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#श्रवणबेलगोला
कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की विशाल प्रतिमा भारत के अदभुत स्मारकों में शुमार है. श्रवणबेलगोला में मुख्य आकर्षण का केंद्र बाहुबली की विशाल प्रतिमा है.
एक ही पत्थर से बनी प्रतिमा
दसवीं सदी में बनी प्रतिमा- श्रवणबेलगोला में बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण 983 ईश्वी में गंग सम्राज्य के राजा राजमल के एक सेनापति चामुण्डाराय द्वारा करवाया गया. उन्होंने अपनी मां कल्लाला देवी की इच्छा से मूर्ति का निर्माण कराया. इस मूर्ति को सफेद ग्रेनाइट के एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया है. मूर्ति एक कमल पर खड़ी हुई है. यह जांघों तक बिना किसी समर्थन के खड़ी है. मूर्ति की लंबाई 60 फीट (18 मीटर) है. इसके चेहरे का माप 6.5 फीट (2.0 मी.) है. जैन परंपरा के अनुरूप यह मूर्ति पूर्णतया दिगंबर अवस्था में है. विंध्यगिरी पर्वत पर स्थित यह मूर्ति 30 किलोमीटर दूर से भी दिखाई देती है.
चामुंडराय ने महाशिल्पी को बुलाकर इस मूर्ति का निर्माण कराया. इसके अभिषेक के दौरान 1008 कलश दूध, गन्ने का रस,दूध चंदन आदि से अभिषेक किया गया. फिर भी अभिषेक पूर्ण नहीं हुआ. जब गुल्लिका अज्जी (दादी) ने अपनी छोटी से लुटिया से दुग्धाभिषेक किया तो अभिषेक पूर्ण हुआ.
गोमतेश्वर भी एक नाम- बाहुबली की मूर्ति के चेहरे के निर्मल भाव दिखाई देता है. उनकी घुंघराली आकर्षक जटाएं, आनुपातिक शारीरिक रचना, विशालकाय आकार और कलात्मकता शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण पेश करती है. बाहुबली का एक नाम गोमतेश्वर भी है. दरअसल चामुंडराय को उनकी मां बचमन में गोम्मद कहकर बुलाती थीं. तो गोम्मद के ईश्वर गोमतेश्वर हुए.
बाहुबली जैन धर्म ऋषभदेव के पुत्र
हर 12 साल पर महामस्तकाभिषेक- श्रवणबेलगोला में हर 12 साल पर श्रद्धालु यहां महामस्तकाभिषेक के लिए जुटते हैं. इस मूर्ति को केसर, घी, दूध, दही, सोने के सिक्कों तथा कई अन्य वस्तुओं से नहलाया जाता है. उस समय शहर में बहुत बड़ा मेला लगता है. इस मौके पर देश दुनिया से लाखों जैन श्रद्धालु यहां जुटते हैं. श्रवणबेलगोला प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म का महान केन्द्र था. जैन अनुश्रुतियों के मुताबिक मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किया था.
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