15.06.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 15.06.2017
Updated: 16.06.2017

Update

देश के सर्वाधिक आयु के दिगम्बर संत पूज्य मुनि श्री 108 निर्वाण सागर जी महाराज की 106 वर्ष की आयु में समाधी हो गई है। #MuniNirvansagar

मुनि श्री खनियाधना जिला शिवपुरी मप्र स्थित नन्दीश्वर द्वीप जिनालय, चेतन बाग में विराजमान थे। आप सभी को इस समाधि से जुडी एक विशेषता बनाना चाहता हूँ ये मुनि श्री वही मुनि श्री हैं जिनका काफी दिनों से समाधि मरण चल रहा था और जिनकी वैयावृत्ति आदरणीय ब्रम्हचारी श्री सुमतप्रकाश जी कर रहे थे और इन मुनि श्री के साथ जैन समाज और मुमुक्षु जैन समाज [ कॉंजी स्वामी के मनाने वाले ] एक साथ और एक मंच पर थी आप लोगो को पता हैं

क्यों.....??? क्यों की बहुत समय बाद ही तत्व प्रेमी समाज को एक निर्दोष मुनि चर्या का पालन करने वाले, मूलगुणों का अखंड पालन करने वाले तथा नयों की कुशल प्रयोगी तथा समयसार आदि अध्यात्मिक ग्रंथों का सुक्ष्मतम स्वाध्यायी मुनि मिले थे.... सामाजिक एकता की मिशाल कायम करवाने वाले और निज आत्म उद्धारक परम पूज्य मुनि श्री 108 निर्वाण सागर जी मुनिराज को सत् सत् नमन
सतीश जैन

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अगर किसी की आँख भर जाये तो वह कमजोर माना जाता है। बहुत कठोर हो गए हैं हम, हमारी निर्मलता हमारे कठोर मन से गायब हो गई, जबकि हमारा मन इतना निर्मल होना चाहिये कि दूसरांे के दुःखों को, संसार के दुखों को देखकर द्रवित हो जाए, उसमें डूब जाये।
गुरुवाणी, - मुनि क्षमासागर जी

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वंदना करूँ मैं गणिनी ज्ञानमती की, 20वीं सदी की प्रथम बालसती की.. 😊 #AryikaGyanmati

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#share आज बालयति #भगवान_वासुपूज्य जी का गर्भ कल्याणक व 🙃 #चारित्र_चक्रवर्ती #आचार्य_शांतिसागर जी महाराज का जन्म दिवस है #AcharyaShantisagar

आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का जन्म अपने मामा के घर येलगुल जिला-बेलगाँव में आषाढ़ कृष्णा ६ संवत् 1929,सन् 1872 में हुआ था,आपके पिता श्री भीमगोड़ा पाटिल व माता सत्यवती बाई थी।

*👉🏻आचार्यश्री जन्मना क्षत्रिय जैन थे,आप चतुर्थ जाति से थे,महापुराणकार श्रीमद् जिनसेन आदि महामुनि इस कुल में उत्पन्न हुए थे।*

👉🏻आचार्यश्री के बचपन का नाम सातगौंडा था,अल्पायु में आपका विवाह हुआ पर कुछ समय बाद ही बालिका का देहांत हो गया,अतएव आप बाल ब्रह्मचारी रहे।आपके गृहस्थ जीवन के ज्येष्ठ भ्राता आपसे ही दीक्षित मुनिश्री वर्धमानसागर जी(वर्धमान स्वामी) थे।

*👉🏻आप श्रमण संस्कृति के प्रवर्तक थे,आपने विषमकाल में मुनि देवेन्द्रकीर्ति जी से मुनि दीक्षा लेकर आगमोक्त मुनि परम्परा की पुनर्स्थापना की।*

👉🏻आचार्य श्री ने दक्षिण से लेकर उत्तर तक बिहार,उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,राजस्थान,गुजरात आदि प्रदेशों की हजारों किमी की यात्रा बिना किसी यांत्रिक संसाधन के पदविहार करके पूर्ण की।

*👉🏻आचार्य श्री 7 दिन उपवास करके 8वें दिन पड़गाहन व नवधा भक्ति होने पर आहार ग्रहण करते थे।*

👉🏻योगीन्द्र चूड़ामणि आचार्य महाराज ने 18 वर्ष की आयु में जूतों का,32 वर्ष की आयु में घी व नमक का,एवं ऐलक दीक्षोपरांत आजीवन सवारी का त्याग कर दिया।एवं साथ ही आपने 84 वर्ष की कुल आयु में जीवन के 58 वर्ष तक उपवास किए।

*👉🏻चलते-फिरते जीवंत जिनालय आचार्यश्री ने धवला जी,महाधवला जी आदि सिद्धांत ग्रन्थों को ताम्रपत्र पर अंकित करवाया था व धर्मरक्षा हेतु 3 वर्ष 12 दिन के बाद अन्न का आहार ग्रहण किया।*

👉🏻 दिगंबरत्व भूषण आचार्यश्री ने सप्त ऋषिराज के साथ 1926 से 1936 तक उत्तर भारत में पदविहार कर दिगंबरत्व की धर्मध्वजा फहराई।

*👉🏻1000 वर्ष के लम्बे अंतराल पर नेत्रज्योति क्षीण होने के कारण आपने स्वप्रेरणा से अपना आचार्य पद प्रथम शिष्य मुनि वीरसागर जी को सौंपकर सल्लेखना ग्रहण कर ली,व सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी में समाधिमरण किया।*

👉🏻त्रिभुवन तिलक चूड़ामणि आचार्यश्री की आत्मा निश्चय ही उच्च गति को प्राप्त हुई होगी इसमें कोई संदेह नहीं है।

*👉🏻आचार्य महाराज को समाधि से पूर्व स्वप्न आया था कि उनका जीव आगामी भव में पुष्करार्ध द्वीप के तीर्थंकर के रुप में अवतरित हुआ है,ऐसा ही स्वप्न भट्टारक जिनसेन महाराज को भी आया था,महान आत्माओं को आए स्वप्नों सदैव सत्य होते है,आचार्य श्री भी भरत क्षेत्र के जीवों का कल्याण कर पुष्करार्ध द्वीप में जन्म लेकर अनन्त जीवों का कल्याण करे ऐसी भावना।

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जब तक सृष्टि के अधरों पर करुणा का पैगाम रहे!
तबतक युग की हर धड़कन में विद्यासागरजी नाम रहे!

-संकेत जैन ढाना

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