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23 साल से शक्कर-नमक और फल त्यागा;
रोज सिर्फ 1 बार पानी पीते हैं ये मुनि
72 साल के आचार्य विद्यासागरजी महाराज देश के पहले दिगंबर मुनि हैं, जिन्होंने दीक्षा के 50 साल पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर डोंगरगढ़ स्थित चंद्र गिरि पहाड़ी में 28 जून से तीन दिवसीय गौरवशाली कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसमें आचार्य श्री के देश-विदेश में रहने वाले हजारों शिष्य शामिल होंगे।
- विद्यासागरजी ने 22 साल की उम्र में सांसारिक वस्तुओं को त्याग कर दिया था। तब से दिन में केवल एक वक्त भोजन-पानी लेते हैं।
- रोजाना जमीन में साेने वाले विद्यासागरजी का देशभर में प्रवास पर रहते हैं। प्रवास के दौरान हजारों किमी की यात्रा वो नंगे पाव पैदल कर चुके हैं।
- इतना ही नहीं, पिछले 23 साल से उन्होंने शक्कर-नमक और फल त्याग दिया है। इन सबके बावजूद वे मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट हैं।
- विद्यासागरजी के शिष्य इसकी वजह संयमित दिनचर्या और आध्यात्मिक शक्ति बताते हैं।
रोज पांच घंटे करते हैं आराम औरसिर्फ एक बार करते हैं भोजन
- विद्यासागरजी रोजाना सुबह 3 बजे उठ जाते हैं। इसके बाद शिष्यों के साथ स्तुति करते हैं। सामायिक (पाठ)और भक्तों से मिलने के बाद भोजन करते हैं। भोजन में रोटी, चावल और सब्जी शामिल होती है। - भोजन के बाद वे सिर्फ एक बार पानी पीते हैं। आचार्य श्री अपनी अंजुल (दोनों हथेलियों को मिलाने से बना हुआ गड्ढा जिसमें भरकर कुछ दिया या लिया जाता है) से भोजन ग्रहण करते हैं।
- खास बात ये है कि ये भोजन-पानी 24 घंटे के लिए होता है। उनके भोजन में नमक-शक्कर नहीं होता।
- भोजन के बाद वे बच्चों को शिक्षा देते हैं, फिर आचार्य भक्ति कार्यक्रम होता है।
विद्यासागर से प्रेरित हुआ परिवार
- विद्यासागरजी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलग्राम जिले के सदला ग्राम में हुआ था।
- 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने पिच्छि-कमन्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया था।
- आचार्य श्री के भक्त सुधीर जैन बताते हैं कि धर्म और विद्यासागरजी के संदेश को देशभर में फैलाने के लिए 178 साधु शिष्य हैं।
- विद्यासागर जी से प्रेरित उनकी माता श्रीमती पिता मल्लपा दो छोटे भाई अनंतनाथ व शांतिनाथ और दो बहन सुवर्णा और शांता ने भी दीक्षा ली।
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12वीं में 99.99 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्र ने करियर की जगह #दीक्षा को चुना
अहमदाबाद
एक तरफ जहां उसके दोस्त और क्लासमेट्स अपने फ्यूचर को लेकर विचार कर रहे हैं कि आगे वह किस कॉलेज में ऐडमिशन लेंगे अपना करियर कैसे बनाएंगे। वहीं दूसरी तरफ 17 साल के वर्शील शाह के दिमाग में कोई और ही प्लान चल रहा है।
पालदी के रहने वाले इस युवक ने 12वीं की परीक्षा में सायेंस में 99.99 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। ऐसे में अपने माता-पिता से अपनी इस मेहनत का इनाम मांगने की बजाए वर्शील ने संसार का त्याग कर जैन संन्यासी बनने की इजाजत मांगी। हैरानी की बात यह है कि वर्शील के माता-पिता को भी अपने बेटे के इस फैसले पर कोई पछतावा नहीं है और पूरा परिवार वर्शील के दीक्षा समारोह की तैयारियों में जुटा है जो 8 जून गुरुवार को सूरत में होगा।
वर्शील के पिता जिगर शाह कहते हैं कि उनका परिवार शुरू से ही आध्यात्म की तरफ अधिक झुकाव रहा। जिगर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। जिगर कहते हैं, 'मेरी पत्नी अमी बहुत ज्यादा धार्मिक स्वभाव की है और मेरे बच्चे वर्शील और उसकी बहन का भी धर्म और अध्यात्म की तरफ झुकाव है। वास्तव में जब वर्शील की स्कूल की छुट्टियां होती थीं तो कहीं घूमने जाने की बजाए वह सत्संग में जाना पसंद करता था।'
इन सत्संगों के दौरान ही वर्शील कई जैन मुनियों और संन्यासियों के संपर्क में आया जो संन्यासी बनने से पहले डॉक्टर, इंजिनियर और चार्टर्ड अकाउंटेंट थे लेकिन असली खुशी उन्हें दीक्षा लेने के बाद ही मिली। वर्शील के पिता कहते हैं, 'मेरे बेटे ने बहुत मेहनत कर 12वीं की परीक्षा की तैयारी सिर्फ इसलिए की थी क्योंकि मैं ऐसा चाहता था।' इतने अच्छे नंबर लाने के बावजूद वर्शील ने अब तक स्कूल से अपनी मार्कशीट नहीं ली है।
पुष्करवाणी गु्रप ने बताया कि शाह दंपती बेहद साधारण जीवन जीते हैं और आज के जमाने में भी उनके घर में बहुत ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज भी नहीं है। वर्शील के माता-पिता अपने बेटे के फैसले से थोड़े उदास जरूर हैं कि लेकिन उसकी इच्छा का समर्थन कर खुश भी हैं। जिगर शाह कहते हैं, 'हम उदास थे क्योंकि हमने उसके भविष्य को लेकर कई सपने देखे थे। लेकिन वर्शील ने कभी हमसे कुछ नहीं मांगा। इसलिए पहली बार जब उसने कुछ मांगा संसार का त्याग करने की उसकी इच्छा तो हमने उसे भी मान लिया। दीक्षा से वर्शील को खुशी मिलेगी और उसे खुश देखकर हम भी खुश रहेंगे।'
फिलहाल वर्शील का पूरा परिवार सूरत में है जहां 8 जून गुरुवार को वर्शील का दीक्षा समारोह जैन मुनी कल्याण रतन विजयजी की अगुवाई में होगा।
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#बलि_प्रथा से नहीं जीवों के संरक्षण से मिलती है खुशी
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गर्मी में रखें बेज़ुबां परिंदों का ख़्याल
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