04.07.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 04.07.2017
Updated: 06.07.2017

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 97* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*सद्भाव समुद्भावक आचार्य स्वाति*

आचार्य बलिस्सह की भांति आचार्य स्वाति भी जैन परंपरा में वाचनाचार्य पद पर नियुक्त थे। उस समय युगप्रधान परंपरा, वाचनाचार्य परंपरा और गणाचार्य परंपरा भिन्न-भिन्न रुप में प्रवर्तमान थी। युगप्रधान परंपरा का प्रतिनिधित्व आचार्य गुणसुंदर कर रहे थे। वाचनाचार्य बलिस्सह के बाद वाचनाचार्य स्वाति का काल प्रारंभ होता है, उस समय तक आचार्य गुणसुंदर को युगप्रधान का दायित्व संभाले हुए 38 वर्ष हो गए थे।

*गुरु-परंपरा*

नंदी सूत्र स्थविरावली के अनुसार प्रस्तुत आचार्य स्वाति वाचनाचार्य बलिस्सह के उत्तराधिकारी थे। आचार्य बलिस्सह दशपुर्वधर आचार्य महागिरि के शिष्य थे। आचार्य महागिरि से पूर्व की गुरु परंपरा नंदी स्थविरावली और कल्पसूत्र स्थविरावली में प्रायः समान है। आचार्य सुहस्ती की परंपरा में गणाचार्य पद पर इस समय आचार्य सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध थे।

*जीवन-वृत्त*

आचार्य स्वाति का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। नंदी सूत्र के उल्लेखानुसार उनका हारित गोत्र था। पट्टावली समुच्चय के रचनाकार ने प्रस्तुत वाचनाचार्य स्वाति को ही तत्त्वार्थ के रचनाकार उमास्वाति माना है पर ऐसा संभव नहीं है। उमास्वाति का गोत्र कौभीषण था। वे उच्चनागर शाखा के थे। आचार्य स्वाति के समय में उच्चनागर शाखा का उद्भव ही नहीं हुआ था। अतः दोनों के जीवन प्रसंग स्पष्टतः उनकी भिन्नता का बोध कराते हैं।

आचार्य स्वाति एक प्रभावशाली आचार्य थे। इन्होंने आचार्य बलिस्सह के बाद वाचनाचार्य पद को कुशलतापूर्वक संभाला और जैन शासन की महती प्रभावना की।

आचार्य स्वाति के समय मगध कर मौर्य वंश का शासन था।

*समय-संकेत*

वाचनाचार्य स्वाति का काल आचार्य बलिस्सह और आचार्य शाम के मध्यवर्ती है। आचार्य बलिस्सह का स्वर्गवास वी. नि. 329 (वि. पू. 141) और वाचनाचार्य श्याम आचार्यकाल वी. नि. 335 (वि. पू. 135) से प्रारंभ माना गया है। अतः वाचनाचार्य स्वाति का समय वी. नि. 329 (वि. पू. 141) से वी. पू. 335 (वि. पू. 135) संभव है।

वाचनाचार्य स्वाति ने अहिंसा, समता, सद्भाव आदि का विकास कर जैनधर्म की महती प्रभावना की।

*आचार्य-काल*
(वी. नि. 329-335)
(वि. पू. 141-135)
(ई. पू. 198-192)

*सन्त-श्रेष्ठ आचार्य श्याम के प्रभावक व्यक्तित्व* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻

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