था कर उसे पढ़ाना शुरू कर दिया।

*क्या कपिल विद्याविशारद बन राजदरबार पहुंच पाया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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