30.06.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 30.06.2017
Updated: 07.07.2017

Update

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 94📝

*व्यवहार-बोध*

*भाषा*

*3. मीठी केवल जीभ है...*

गतांक से आगे...

रोषारुण बेगम बादशाह के पास पहुंची, तब तक उसके धैर्य का बांध टूट गया। वह निःश्वास छोड़ती हुई बोली— 'आप भी बड़े विचित्र व्यक्ति हैं। मुझे किस वाचाल के घर भेज दिया। आज मेरी जो बेइज्जती हुई है, मेरी किसी दासी की भी नहीं हुई। वह हरामखोर बीरबल अपने आप को समझता क्या है? उसका सिर आसमान पर चढ़ा हुआ है। आप भी उसे प्रोत्साहन देते रहते हैं। वह मेरा अपमान नहीं करेगा तो और क्या करेगा?' बादशाह कुछ समझ नहीं पाया। उसने बेगम को आश्वस्त करने का प्रयास किया। बादशाह के वचनों से कुछ आश्वस्त हो उसने पूरी रामकहानी सुना दी।

बादशाह की प्रमुख बेगम हूरमा के लिए बीरबल द्वारा प्रयुक्त "तुरकणी" शब्द बादशाह के कलेजे में शल्य की तरह चुभने लगा। वह बीरबल पर कार्यवाही करने की बात सोच ही रहा था कि बीरबल स्वयं वहां पहुंच गया। बादशाह ने बीरबल को देखते ही रोष प्रकट करते हुए पूछा— 'आज तुमने बेगम के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया? क्या तुम्हें इस राज्य में रहना नहीं है?' बीरबल सारी स्थिति का आकलन कर रहा था। बादशाह के मौन होने पर वह बोला— 'जहांपनाह! मैंने ऐसी क्या गुस्ताखी की? क्या बेगम साहिबा का स्वागत नहीं किया? उनको खिलाने-पिलाने में कोई कमी रखी? उन्हें वहां क्या असुविधा हो गई?' बादशाह का रोष कम नहीं हुआ। फिर भी उसने अपने आपको सहज बनाने का प्रयास करते हुए कहा— 'बीरबल! तुमने बेगम को जो भोज दिया, विलक्षण था। किंतु जबान से कटु क्यों बोले?' बीरबल बोला— 'जबान में क्या है? वह तो फीकी थूक जैसी है।' बादशाह ने कहा— बीरबल! तुम्हारा यह सोचना ठीक नहीं है। जबान से ही तो आदमी की पहचान होती है। इसके कारण कितने अनर्थ हुए हैं, क्या तुम नहीं जानते?' बीरबल विनम्रता के साथ बोला— 'जानता हूं जहांपनाह! मैंने उस दिन और कहा ही क्या था। पर आपने उसका प्रमाण मांगा था। मैंने वही प्रस्तुत किया है।'

कुछ दिन पहले दरबार में सबसे मीठी चीज को लेकर जो बहस हुई थी, उसकी स्मृति होते ही बादशाह का रोष समाप्त हो गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा— 'वाह! बीरबल! तुम्हें प्रमाण देने के लिए यह स्थान मिला। तुमने तो अपना काम कर दिया, पर अब बेगम को खुश करना कितना मुश्किल हो जाएगा।

*एक राजपूत ने कैसे समझदारीपूर्ण व्यवहार से यक्ष का मन जीता...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 नालासोपारा (मुंबई) - तेयुप के पुनः अध्यक्ष बने अनिल परमार
👉 कोयम्बटूर - मधु बांठिया बनी तेरापंथ महिला मण्डल अध्यक्ष
👉 विजयनगर (बैंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सोलापुर - ते.यु.प. प्रभारी श्री मनोज जी संकलेचा की संगठन यात्रा
👉 हैदराबाद - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 चूरू - साध्वीश्री जी का चातुर्मासिक भव्य मंगल प्रवेश

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 94* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*गुणगणमण्डित आचार्य गुणसुंदर*

युगप्रधानाचार्यों की परंपरा में आचार्य गुणसुंदर की गणना है। गुणसुंदर उनका नाम था। ज्ञानदि गुणों से भी वे सम्पन्न थे। दशपूर्वधर आचार्यों में गुणसुंदर तृतीय हैं।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य गुणसुंदर दशपूर्वधर आचार्य सुहस्ती के शिष्य होने चाहिए। आचार्य सुहस्ती के शिष्य परिवार में एक शिष्य का नाम मेघगणी था। अनेक विद्वानों का अनुमान है आचार्य गुणसुंदर का ही मेघगणु के नाम से उल्लेख है। दोनों नाम एक ही व्यक्ति के हैं।

आचार्य सुहस्ती एवं वज्रस्वामी के अंतराल काल में वल्लभी युगप्रधान पट्टावली के अनुसार आचार्य रेवती मित्र, आचार्य मंगू, आचार्य धर्म, आचार्य भद्रगुप्त आदि कई प्रभावक युगप्रधान आचार्य हुए। उनमें आचार्य गुणसुंदर एक थे। युगप्रधान आचार्यों में आचार्य सुहस्ती के बाद गुणसुंदर का क्रम है।

*जीवन-वृत्त*

आचार्य गुणसुंदर के वंश, जन्म-स्थान आदि के संबंध की सामग्री उपलब्ध नहीं है। उनका जन्म संवत् वी. नि. 235 (वि. पू. 235, ई. पू. 292) दीक्षा संवत् वी. नि. 259 (वि. पू. 211) बताया है। वे वी. नि. 291 (वि. पू. 179) में युग प्रधानाचार्य पद पर आसीन हुए। संसार को सार्वभौम अहिंसा और मैत्री का संदेश देकर उन्होंने विश्व बंधुत्व की भावना को साकार रुप दिया और जैन दर्शन की विशेष प्रभावना की।

*समय-संकेत*

आचार्य गुणसुंदर की आयु 100 वर्ष की थी। उन्होंने 44 वर्ष तक युगप्रधानाचार्य के दायित्व का कुशलतापूर्वक संचालन किया।

उनका स्वर्गवास वी. नि. 335 (वि. पू. 135, ई. पू. 192) का है।

*आचार्य-काल*

(वी. नि. 291-335)
(वि. पू. 179-135)
(ई. पू. 236-192)

*स्वाध्यायप्रिय आचार्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध के प्रभावक व्यक्तित्वों* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update

👉 परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के करकमलों से ई. एम. बाईपास कोलकाता में.. "जैन भगवती दीक्षा" का कार्यक्रम
👉 कार्यक्रम पूज्यप्रवर के मंत्रोचार से शुरू हुआ..
👉 मुमुक्षु जयंत बुच्चा का मुनि दीक्षा संस्कार..
👉 राग से वैराग की ओर.. बने मुनि जयदीप कुमार
👉 मुमुक्षु ममता सांड, मुमुक्षु शालिनी बैद और मुमुक्षु अनमोल फलोदिया की समणी दीक्षा..
👉 बनी समणी मनस्वी प्रज्ञा, समणी शरद प्रज्ञा और समणी अखिल प्रज्ञा
👉 गुरुदेव ने नवदीक्षित मुनि जयदीपकुमार जी को मुनि ऋषभकुमार जी के पास रखा है ।
👉 तीनों नवदीक्षित समणी जी को साध्वी वर्या संबुद्धयशा जी के पास शिक्षा ग्रहण करने का निर्देश दिया..

👉 आज के दीक्षा समारोह के कुछ विशेष छायाचित्र आपके लिए..

दिनांक - 30/06/2017

📝 *धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

👉 जैन भगवती दीक्षा समारोह का कार्यक्रम ई. एम. बाईपास कोलकाता में..
👉 कार्यक्रम परमपूज्य आचार्य श्री के मन्त्रोंचार से शुरू हुआ ।
👉 मुमुक्षु जयंत का मुनि दीक्षा संस्कार..
👉 राग से वैराग की ओर..बने मुनि जयदीप कुमार
👉 मुमुक्षु ममता, मुमुक्षु अनमोल, मुमुक्षु शालिनी की समणी दीक्षा..
👉 बनी समणी मनस्वी प्रज्ञा, समणी शरद प्रज्ञा और समणी अखिल प्रज्ञा
*आज के कुछ विशेष दृश्य आपके लिए..*

दिनांक - 30/06/2017

📝 *धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए*
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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