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दुष्ट पचकान को पालने की जरूरत नही ।
उपाध्याय प्रवर पूज्य श्री प्रवीण ऋषि जी महाराज का प्रवचन
ध्वनी प्रसारण यंत्र को वापर करना या नहीं यह विषय कहाॅं से शुरू हुआ? इलेक्ट्रिसिटी को हिंदी में प्रयोग करते स''विद्युत'' कहा, वहीं से ये संभ्रम प्रारंभ हुआ ।
अंबर को ग्रिक में इलेक्ट्रो कहते है । 600 साल पहले एक व्यक्ति ने अम्बर के घर्षण से गर्मी ओर प्रकाश का अनुभव किया । अंबर से वो गर्मी और प्रकाश बाहर आया इसलिए इलेक्ट्रिक कह दिया । मूल उद्गम को समझा तो चर्चा को समझाना आसान होगा । विद्युत शक्ति का प्रवाह है,उर्जा है, पदार्थ नही । पृथ्वी,वायु,अप, त्रस, वनस्पति, तेउकाय इस षट्काय में करंट या विद्युत को गिनाया नही । अग्नि ‘तेउकाय’ का करंट नही लगता है, विद्युत को स्पर्श हुआ तो करंट लगता है । तेउकाय के परमाणु है, विद्युत प्रवाहधारा है ।
आज ऐसी जगह नही जहाॅं विद्युत प्रवाह नही । जीव, सजीव और निर्जीव पदार्थ क्या है? प्राण नही रहे तो शरिर निर्जीव है । *आहार, भय, परिग्रह मैथुन ये चार संज्ञाये जिसमें है, वो सजीव है ।* पाणी पृथ्वी,वायु, वनस्पति, इनमें चारों संज्ञा है । ज्ञात इतीहास में आचार्य सिध्दसेन दिवाकर ने सर्व प्रथम इस पर प्रकाश डाला । कई मांत्रिक के उदाहरण है, जो पानी को उर्जीत कर पिलाते थे, और व्याधी दूर होती थी । निर्जीव पानी उर्जीत नही हो सकता है । *जो जीव नही होता, उसके पास परिग्रह संज्ञा नही होती*, इसपर असंख्य प्रयोग हो चुके है । पेड केा पानी दिया तो उर्जीत होता है, सुखी लकडी में पानी दिया तो वह सड जाती है । वो ग्रहण नही करती, इसलिए हम उसे निर्जीव कहते है । आहार, भय, परिग्रह मैथुन ये चार संज्ञा को ग्रहण करने वाला सजीव होता है, यह पहली पहचान है ।
*सजीव की दुसरी पहचान है,चार पर्याप्ती - आहार, शरिर, इंद्रीय और श्वाशोस्वास ।* जो श्वाशोस्वास करता है वो अंदर में प्राण लेता है वहीे सजीव होता है । मुर्दे के पास श्वाशोस्वास पर्याप्ति होती नही । श्वाशोस्वास पर्याप्ती होना मतलब बाहर से श्वास लेकर जीवनीय शक्ति में रूपांतरित करने की उर्जा होना । चाहे एकेंद्रिय हो बेंद्रिय हो तेद्रिय हो, चौरेंद्रिय हो या पंचेंद्रिय हो, *श्वास टुटी, तो आस समाप्त हो गई।* वायुकाय के बिना तेउकाय हो नही सकता है ।
*विद्युत बल्ब में निष्क्रिय गॅस है, लेकिन आॅक्सिजन नही है । विद्युत तारों में कही हवा जाती नही । कहीं से कार्बनडाय आॅक्साईड बाहर निकलता नही ।* इसलिये सबसे पहले - ‘‘विद्युत सचीत है, और उसपर बोलने वाला साधु का पहला अहिंसा महाव्रत भंग होता है, इसलिए वो साधु नही, साधु नही तो वंदना करनी नही, आहार बहराना नही ’’ ये मिथ्या कथन है ।
शरिर के हलनचलन में वायुकाय के जिवों की हिंसा होती ही है । शत प्रतिशत अहिंसा का प्रतिपालन उस समय होता है जब चौदहवें गुणस्थान में जीव की मुक्त होने की प्रक्रिया चलती है, सारे योग का निरोध होता है, शैलशीकरण होता है । उस समय परिगमन और स्पंदन बंद होते है उसी समय कोई अहिंसक हो सकता है । *व्यवहार में न्युनतम हिंसा हो इसका ध्यान रखा जा सकता है ।*
*सिध्दांत केवल सर्वज्ञ के पास होते है, छद्मस्त के पास धारणा होती है ।* अधुरा ज्ञानी सिध्दांत की बात कैसे कर सकता है? हम अपनी धारणानुसार अर्थ लगाते है । प्रतीक्रिया ये भी मिली है की पहले संमेलन्न में विद्युत को सचित कहा, दुसरे सम्मेलन में माईक में बोलने वाले को प्रायश्चित का विधान हुआ । लेकिन ये कहना भूल गये की तिसरे सम्मेलन में बात को निरस्त कर दिया ।
ऐसा क्यों होता है? हम छद्मस्त है, छद्मस्त के पास बदलाव,दुरूस्ती करने की असंख्य संभावनाए है । जिसमें ये संभावनाए समाप्त हो गई वो मुर्दा है । *परिवर्तन को स्विकारना ये जीव का स्वभाव है ।* जीव जिस गती में जाता है, उसे स्विकार करता है । नरक गती के जीव दुःख से बचना चाहते है, लेकिन मरना नही चाहते । आत्मघात करने की बिमारी केवल इन्सान के पास ही है । आजसे 150 साल पहले कोई संत मुंबई नही जाते थे । जानेवाले को पापी समझा जाता था । सबसे पहले मुबई आनेवाले मंदीर मार्गी संत थे, मोहनमुनिजी म.सा. । आचार्य श्री जव्हरीलालजी मसा. देवनार का कत्तलखना देखकर वापस मुड गये । लेकिन बाद में उनके शिष्य मुंबई गये । कविता बनाना पहले मना था । उसे प्रायश्चित था । सबसे पहले तिलोकऋषीजी म.सा. ने कविताएं लिखी । शास्त्र लिखना मना था । अमलोक ऋषीजी म.सा. ने सर्वप्रथम 32 आगमों का हिंदी अनुवाद किया, प्रेस में गए, छपाई भी की, उस समय उनको भी संत नही माना गया। स्थानक पहले बनते नही थे ।
नई जानकारी को स्विकारने से इन्कार करना समझदारी नही है । सुधार करना चाहिए । *मुझे और किसी छद्मस्त को किसी को गलत कहने का अधिकार नही । इतना ही कह सकते थे है, की ये हमारी धारणा है, हम इस व्यवस्था में चलते है । हमारी समाचारी ये है,* ये मत कहो की तुम्हारी / दुसरे की समाचारी गलत है । मेरी धारणा गलत हो सकती है ।
नई जानकारी मिले तो मै बदलाव के लिए तैयार हु । ऐसी एक भी परंपरा नही जिन्हो ने परिवर्तन नही किया । मै छद्मस्त हुु, मेरे बुध्दी की सिमा है, मेरा दावा नही है । ये मेरी समझ है । आपसे अनुग्रह है, तुम्हारी दुकान चलाने के लिए बच्चो की, युवकों की आस्था को समाप्त नही करे ।
*विद्युत में श्वाशोस्वास पर्याप्ति नही, चार संज्ञा नही इसलिये वो सजीव नही है ।* विद्युत उत्पादन में प्रखर आरंभ समारंभ होता है, इसलिये माईक का उपयोग उचीत नही ऐसा कहा जाता है । इस सवाल का स्पष्टिकरण देते हुये उपाध्याय श्री ने कहा प्रत्येक जीव, अजीव का उत्पादन विना आरंभ समारंभ का होता नही । आहर भी आरंभ समारंभ से ही बनता है । उत्पादन के अधार पर निर्णय नही करना । स्वरूप क्या है? शुभ में उपयोग हो रहा है तो आपत्ती नही होनी चाहिए। टिव्ही देख सकते हे, थियेटर, बार में जा सकते है, प्रवचन नही सुन सकते? पचकान लेने वाले ने सोचना चाहिए । मिक्स होटल में जाने की मुबा नही, नाईट क्लब में जाने की मना नही उसकी कोई चर्चा नही, व्याख्यान में माईक का उपयोग हो तो नही सुनने के पचकान? नेता का भाषण सुन सकते हो, अभिनेता के डायलोग सुन सकते हो, बडे2 कंसर्ट में जा सकते हो, और व्याख्यान सुनने के पचकान?
*मिथ्या पचकान को पालना अधर्म है । इसे ओसरा दिजीये । वंदना करने से रोकना ये पाप है या पुण्य? पचकान पाप के होते है, पुण्य के नही होते है ।*
परमात्मा का धर्म आपके पास पहुंचाने के लिए हम व्याख्यान देते है । व्याख्यान सुनने के लिये गाडी में बैठकर तुम छह काय का आरंभ समारंभ कर आते हो ओर कहते है, माईक में प्रवचन नही सुनना? व्याख्यान सुनने जाते समय गाडी में नही बैठना, ऐसा पुरा नियम होना चाहिए । क्या गौतम प्रसादि में आरंभ समारंभ नही होता है?
*इस प्रकार के विवाद खडे कर लोंगों के मन में धर्म के प्रती प्रेम जगा रहे हो या द्वेष भावना फैला रहे हो?* *नफरत का वातावरण बनाना ये साधु का काम नही ।* कषाय कम करना ये धर्म है । राग द्वेष बढाना धर्म नही । मिथ्यात्व के दस और पच्चीस प्रकार है । जीव को अजीव या अजीव को जीव कहने वाला मिथ्यात्वी होता है ।
एअरफ्रुफ और वाॅटरफ्रुफ बॅटरी के सेल में संघर्ष भी नही है । सौर उर्जा की बिजली घर्षण से नही आती । अग्नि को स्टोअर नही कर सकते । विद्युत को कर सकते है । आज की दुनीया में सिसिटिव्ही कॅमेंरे से संघट्टा होगा ही । सुरक्षा व्यवस्था को नकार नही सकते । यतार्थ को स्विकार करे । नई पिढी पुर्णतः साईंटिफीक है, उसे आप भ्रमित नही कर सकते ।
चर्चा के पिछे समझाना ओर समझाना ये उद्देश होना चाहिए । *आज ओर आनेवाले समय में सबसे ज्यादा बिजली का उत्पादन सोर उर्जा से होना है ।* *उसमें महा आरंभ समारंभ नही, संघर्ष नही ।* अचित्त को सचित्त कहाना मिथ्यात्व है । मिथ्यात्व से मुक्त होना ये सभी भवी जीव का लक्ष्य है ।
पू.श्री आचार्य उमेशमुनिजी म.सा. की विद्युत को अचित मानने की धारणा नही है, उसके बावजुद कोई साधु माईक में व्याख्यान दे रहा है तो सुनते समय सामायिक में दोष नही लगता ये वो कहते है । मना नही करते है । *श्रावक के पचकान दो करण तीन योग के है,अनुमोदन के पचकान नही है । इसलिये उसके पचकान में दोष लगता नही ।* माईक के प्रवचन में सामाईक सुनने के पचकान मिथ्या पचकान है । आपको ओसराने चाहिए । दुष्ट पचकान को पालने की जरूरत नही ।
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