Update
👉 जीन्द - मंगलभावना समारोह का कार्यक्रम आयोजित
👉 कटक - तेयुप अध्यक्ष के लिए श्री अरविंद जी बैद निर्वाचित
👉 कटक - आचार्य श्री तुलसी की 21वीं पुण्य तिथि पर कार्यक्रम
👉 कटक - आगामी सत्र हेतु नये अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा लुणिया मनोनीत
👉 बेंगलुरु - परम पूज्य गणाधिपती गुरुदेव तुलसी जी का 21वां महाप्रयाण दिवस पर भावांजलि कार्यक्रम आयोजित
👉 शांतिनगर (बेंगलुरु) - आचार्य श्री तुलसी का 21वां महाप्रयाण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 सादुलपुर - अणुव्रत आचार संहिता बोर्ड भेंट
👉 श्री डूंगरगढ़ - आचार्य श्री तुलसी की 21वीं पुण्यतिथि का कार्यक्रम आयोजित
👉 अजमेर - आचार्य श्री तुलसी का 21 वां महाप्रयाण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 कांलावाली - गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी का 21वां महाप्रयाण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 राउरकेला - आचार्य श्री तुलसी महाप्रयाण दिवस समारोह आयोजित
👉 बलांगीर - आचार्य श्री तुलसी के 21वें महाप्रयाण दिवस का आयोजन
👉 रायपुर - गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के 21 वें महाप्रयाण दिवस पर "तुलसी धम्म जागरणा" का आयोजन
👉 मंड्या - महिला मंडल द्वारा वृक्षारोपण का कार्य
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 हावड़ा: जैन विश्व भारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आवस्सयं (आगम) पूज्यप्रवर को भेंट
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉कोप्पल - आचार्य श्री तुलसी का 21 वां महाप्रयाण दिवस आयोजित
👉 गदग - कन्या सुरक्षा सर्किल का उद्घाटन
👉 चेन्नई: गणाधिपति गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी के 21वें महाप्रयाण दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 दिल्ली - राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मेलन हेतु प्रबुद्ध व्यक्तियों से मुलाकात
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 80* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
विराग भाव से उपस्थित मगध गणिका को प्रसन्न करने के लिए रथिक ने बाण-कौशल से सुदूरवर्ती आम्रफलों के गुच्छे को तोड़कर उसे उपहृत किया।
सारथी के इस बाण-कौशल में कोशा को कुछ भी आश्चर्य नहीं लगा। वह अत्यंत प्रवीण नारी थी। नृत्यकला में उसका चातुर्य अनुपम था। उसने सरसों के ढेर पर सुई की नोक से अनुस्यूत गुलाब की पंखुड़ियों को फैलाकर उस पर नृत्य किया। अपनी लचीली देह को कोशा ने इस तरह साध लिया था कि उसके पादाक्रांत भार से सर्षप राशि का एक भी दाना इधर से उधर नहीं हुआ और न सुई की नोक की चुभन उसके चरणों को घायल कर सकी। रथिक प्रसन्न होकर बोला "सुभगे! तुम्हारे नृत्य-कौशल पर प्रसन्न होकर मैं तुम्हें कुछ उपहार देना चाहता हूं।" गणिका ने कहा "रथिक! मेरी दृष्टि में तुम्हारा यह आम्रफल के गुच्छों का उच्छेदन दुष्कर नहीं है और न मेरा यह नृत्य-कौशल ही, पर स्थूलभद्र जैसा ब्रह्मचर्य का उदाहरण प्रस्तुत करना महादुष्कर है। मेरी कामोद्दीपक चित्रशाला में आर्य स्थूलभद्र ने पूरा पावस बिताया। षटरसपूर्ण भोजन किया पर काजल की कोठरी में रहकर भी आचार्य स्थूलभद्र की सफेद चद्दर पर एक भी दाग न लगा। आग पर चढ़कर भी मक्खन न पिघला, ऐसे महापुरुष समग्र विश्व के द्वारा वंदनीय होते हैं।"
रथिक आचार्य स्थूलभद्र की महिमा गणिका के द्वारा सुनकर मन प्रसन्न हुआ। ह्रदय में सात्त्विक भावों का उदय हुआ, विरक्ति की धारा बही एवं पाटलिपुत्र में आचार्य स्थूलभद्र के पास पहुंचकर रथिक ने दीक्षा ग्रहण की।
स्थूलभद्र के जीवन से पावन प्रेरणा पाकर अनेक व्यक्ति अध्यात्म के पथिक बने।
नंद राज्य के यशस्वी महामात्य शकडाल की नौ संतानें जैन शासन में दीक्षित हुई सात पुत्रियां एवं दो पुत्र। इनमें स्थूलभद्र सबसे ज्येष्ठ थे। शकडाल परिवार में सर्वप्रथम दीक्षा संस्कार उनका हुआ था। आचार्य पद के महिमामय दायित्व को स्थूलभद्र ने अत्यंत दक्षता के साथ वहन किया। श्रमण संघ में आचार्य महागिरी एवं सुहस्ति जैसे प्रभावी आचार्य उनके प्रमुख शिष्य थे।
स्थूलभद्र दीर्घजीवी आचार्य थे। उनके काल में मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त और राजनीति-दक्ष, मेधावी जैन धर्म में आस्थाशील चाणक्य का अभ्युदय हुआ। मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई। नंद साम्राज्य के पतन की दर्दनाक घटना इस युग का मर्मांतक इतिहास है। दुष्काल की समाप्ति के बाद आगम वाचना का महत्त्वपूर्ण कार्य आचार्य स्थूलभद्र की सन्निधि में हुआ। आचार्य स्थूलभद्र के जीवन का एक शतक आरोह और अवरोह से भरा ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण पृष्ठ है।
अर्थतः दसपूर्वधर एवं शब्दतः चतुर्दशपूर्वधर आचार्य स्थूलभद्र श्रमण समुदाय के शिरोमणि एवं लब्धिसंपन्न तेजस्वी आचार्य थे।
*समय-संकेत*
आचार्य स्थूलभद्र 30 वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे। मुनि जीवन के लगभग 70 वर्ष के काल में 45 वर्ष तक उन्होंने आचार्य पद के दायित्व को कुशलतापूर्वक वहन किया। उनके जीवन की विशेषताओं से आचार्य पद स्वयं मंडित हुआ। वैभारगिरी पर्वत पर 15 दिन के अनशन के साथ वी. नि. 215 (वि. पू. 255) में आचार्य स्थूलभद्र का स्वर्गवास हुआ।
*आचार्य-काल*
(वी. नि. 170-215)
(वि. पू. 300-255)
(ई. पू. 357-312)
*तीर्थंकर महावीर की पट्टधर परम्परा में नौवें सदगुण-रत्न-महोदधि आचार्य महागिरी का प्रभावक जीवनवृत्त* पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 80📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*47. महेश• (महेशदासजी)*
महेशदासजी मूथा मूलतः किशनगढ़ के रहने वाले थे। बाद में वे जयपुर जाकर बसे। किशनगढ़ में आचार्यश्री भारीमालजी का पदार्पण हुआ। उस समय उनका बहुत विरोध हुआ। विरोधी गतिविधियों में महेशदासजी का भी हाथ था। उसी वर्ष मुनि हेमराजजी को किशनगढ़ चातुर्मास्य करना पड़ा। चातुर्मास्य के प्रारंभ में स्थिति अनुकूल नहीं थी। संवत्सरी को वहां एक भी पौषध नहीं हुआ। धीरे-धीरे कुछ लोग समझे। दीपावली को पांच पौषध हुए। उस चातुर्मास्य में वहां के जिन लोगों ने मुनि हेमराजजी से समझकर तेरापंथ की गुरुधारणा की, उनमें महेशदासजी भी एक थे।
महेशदासजी स्वयं तेरापंथी बन गए। उनकी पत्नी ने तेरापंथ की श्रद्धा स्वीकार नहीं की। उन्होंने उस पर अपनी श्रद्धा थोपी नहीं किंतु परिश्रमपूर्वक समझाने का प्रयास किया। पत्नी को समझाने के लिए उन्होंने अनेक उपाय काम में लिए। उनमें एक उपाय है उनके द्वारा विरचित गीत। *'गुरु ओलखाण'* के रूप में प्रसिद्ध इस गीत की कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत की जा रही हैं—
अै गुरु मांहरा,
अै गुरु मांहरा थे करल्यो नीं थांहरा,
अै गुरु मांहरा।।
थानै खोटै मारग घालूं नहीं,
म्हारी राखो अन्तरंग परतीत।
लिया व्रत चोखा पालज्यो,
थे तो जास्यो जमारो जीत।।
आपां नाता आगे अनन्त करया,
बले भोगव्या अनन्ती बार भोग।
पुण्य तणां संजोग थी,
अबकै मिलियो एहवो संजोग।।
उक्त गीत में तेरापंथ की वेशभूषा, आचार-विचार आदि को विस्तार से बताया गया है। महेशदासजी कवि थे। उनके द्वारा रचित दिहाड़ो, अै गुरु मांहरा, भेंट भवि शरण ले आदि गीत काफी प्रसिद्ध हैं। साधुवेश में चलने वाली असाधुता का वर्णन करते हुए उन्होंने एक पद्य लिखा—
वंदना के भूखे वैराग्यता से लूखे,
ज्ञान दर्शन राह चूके सूके ठूंठ दर्शात है।
बोले वैन ताते क्रोध कर नयन राते,
चर्चा चूंप नहि हाथे हीन बुद्धि मन भात है।
उठे परभात जी में यही विचारे बात,
ताक-ताक ताजे घर बहरण को जात है।
कहण को मुणिंदा मांड रखा पाल फंदा,
ऐसे जैन हू के जिंदा अंधा नर कु ठग खात है।।
महेश दास जी ने तत्त्व को गहराई से समझकर श्रद्धा स्वीकार की थी। उन्होंने पचासों व्यक्तियों को समझाकर धर्मशासन की सेवा की।
*तत्व को गहराई से समझने वाले चैनजी श्रीमाल वह 'प्रियधर्मी-दृढ़धर्मी' संबोधन से संबोधित चूनी भाई मेहता* का प्रेरक जीवन प्रसंग पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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